Saturday, February 23, 2013

23 फरवरी 2013 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
उदास हूँ मै
सर को झुकाये निराश हूँ मै
आशा छोड़े बैठा हूँ मै
कोने कोने उस के घेरे में फंसा मै

बेदिल हुआ तन मेरा
कैसे विषण्ण से मै सक्त
मायुसी छाई हर छोर
आशाहीन मन मेरा

हताश हूँ बिखरे ताश की तरह
विदूषक बना खुद से ही
हतोत्साह अब चाह है मेरी
धोखा दिया है खुद को ही

चारों ओर अंधकार है
प्रकाश छुपा आज किस ओर है
भम्रित है आज तन मन मेरा
उजाले का किनार किस ओर है

उदास हूँ मै
सर को झुकाये निराश हूँ मै
आशा छोड़े बैठा हूँ मै
कोने कोने उस के घेरे में फंसा मै


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
आसमां छूने चला था,
आदमी .....
क्यूँ धरा पर हताश सा ...
आदमी ....
लाशों को रौंदता ..
विकास को अग्रसर ..
फिर भी मायूस ..
खुशियों से मरहूम ..
गुमसुम ....
आदमी .... ..
पंचतत्व निर्मित ..
देह ..
हाड मॉस का लोथड़ा ..
आदमी ..
बेसुध, इंसानियत से ..
दूर, भगोड़ा ..
आदमी ..
जनावर भीतर ..
देखा ...
थोड़ा थोड़ा आदमी ..
पंचतत्वों को टटोलता,
दो जून रोटी को,
सागर सा मूंह खोलता ..
धर्म पर खून खौलता
खुदी का खुदा ..
बन रहा आदमी ...
फिर भी नाखुश सा ..
क्यूँ है आदमी ?


नैनी ग्रोवर 
तन्हाई में बैठ अकेले, दिल में एक ख्याल आया है,
कौन है जहाँ में ऐसा, जिसने मेरा साथ निभाया है..

मतलब के रिश्ते रहते हैं, लालच की छत के नीचे,
उन्हीं छत से लगीं दीवारों पे, हसरतों को सजाया है..

बेमानी सी लगने लगी है , ये दुनियाँ ना जाने क्यूँ,
ये कैसा वक़्त तकदीर ने, आज मुझे दिखलाया है ...

भूले-भटके से भी अब, कोई ख़ुशी इधर आती नहीं,
टहल रहा अब इस घर में, बस ग़मों का साया है !!


Yogesh Raj
बड़ी आशाएं थीं
बहुत आकांक्षाएं थीं,
मगर जब वास्तविकता देखी,
पाया, सब व्यर्थ महत्वकांक्षाएं थीं,
माता-पिता को सुख देने की कामना,
स्वयं को व्यवस्थित करने की खुशी,
देश समाज को कुछ देने की ललक,
सब धरी की धरी रहती दीख रहीं हैं,
आरक्षण की तलवार ललकार रही है,
बुद्धि पाकर भी बुद्धू बनाया जारहा हूँ,
पाप न किया पर पापी बनाया गया,
मै विद्या का मंदिर छोड़े जा रहा हूँ.


अलका गुप्ता 

कौन बहाएगा गंगा ज्ञान की ,
शिक्षा के इस व्यापार में ...?
भौंचक्का खड़ा है नौजवान ...
आपाधापी के इस माहोल में ।
क्या करेंगे डिग्रियों का ...?
बहुत बड़ी है लाइन...ये
बेकारों की इस संसार में ।।
आप भी कहने लगे ...
लो !मसले हैं आम ...यह ।
फ़ालतू वक्त कीमती आपका ।
जाया... हम करने लगे !!!
बहुत हुआ... हटो भी ...
खुशनुमा इस माहोल से ।
फिर भी एक बार ....
बस एक बार ....
सोंचो तो भाइयों !!!
हमने ही हमको पहुँचाया क्यूँ ?
इस अंजाम में ....
पोटली अधिकार की ...
समेट ली पास में ...।
कर्त्तव्य परे सकेल दिया ...
आज की सरकार ने ।।
नेताओं के जाल में...
अश्रु भरे सरस्वती सिसक रही ...
विद्यालयों के हाल में ....
विद्यालयों के हाल में


