Friday, January 18, 2013

30 दिसंबर 2012



~भगवान सिंह जयाड़ा~
दामिनी तुम्हारी यह शहादत खाली नहीं जायेगी ,
लोगों के मन में बुराइयों से लड़ने की चेतना जगाएगी ,
अब कोई दूसरी दामिनी न हो दरिंदों का शिकार ,
नहीं जाने देंगे तुम्हारी यह शहादत बेकार ,
दामिनी को अश्रुपूर्ण भाव भीनी श्रदांजलि ,,,,

~जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु~
"दामिनी तेरा दर्द"
सभी देश वासिओं की,
आँखों में आँसू ला गया,
माफ़ करना,
कुछ वहसी लोगों ने,
तेरा जीवन लील दिया....
आपकी जीने की चाह में,
शामिल थे सभी,
और दुआ कर रहे थे,
लेकिन! हार गई जिंदगी आपकी,
हमारी भी आस गई....
हे भारत की बेटी
दमकना देश के आसमान में,
एक सितारा बनकर,
देश तेरा बेरहम नहीं,
नाराज न होना,
हमारे दिलों में दर्द,
और आखों में आंसू हैं,
सादर श्रद्धांजलि,
भूल नहीं पाएंगे,
"दामिनी तेरा दर्द"

~Virendra Sinha Ajnabi ~
हाँ, मै हूँ निराशावादी,
क्योंकि मुझे अनुभव है,
क्योंकि इतिहास पता है,
जग की रीत पता है,
चरित्र-चेहरा देखा है,
नहीं बदलेगा कुछ,
ये अग्नि शांत हो जायगी,
धुंआ भी न बचेगा,
बस राख बच जायगी,
जो याद दिलायगी,
एहसास तो था ही नहीं,
वो क्या बचेगा,
तेरे साथ जल रही है,
शायद अंतिम उम्मीद भी,
बस अब ईश्वर ही है,
अंतिम उम्मीद
हम सब के लिए.

~केदार जोशी एक भारतीय~
दामिनी तेरे दर्द की चोट हम भारतीयों के दिल में है,
नहीं बुझने देगे आग जो तेरे द्वारा हम भारतीयों के दिल में लगी है ,
तेरे अत्याचारी को ऐसे ही जाने नहीं देंगे हम ,
अब जो आग लग गयी है,बुझने नहीं देगे हम

~नैनी ग्रोवर~
तेरा दर्द शब्दों में ढालूँ, इतनी ताकत नहीं मुझमें,
लानत है जीने पर, गर अब भी बगावत नहीं मुझमें

~अलका गुप्ता~
प्रार्थना है हर ह्रदय में संस्कार ज्योति एक प्रज्वलित कर दे |
राह बेटियों की भी ऐ !खुदा...निःशंक,बेधड़क आसान कर दे |
दामिना सा हश्र ना हो जाए फिर कहीं ....किसी मासूम का...
देश से अपराधी नजर को हमेशा के लिए नेस्तनाबूद कर दे ||

~डॉ. सरोज गुप्ता~
थमा कर लौ हर कामिनी को ,
मिटाने को तम यामिनी का ,
देखो जल गयी आज दामिनी ,
तुम्हे करता सलाम देश की भामिनी !

~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल~


दामिनी
ये चिता की लपटे
शायद लोगो के दिल मे जले
तुम विलीन हुई पंचतत्व मे
लेकिन ये चिंगारी बन
दिलो मे जलती रहेगी

करोड़ो का हृदय दुखी है
करोड़ो की आंखे नम है
इसी दुखी हृदय और
इन नम आंखो से
इस आग को बुझने न देंगे

तेरी पीड़ा का अहसास
अब हर कुकर्मी सहेंगे
आगे येसा न हो फिर
इसके लिए हर प्रयत्न करेंगे

ये आग जल चुकी है
इनकी लपटे अब
न जनता को
न सरकार को
न नेताओं को
चैन से सोने देंगे
कानून और सज़ा
अब येसी होगी
सोच कर भी अब
अपराधी की रूह कापेंगी

दामिनी
ये चिता की लपटे
लोगो के दिल मे जलती रहेगी

~नूतन डिमरी गैरोला~
दामिनी तुम वज्रपात बन कर ख़ाक कर देना
पुरुषता को कलंकित करने वाले नामर्दों को ..
तुम देह से विलुप्त हो कर हर दिल में
बस गयी हो विद्रोह की दामिनी बन कर
असंख्य दामिनी हो कर तुम
हमारे दिलों से न्याय की आग बन कर फूट जायेगी
जो आग अब हर दामिनी के दामन को बचाएगी ...
दामिनी तुम दामिनी बन हर दिल में बसी रहना ...

~बालकृष्ण डी ध्यानी ~*
आस थी
आब-ए-आईना दमक थी
अब आब-ए-चश्म में वो बहा गयी
आब-ए-तल्ख़ का जल वो
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी

दामिनी की आवाज़ह भी वो
आह में बस वो गुम हो गयी
निर्भय थी वो भी मोहतरमा
अकस्मात ही वो गुजर गयी
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी

इक़बाल इक़रार इक़्तिज़ा किया था उसने
इख्लास इज़्ज़त इज़्हार ना वो कर सकी
इजाज़ इजाज़त इत्माम इत्लाफ़ था इतना
इत्तिफ़ाक़ से इत्तिका वो बन गयी
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी

इन्तज़ार है इन्तिक़ाम उस रूह को भी
इब्तिला इबादत की इबारत इमान ढाह गयी
उक़ूबत का हर्ष उबाल की उरियां का उरूज है
उफ़्क पर वो इन्सानियत का अब सबब बन गयी
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी

आब-ए-आईना दमक थी
अब आब-ए-चश्म में वो बहा गयी
आब-ए-तल्ख़ का जल वो
आबरू पर वो ऐसे बिलख गयी
 


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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