Saturday, March 30, 2013

28 मार्च 2013 का चित्र और भाव




दीपक अरोड़ा 
रंगों के मौसम से,
थोड़ा रंग चुरा लिया।
कोई न मिला 'अपना' भीड़ में
तो 'परायों' को गले लगा लिया...


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
हर रंग की रंगत देखी
रंग से रंग बनते देखा
रंग का गरूर उड़ते देखा

एक रंग की थी ख्वाइश
कितने रंगों में तूने रंग डाला
बढ़ा हाथ हर रंग अपना लिया

बस आस इतनी अब बाकी
डोर दोस्ती की न टूटने पाए
प्रेम रंग इस पर चढ़ता जाए


Govind Prasad Bahuguna 
ये हाथ संगीन नहीं रंगीन हैं
इन्होने किसी के गालों का स्पर्श किया
किसी के मन की गाँठ को खोल दिया तो
किसी को बंधन में बाँध दिया
किसी को रंग में सराबोर किया
तो किसी को नृत्य में संकेत किया
ये हाथ हैं और हथेलियां भी
कोमल भी हैं और मजबूत भी


बालकृष्ण डी ध्यानी 
देख वो रूठे रंग

देख वो रूठे रंग
पानी में भीग भीग कर ना निकले
रह गये उन हाथों पर
छुट गये उन गालों पर
देख वो रूठे रंग .............

होलीका जल गयी
पर जला ना सका उसका अहम
उड़ा बहुत इधर उधर
फिनकों की तरह कोई ना पकड़ सका
देख वो रूठे रंग .............

परदेश भी गये रूठे रंग
पर वो ना ला सके उनको अपने संग
बस रोयें वो जी भरके आज
चार दिवारी के उस कोने संग
देख वो रूठे रंग .............

सुखा देख रो पड़ा वो रूठे रंग
पानी की ऐसी बौछार हुई
उनके दुखी मन और तन था बस
सार देश था हुआ जलमग्न
देख वो रूठे रंग .............

खुशी में वो तड़का दे गयी
वो रूठे अश्रु और वो रोते नयन
खली होली इस बरस चुभे वो रूठे रंग
मस्ती में भूले जो अपनों को अपने रंग
देख वो रूठे रंग .............

एक रंग के तिलक ने मेरा काम किया
मेर दिल को उसने सौ आराम दिया
देख दर्द अपनो का इस दिल ने महसूस किया
वो रूठा रंग आ संग मेरे मुझ संग हंस दिया
देख वो रूठे रंग .............


नैनी ग्रोवर 
कितने रंग मेरे हाथों में हैं, किस्मत मगर बेरंग हुई,
तुम गए दूर घर से, मैं बिरहन तेरी मोरे साजन हुई..

क्या करूँ शिकवा रंगों से, क्या गिला दुनियाँ से करूँ,
मेरी धानी चूनर पड़ गई फीकी, तेरी दुल्हन परचम हुई ...!!


डॉ. सरोज गुप्ता ...
हाथ में लगे हैं रंग
.................................
रेखाएं कभी रहती थी हाथों में ,अब रहते हैं रंगरसिया ,
क्रियाएं कभी करती थी हाथों से,अब रहते हैं रंगरसिया !

सब कहे मुझसे ,देखो उधर बिखरे हैं रंग ,
कौन उधर देखे ,जाने किधर बिखरे हैं रंग !

रंग कभी बिखरे थे चहुँ और,हाथो में अब रहते हैं रंगरसिया !

हाथ में लगे हैं रंग , नहीं धोते है देखो हम ,
साथ में हो जब रंगरसिया,काहे का है फिर गम !

पास कभी रहते थे हाथ में दस बीस,अब बस रहते हैं रंगरसिया !


Govind Prasad Bahuguna 
रेखाएं बहुत होती हैं,
लक्ष्मण रेखा ,हस्त रेखा ,
ललाट रेखा, पड़ोस की रेखा
सीमा रेखा, गणित की रेखा
या जीवन रेखा ?


