Friday, January 18, 2013

28 दिसंबर 2012



~बालकृष्ण डी ध्यानी~
बीता दौर चिठ्ठी का 

देख चित्र का विचित्र पल 
कर गया वो मुझे मजबूर
अन्यास ही कलम चलने लगी
वो ले गया फिर मुझे दूर

जंहा पहले खतों से ही
बस प्यार बांटता था
चिठ्ठी के हर अक्षर में
चेहरा उसका दिखता था
.
छीना छपटी में लगे रहते
एक दूजे से हम बंधे रहते
ओ रिश्ता ऐसा दोस्ती का
वो पत्री भी झुमै मस्ती में

दौर एसएमएस, ई-मेल आया
चिठ्ठी का दौर उसने बिसराया
धन्य आपका चित्र देखकर
बीता दिन याद फिर आया

देख चित्र का विचित्र पल
कर गया वो मुझे मजबूर
अन्यास ही कलम चलने लगी
वो ले गया फिर मुझे दूर

Virendra Sinha Ajnabi
.
अरे संभाल के, ज़रा देखभाल के, कई दिन बाद खत आया है,
पूरे ब्योरे संग प्रिय ने, इसमें कुछ भारी सन्देश भिजवाया है

~भगवान सिंह जयाड़ा~

सन्देश भेजने का बदल गया परिवेस ,
चिठ्ठी की जगह अब करो मेल सन्देश ,
इधेर सेंड करो और उधेर तुरन्त पढ़ो ,
डाकिया कब आएगा ,टेंशन सब छडो ,
इंस्टेंट सन्देश का अब आया ऐसा ज़माना ,
डाकिया , चिठ्ठी का जमान हूवा अब पुराना ,

~उदय ममगाईं राठी ~

चिट्ठी आई है मेरी माटी की खुशबू लायी है
ये मत पूछो यारो ये अपनी है या परायी है
खोला जो ख़त तो माँ की ममता के आंसू भरे मिले
बाबा की पीड़ा का जो बखान था रोम रोम सबका हिले
मै लौट चला दोस्तों आज ही माँ की आँचल की छाया में
पाला पोसा जिस माँ ने , आगे बढ़ा अपने बाबा की साया में
ये दिखावट भरी जिन्दगी लगती है कुछ पल भली
नाती पोते भी चले मिलने बहु भी हमारे संग चली
मेरा भी ये ख़त है सभी को नववर्ष की शुभबेला पर
सुख समृधि और खुशहाली पहुँच रही है आपके घर

~किरण आर्य ~

पाती पिया की प्यार भरी
सहेजी डायरी में आज भी
आज तरसते इक पाती को
जो लाये सन्देश पिया का
हाल बताये उनके जिया का
अब तो आधुनिकता है हावी
भावो का हुआ कम्प्यूटरीकरण
भाव भी मशीनी हुए जाते है
आज भी पिया के ख़त देखकर
प्यार के वो पल आँखों में संवर जाते है .

~जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु ~

चिठ्ठी आई है......
भाई भगवान सिंह जयाड़ा,
अब तेरी चिठ्ठी नहीं आती,
जब श्रीनगर गढ़वाल में था,
जब पराये देश दुबई गया,
तब तो भेजा करता था,
जो आज भी मेरे पास हैं,
लगता है,
इन्टरनेट का असर है,
मोबाइल ने मिटा दिया,
चिठ्ठी के अस्तित्व को,
फिर भी भाई मन करे,
मेरी इस चिठ्ठी के जबाब में,
एक चिठ्ठी भेज देना,
मैं भी खुश हो जाऊं,
पढ़कर पाती आपकी,
इंतज़ार में तुम्हारा भाई


~नैनी ग्रोवर ~
वह जो इक ख़त, तेरे नाम लिखा था,
अभी तक उसके, अहसास नहीं बिखरे ..

कैसे कह दूँ मैं तुझसे , के गैर है तू,
दिल से तेरी मौहब्बत के, रंग नहीं उतरे...!!

~अलका गुप्ता ~
ख़त ने की खता क्या अश्रु विह्वल जो बहने लगे |
जागे दिन आँखों में..यादों के तूफ़ान उमड़ने लगे |
बीते दिनों की राख थी चिंगारी एक सुलगाई जो...
प्रायश्चित की ज्वाला बन हृदय को दहकाने लगे ||..



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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