Friday, January 18, 2013

10 जनवरी 2013








~भगवान सिंह जयाड़ा~
वाह रे यू यस ए डॉलर तेरी माया ,
खींचा तानी में भी न चरमराया ,
सारी दुनिया में घूमें तेरा साया ,
तभी तो दुनिया में नाम कमाया ,
बिन तेरे नहीं बदले दुनिया की काया ,
तभी तो दुनिया ने तेरा गुण गाया ,
ऊपर नीचे का खेल भी खूब भाया ,
फिर भी कायम अभी तेरा साया ,
वाह रे यू यस ए डॉलर तेरी माया ,
खींचा तानी में भी न चरमराया ,

~किरण आर्य~

इक समय था वो भी भैया
कहते थे लोग रिश्ते बड़े
बिन प्यार जग सूना भैया
प्यार ही भाई बहन व् सैया

रूपये से था जरुरत का साथ
और कहते थे सभी ये बात
रुपये की क्या है बिसात
ये सम स्वार्थी काली रात

आज हो गए ऐसे हालात
रूपये की ऊंची हुई जात
रुपया कहलाये बाप भैया
रुपया ही मनभावन सैया


~नैनी ग्रोवर ~

मत बांधों जंजीरों से, इसे खोलो ऐ दोस्तो,
लुटाओ इसे वहां, जहां दो निवाले नहीं मिलते


~बालकृष्ण डी ध्यानी~

एक दौड़ लगी है
सब छोड़कर
बस एक दौड़ लगी है
मुख मोड़कर
बस एक दौड़ लगी है
तू खींचें उसे इस ओर
कोई दूजा खींचें दूजे ओर
बस माया की होड़ लगी है
बस एक दौड़ लगी है
बंधन में ना रह पायेगी
आज तेरे कल कंही ओर चली जायेगी
भोर ओर नींद में फंस जायेगी
बस एक दौड़ लगी है
लालच अहम के घेरे में
हर जिव्हा कसा इस फेरे में
नाच रहा वो हर ढेरे में
बस एक दौड़ लगी है
तेरा है ना वो मेरा है
किस लिये यह बसेरा है
छोडा देख उसे एक बार
फिर ना कोई तेरा है फिर ना कोई तेरा है
एक दौड़ लगी है ...............

~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ~

पैसों से बंधे है रिश्ते यहाँ
पैसो की केवल माया यहाँ
हर कड़ी कुछ यूं जुड़ती यहाँ
देख पैसा चेहरे खिलते यहाँ
'प्रतिबिम्ब' छोड़ो लोगो को वहाँ
मिलते नही ख्यालात अपने जहाँ




~जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु ~

निर्जीव पैसा बाधक बनकर,
रिश्तों के बीच कैसा खड़ा है,
हो रही है खींच तान,
मन में पैदा करता अभिमान,
तू तू मैं मैं तक करवाता,
एक दूसरे में खाई बढ़ता,
तू ही क्या है मैं भी तो हूँ,
मन में करते लोग अभिमान,
धरती पर है साथ निभाता,
अंत समय में साथ नहीं जाता,
करते लोग हाय हाय रूपया,
हे बाप भला न भय्या,
दुनिया पीछे दौड़ रही है,
कवि मित्रों क्या मैंने सच कहा है?
तुम भी सोचो, तुम भी सोचो,
इस पापी पैसे के पीछे,
रिश्ते नातों को मत नोचो।

~अलका गुप्ता ~

जंजीर से आज हर किसी को बांध कर रखे है माया |
बुनियाद भी रिस्तों की खोखली कर देती है यह माया |
दौड़ में अंध मानव को रुपयों ने माया मृग सा दौडाया |
चूस खून लाचारों का हब्शी धनियों ने बेहिसाब धन पाया ||

गिनती कम नहीं ऐसों की भी....धन जिन्होंने खूब लुटाया |
तोड़ के बंधन सारे हित में मानवता के अपना धन लगाया |
खुद ही माया से मुक्त हो धरा पर वह बीज मुक्ति के बो गया |
तोड़ के नाता मोह माया के जीवन से नारायण से जुड़ गया ||
 

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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