Friday, January 18, 2013

13 जनवरी 2013








~Pushpa Tripathi~
किसे बताउं राग ये अपना
किसे सुनाऊं मै साज
हर गीत ढह गए, इक झोंके के साथ
पिंगल पड़ते पारिजात का वृक्ष
और सूखते दिल छाल
ओढू चुनरी बेरंग की
जाने कब हो लाल

~बालकृष्ण डी ध्यानी~
दर्द है .......
आँचल ओढे
साये में ओढ़ा एक दर्द है
दोनों बाहें सिमटी
छाती में सिमटा एक दर्द है

बैठी हूँ उदास
इस उदासी में एक दर्द है
अकेली हूँ आज
इस आज में एक दर्द है

बाँधे रखा है खुद को
खुद से ही पाल एक दर्द है
आह भी निकलती नही
सीने दबा रखा एक दर्द है

सदियाँ बीत गयी
दर्द के साथ साथ
अब दर्द ही मेरा
और मै ही दर्द हूँ

आँचल ओढे
साये में ओढ़ा एक दर्द है
दोनों बाहें सिमटी
छाती में सिमटा एक दर्द है

~किरण आर्य ~
दर्द से पाषाण होते उसके सब भाव
दर्द से कराहती छाती उसकी
और टूट कर बिखरते से ख्वाब
ममता रोती बेबसी के आंसू उसकी
आंचल होता निर्वस्त्र तार तार
बैठी नीर पलकों पे सजाये अपनी
मन उसका रोता जार जार
सूखी छातियों सा सूना जीवन
पीड़ जिया की करे चीत्कार
माँगती पीर उसकी अब विराम
जीवन नैया हो आर पार

~भगवान सिंह जयाड़ा~
पत्थर की बेजान मूरत बनकर ,
दुनिया के हर दुःख दर्द सह कर ,
दिल में प्यार के वह कुछ पल,
आज भी संयोज कर रखी हूँ ,
दुःख कितने भी उठाये मैंने ,
आज भी ममता की मूरत बनी हूँ ,

~सुनीता शर्मा~
जिन तीन लालों को अपने दूध व् लहू से सींचा मैंने
अपनी त्रासदी भुलाकर हरदम उन्हें हंसाया मैंने
अपनी सूनी गोद देखकर सोच रही क्या पाया मैंने
वतन की रक्षा की राह दिखाकर खुद को रुलाया मैंने
एक लाल को मिटा दिया देश की आन की खातिर मैंने
दूसरे को खुद मार दिया देश की बेटियों की लाज हेतु मैंने
तीसरे ने वृद्धा आश्रम दिखा दिया,जिसको सबसे अधिक चाहा मैंने
हे धरती माँ, मेरी कहानी तो छोटी पर तेरे लिए जहाँ लुटा दी मैंने!

~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल~

आखिर तुमने
मेरे भावो से खेल कर
निशब्द कर दिया मुझे
प्रेम में वासना ढूंढ ली
त्याग में स्वार्थ ढूंढ लिया

मैं
कुछ कहने लगी तो
जबरन चुप करा दिया
हक़ की बात की तो
जीवन से निकाल दिया

आखिर
औरत आदमी के नाम पर
देखो तुमने हमें बाँट दिया
लड़नी थी जो लड़ाई हमने
पहले ही एक दूजे को खो दिया

अब
तुमने मुझे
पत्थर सी मूरत बना दिया
हंसी छीन कर मेरी
होंठो को स्थिर कर दिया

दर्द समेटा है
आँसू पिए हैं
सुख त्यागा है
ममता बांटी है

मूरत सा बनकर भी
धर्म व् फर्ज निभाया है
बदल दो अपनी मानसिकता
अब ये सही समय आया है

~Virendra Sinha Ajnabi ~.
देख खुदा, तेरा आधा काम कर दिया है तेरे बंदे ने,
बस अब तेरा काम रह गया है मुझमे जान फूंकने का

~नैनी ग्रोवर~

दुनियाँ की रिवायतों ने, पत्थर बना दिया मुझे,
ना कोई आह निकलती है ना अब अश्क बहते हैं

~अलका गुप्ता~

मैं दर्द भरी बदली हूँ |
तड़प-तड़प कर बरसी हूँ |
वहसी नज़रों से घायल थी |
नाखूनों ने अपनों ही के .....
चीर दिया मुझको .....
रिश्तों में रिस -रिस कर बहती हूँ |
बेटी बन कभी कोख में
बहु कभी मैं मारी जाती |
समाज में अक्सर दुत्कारी जाती |
राम ने जड़ अहिल्या जो तारी |
विशवास घात नेआज है मारी |
मैं जैसे भावहीन पत्थर की मूरत |
कहने को बस देवी हूँ
लोलूप निगाह तोली जाती
मैं पत्थर एक गाली का ...
जब चाहें फेंकी जाती |
बदले की आग में भी रौंदी जाती |
अब तुम ही कर लो फैसला
मैं शिला हूँ या अनचाही बला |
अहंकारों में नाक कुल की बन
कभी बलि चढ़ जाती ||
 

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

No comments:

Post a Comment

शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!