नूतन डिमरी गैरोला 
मैं नहीं कहता कि मैं उदास हूँ
खोया है बहुत कुछ
फिर भी
जीने की आश है
मैं नहीं कहता कि मैं उदास हूँ |
.
जरा पल भर रुका हूँ
ये कौन मेरे साथ है
ये धरती, ये हवाएं, ये बादल
सब तो मेरे साथ हैं,
जिस्म में धडकता दिल तो
अभी भी मेरे ही साथ है,
उठ चल, पुनः बढ़
ये मेरी रूह का आगाज है
मैं नहीं कहता कि मैं उदास हूँ


बलदाऊ गोस्वामी 
~उदास की घटना~

घटित-घटनाओं से,उदास पडी जीन्दगी है।
उदासी लम्हों से,नयन मेरी भीगी है।।
अपनी कर्मों से,बैठी मेरी ख्वाबें हैं।
टुटती उम्मिदों से,रोती मेरी जजब्बातें हैं।।
अपने कर्मों से,मानष की मिलती जीन्दगी है।
घटित-घटनाओं से,उदास पडी जीन्दगी है।।
जीन्दगी के हर आयाम से,संघर्ष नजर आती है।
चंद दु:खों से,संघर्ष भयभीत नजर आती है।।
कुदरत की आशिस से,मुश्बितें टुटती है।
माता-पिता की चरंणों से,दुवायें मिलती है।।




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
आज मुस्करा ले

कुछ खोया, कुछ पाया
लेकिन क्यों फिर
आज हिसाब करने लगा
जो खोया, उसमे क्यों
दर्द तू फिर तलाशने लगा

कोस रहा क्यों
खुद अपनी किस्मत
शायद पाने से ज्यादा
खोने का मलाल है
खुशी से ज्यादा
गमो से प्यार है

कब तक दर्द को
यूँ ढोता जाएगा
जो बीत गया
उसे भूल जा
जो पाया है
उसे गले लगा ले
आने वाले कल के लिए
आज मुस्करा ले


प्रभा मित्तल 
आज निराश हूँ ,इसलिए चुपचाप हूँ,
जिंदगी की दौड़ में में अकेला रह गया हूँ।
हारा नहीं ,फिर भी हार का अहसास है
साथी सब चले गए, मै ही पीछे रह गया हूँ ।
अपने मन का डिगता विश्वास जगाने को,
बैठा हूँ इस एकांत में,हार नहीं मानूँगा
फिर से उठ कर मंजिल तक मैं जाऊँगा,
लक्ष्य एक है ,एक दिन ऐसा आएगा ,
पापा के थकते कंधे मैं सहलाऊँगा,
चाहता था मैं सम्बल बनूँ परिवार का,
पूरा होगा स्वप्न माँ-पिता की आस का।
बस जरा व्यवस्था से थक गया हूँ
जिंदगी की दौड़ में में अकेला रह गया हूँ।
उदास हूँ ,इसलिए चुपचाप हूँ।


Pushpa Tripathi
जमाना साथ है , फिर भी अकेला हूँ 'मै'
बैठा ... थमा सा हर दर्द से उलझा हूँ मै

पूछता हूँ सवाल अपने आप से, कौन हूँ मै
निरुत्तर से खुद को बेबस हारा पाया हूँ मै

बगानों सा मन खस्ता हाल बेहाल हो गया
दूसरों से नहीं ...अपने आप से नाराज हूँ मै

जिंदगी की जद्दो जहद से परेशान इच्छाएं मेरी
सब की सब डूबी हुई ...... खारा पानी हूँ मै

फिर भी तो उठूंगा .. चलूँगा .. रुकुंगा नहीं मै
क्यूंकि यह रीत तो पुरानी है .... अभी नया हूँ मै

बाँध लूँगा आसमान को मुटठी में अपने अजेय मन हूँ मै
अँधेरा ही सही दो पल की जिंदगी में ... सवेरा हूँ मै ......


किरण आर्य 
मन की उदासी हाँ आज बैठी घेर मुझे
हर तरफ विषाद आक्रोश से उपजा क्षोभ
बाहें फैलाए लील लेने को आतुर संतोष

मन की आस बुझते दीये सी क्षीण होती
और मन सोचने को विवश बेबस सा
क्या खोया पाया दुनिया सिर्फ मोहमाया

तभी सामने संघर्षरत इक चीटी को पाया
गिरती संभलती फिर तत्पर प्रयासरत सी
क्या मेरा हौसला इससे भी है गया बीता

सोच यहीं हौसले ने मेरे बुझते मन दीये को
किया फिर आस से रौशन छंट गया अँधेरा
आस की रौशनी से मुस्कुरा उठा मन का हौसला



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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