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
लो जहाँ खींचीं थी रेखाएं, खुदा ने तकदीर की मेरी ।
उन हथेलियों में, अब रंग, प्रेम सौहार्द का चढ़ा है ॥

जब भी उठे ये हाथ, भीख को ना समझना मेरे दोस्तों ।
ये भरे हैं प्रेम से, ये आपके आगे, दुआओं के लिए बढ़ा है ॥

लाख पहने हीरे,नगीने, रत्न कोई, मेरे रत्न निराकार ।
इन रंगीन हथेलियों में, आप सभी के प्रेम का नगीना जड़ा है।


अलका गुप्ता
इन हाथों में गुर दिखे लकीरों के रंग भी |
छोड़ विविध छाप अपनी हैरान हैं दंग भी |
रंग-रंग के रंग खिले अंग हास-परिहास में
मचलें दिल दीवाने फागुन की बरसात भी ||


किरण आर्य 
रंग जीवन के
विविध और निराले
हाथ मैंने इसमें रंग डाले

हर रंग कहे एक कहानी
कहीं लहू का रंग सुर्ख लाल
कहीं लहू हो गया है पानी

कहीं झूट अँधेरे सा है काला
कहीं झूट सफ़ेद कैसा घोटाला

कहीं सावन के अंधे सी हरियाली
कहीं हरी दूब सी चेहरे की लाली

केसरिया सा खड़ा अडिग हौसला
जैसे हो खुशियों का घोंसला

रंगों का महत्व पहचानो
रंगों से जीवन रंग डालो

रंगों बिन जीवन है रंगहीन
जैसे भटके ख़ुशी की चाह में दीन हीन


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Tuesday, March 26, 2013

होली पर हास्य रंग





नैनी ग्रोवर 
क्यूँ प्रति जी हमपे ऐसा, हाय जुलम ढा रहे हैं,
बिरह लिखने वालों से, हास्य-व्यंग लिखवा रहे हैं
बुरा न मानो होली है

बालकृष्ण डी ध्यानी, और रघु जी, भगवान् सिंह जयाड़ा,
पीकर भांग मंच पे देखो, कितना हुडदंग मचा रहे हैं..
बुरा न मानो होली है

आनंद कुनियाल, दीपक आरोड़ा, और गुरुवर वीरेंदर जी,
देख देख कर, सबकी ता ता थैया, मस्त ढोल बजा रहे हैं...
बुरा न मानो होली है

किरण, अलका, पुष्पा, सुनीता, रामी, ममता, और सरोज दी,
उषा और नैनी संग मिलके, हाय हाय बेसुरे गाने गा रहे हैं ...
बुरा न मानो होली है


Govind Prasad Bahuguna 
मैं होला तुम होली
राग रंग में डूबे हमजोली
बांह पकड़कर बेणी खोली
सब मिलकर करते हैं ठिठोली
मैं होला तुम होली I I


भगवान सिंह जयाड़ा 
क्या होली होती थी दिल्ली में ,
जब बैठ्ते सब यार मिल के ,
महफ़िल जमती थी सब की ,
बस फिर तो क्या कहना बस ,
होली तो होली होती थी हमको ,
गले मिलना गुलाल के संग ,
वाह क्या समा होता था वह ,
मन मस्ती में झूमता सबका ,
क्या मजा आता था सब को ,
नाचते गाते थे सब मिल कर ,
क्या होली होती थी दिल्ली में ,
जब बैठ्ते सब यार मिल कर ,


बालकृष्ण डी ध्यानी 
होली पर कविता

होली की कविता लिखूं
छंद व्यंग हास्य रचना लिखूं
इसमें अपना सा लिखूं
या फिर पराया सा लिखूं
होली पर कविता लिखूं............

रंग गाल गुलाल लाल
उड़े मन बाजे मृदंग ताल
गीत और रंगों की बौछार
भावो विभोर कल्पना लिखूं
या यथार्थ या फिर सपना लिखूं
होली पर कविता लिखूं............

जीजा साली घरवाली
आधी,पूरी या बहार वाली
भांग ढोलक न्रत्य रास
खींचा खींची बयां पकड़ा पकड़ी लिखूं
या जोरा जोरी या सीना जोरी लिखूं
होली पर कविता लिखूं............

होली तो मन भोली है
उड़ते रंगों की भाव विभोर टोली है
ना आपना ना यंहा पराया
सब एक रंग आज एक समाया लिखूं
महंगाई या गरीब लिखूं
होली पर कविता लिखूं............

सुखा है सुखी होली है
आँखों से आंसूं की पिचकारी सी गोली है
व्यर्थ जाता पानी देखकर
क्या ये भारत वर्ष की शुभ होली है लिखूं
या बुरा ना मानो होली है लिखूं
होली पर कविता लिखूं............


Pushpa Tripathi
 - होली के दिन तुम रहो तैयार .....

घर आई थी ईद दिवाली
अब तो होली की है बारी
अबीर गुलाल .. लाल गुब्बारे
होली के संग हुड़दंग है भारी ....

