Monday, February 18, 2013

18 फरवरी 2013 का चित्र व् भाव




भगवान सिंह जयाड़ा 
हम है इस धरा के प्यारे पक्षी ,
हमें लोग यहाँ राज हंस कहते है ,
हमारे प्यार की यहाँ चर्चा होती है ,
प्रेमियों की हम से तुलना होती है ,
कोई कहता प्रेमी युगल उन को ,
कोई दो हंसों का जोड़ा कहता है ,
हम बचे है अब कम ही धरा पर ,
हम लुप्तप्राय की कगार पर है ,
बचा लो हमें तुम इस धरा पर ,
बरना हम ख़त्म हुए जा रहे है ,
वेसे भी हमारे हिस्से के मोती ,
कोई और ही खाए जा रहे है ,
असंतुलित पर्यावरण की मार ,
हमें धरा से मिटाए जा रही है ,
हम है इस धरा के प्यारे पक्षी ,
हमें लोग यहाँ राज हंस कहते है ,

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~दिल गीत गाने लगा है ~

दो हंसो का जोड़ा, प्रेम को दर्शा रहा है
ये दिल में मेरे, मोहब्बत को बढ़ा रहा है
भाव प्रेम का मुझे प्रकृति से मिला रहा है
क्षितिज सा अपने आगोश में बुला रहा है

प्रेम की तस्वीर अब चित्र सी बनने लगी है
आसमां पर भी छवि ये चित्रित होने लगी है
फूलों सी खुशबू तन - मन में महकने लगी है
कोहरे में छिपी नमी सी तन में उभरने लगी है

कोमल अहसास प्यार का अब जगने लगा है
हल्की सी पुरवाई से रोम रोम खिलने लगा है
आँखे बंद 'प्रतिबिंब' चेहरा अब दिखने लगा है
साज प्रेम के बजने लगे, दिल गीत गाने लगा है


Yogesh Raj .
हम खोजते हैं इष्ट देव को मगर,
घूम फिर कर तुझे ही देख लेते हैं,
सफर में खो जांयें हम कहीं भी,
महक के सहारे तुझे ढूंढ लेते हैं.


नैनी ग्रोवर 
हम प्रेम के प्रतीक हैं, सृष्टि की बनाई सुन्दर रीत हैं,
माना के मूक हैं हम, परन्तु, प्यारा गुनगुनाता गीत हैं..

गर हमसे ना कुछ सीखा तुमने, तो हमको भी गंवा दोगे,
मिल-जुल के रहो, छोडो भेद-भाव, यही इंसान की जीत है ...!!


बालकृष्ण डी ध्यानी 
प्रीत मेरी

अनुराग मिलन का सीखा जाना
प्रीत की भक्ती का तुम दीप जलना
चाह है अखंड धरती को लाने की
बस मुहब्बत का तुम एक गुल खिलाना

प्रणय की सीमा तो अनंत है राही
उस पर निष्ठा की तुम मोहर लगाना
सभी धर्मों में परिहारी है प्रेम
निज हित के लिऐ ना ऐ अग्न बड़ाना

सूद से निश्छल है ऐ भरता
बस प्रेम गगरी से चाह जल ना छलकाना
धुन लगी है उसकी इस जिया में बेकरार
ढाई आखर प्रेम का, बड़ा बाजार ना लगाना

खरीदार बनकर तुम खरीद ना जाना
इस प्रीत की बस तुम रित निभाना
जीवनपथ और वक्त की यादों में मेरे प्रेम
प्रीत मेरी तुम खो ना जाना तुम खो ना जाना


अलका गुप्ता 
उस क्षण मन था मेरा परेशान अजब हैरान |
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना ..... कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |

टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||

प्रजापति शेष 
इस चित्र को अगर में पढ़ पाती, अगर सुन पाती ,
इसके रस भावों को अगर में आँखों से देख पाती ,
स्वप्न छोड़ दिए ,बहुत कठिन डगर पर हु साथी ,
विघ्न बाधा संकट को दे निमन्त्रण में बुलाती ,
मेने छोड़ दिए मिलन , विरह से मन बहलाती ,
खुश रहो मिलने वालों , एकाकी मन है मेरी थाती


अंजना चौहान सिंह
दो हंसों का जोड़ा जब मधुर मिलन में खो जाता है
बेजुबानों का निश्छल प्रेम हमें मुहब्बत का पाठ पढाता है
न्योछावर करने को तन मन यह हमें ललचाता है
एक दूजे के लिए समर्पण यह हमें सिखलाता है
देख कर सुन्दर चित्र सलोना मन चंचल हो जाता है
साथ पीया का चाहूँ मैं भी अब इंतज़ार मुझे सताता है
जल्दी आ जाओ प्रियतम अब और रुका नहीं जाता है
विरह के बादल छंट आये यह मधुमास तुम्हें बुलाता है

डॉ. सरोज गुप्ता 
हंसों का हसीन जोड़ा

जब-जब देखूँ हंसों के युगल जोड़े
शरमा जाएँ मेरे नयन निगोड़े !

हंस -हंसिनी लाईफ करे एन्जॉय
बसंत में वाईफ को खूब पटायें !
हंस -हंस कर निभाये सब वायदे
सरस्वती वाहक को याद सब कायदे !!

जब-जब देखूँ हंसो के युगल जोड़े
शरमा जाएँ मेरे नयन निगोड़े !!

पांचाली अब तुम हंस ना छोडो
कोई सिरियसली नहीं लेगा तुमको !
कृष्ण भी अब कही मैंनेज हो जाएगा
दाना चुगेगा हंस,कौवा मोती खायेगा !!

जब-जब देखूँ हंसो के युगल जोड़े
शरमा जाएँ मेरे नयन निगोड़े !!

ये हंस युगल हैं ,तुम हंस ते भी नहीं
ये मानस के हंस,तुम खरीदो हंस योग !
तुम भी हंस बनो ,हंसी से दोस्ती करो
हंसो,लाईफ बनाओ,वसंत का श्रृंगार करो !!

जब-जब देखूँ हंसो के युगल जोड़े
शरमा जाएँ मेरे नयन निगोड़े !!



किरण आर्य .
दो हंसो का जोड़ा प्रेम का ये प्रतीक सा
हाँ मेरी रूह में बसे तुम्हारे ही अक्स सा
शायद गुप चुप कुछ बतिया रहा है ये
प्रेम के मधुर गान संग मिल गा रहा है ये
प्रेम हाँ वो अहसास जो तेरे मेरे मन बसा
अहसासों में पला मन के भावो में है सजा
तेरा आना बसंत की रिमझिम फुहार सा
बरस जाना अंक में तेरे समाने सा लगा .




सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

1 comment:

  1. अति सुन्दर भावों से सजी मित्रों के शब्दों की लड़ी ..धन्वाद प्रति जी

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शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!