बच्चों की तो मांग बढ़ी है
पिचकारी की डिमांड बढ़ी है
रंग सजीले गुब्बारे पाकर
छिपे छिपाए फेंक रहे है .....

काका जी ने टोपी पहनी
आँख बचाए भाग रहे थे
गिरे धाय से रंगीन टब में
फिसले पाँव से टंगड़ी टूटी ......

डॉली आंटी सज धज आई
अंकल पर वो खूब भरमाई
राह कटीली निकल रही थी
बच्चों ने फिर शामत लाई ......

अब तो राह चलना दुश्वार
जाने कैसी होगी भरमार
खातिरदारी खूब चलेगी
होली के दिन रहो तैयार


अरुणा सक्सेना 
होली के हुडदंग में सब जन गाये फाग
अलाप कहीं से ले रहे और कहीं का राग

भोर भये जब मच गया होली का धमाल
सराबोर तन हो गया मन हो गया निहाल

गुजिया और पकोड़ों में भाया स्वाद भांग का
कदम उठाये ज़मीन पर मज़ा ले रहे उड़ान का

शुभ हो शुभ हो होली पर्व सबको खुशियाँ ही मिले
रंग भरे इतने जीवन में जो कभी न कम पड़ें ....


Neelima Sharma 
भाटिया जी खुश हैं
आज उन्होंने जमकर खेली हैं
साथ वाली अहलावत भाभी से होली
हर बरस बीबी के संग होली मानते थे
एक चुटकी रंग गाल पर लगाकर
बस खुश हो जाते थे
इस बार होली मिलन मैं जाऊँगा
जम कर होली मना ऊँगा
सोच कर मन ही मन हर्षाये
बीबी घर पर खेले होली
कॉलोनी के सारे युवा ,
उम्र के हो या मन से
होली मिलन में खेले होली
आज तो भैया जम के

घर आकर हाल जो देखा
मन ही मन घबराए
उन्होंने ने तो एक सिर्फ एक
अहलावत की जोरू संग खेली होली
यहाँ अहलावत कृष्ण कन्हैया बन
कॉलोनी मैं छाये
क्या बूढ़ी क्या कमसिन बाला
खुद उनकी अपनी बीबी
रंग रही थी उनके दुश्मन को
घर के बाहर लगा के ताला

हाथ पकड़ कर बाँह मरोड़ कर
बीबी को घर लाये
पलट के बोली
बुरा न मानो यह तो थी होली
देवर के संग बन के हम जोली
आज तो ज़म्के खेली होली
घर रहते तो तुम संग होती
बुरा न मानो सजन यह हैं होली


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ........ 
अब की बार ~
प्रिये तुझ संग खेली होली कई बार
रंग संग किया तुझसे प्यार कई बार
प्रिये होली का रंग चढ़ा हमें कई बार
खेलन दे होली भाभी साली संग इस बार

इस होली हमको प्रिये तू छूट देई दे
भाभी साली को रंग खूब पोतन दे
भर - भर पिचकारी उनको मारन दे
आज मुझे तू होली उन संग खेलन दे


Govind Prasad Bahuguna 
भंग से त्रिभंग बने हम
और बिम्ब से प्रतिबिम्ब
मय से मादक बने हम
और रंग से रंगीन I
प्यार से प्यारे बने हम
और प्यास से प्यासे I I
और क्या कहें,
क्या- क्या बने हम,
देख के तस्बीर तेरी

Pushpa Tripathi 
- होली है भई होली ..
बुरा ना मानो होली है .....

मै तुम्हारे आँगन आ जाऊं
होली है रंग लगा जाऊं
अबीर गुलाल से चहरे का मेकअप
तुम्हे भूत पिचास बना जाऊं l

खाकर गुझिया रस सब मलाई
तुम्हे सुरमा भोपाली बना जाऊं
आँखे तुम्हारी बन जाए बंद कटोरी
तुम्हे ऐसे अंजन सजा जाऊं l



किरण आर्य 
बदल गया है भइया अब तो होली का हुडदंग
प्रेम बहुत कम दिखता दिखती है अब केवल जंग

दिखती केवल जंग रहा ना भाईचारा
अद्धे - पव्वे - ठर्रे ने माहौल बिगाडा

कहां रही अब वो ठंडी - ठंडी सी ठंडाई
कहां गूंजता फाग ढोल लेती अंगडाई

'ढिंक चिका' 'मुन्नी बदनाम' यही शोर गूंजे है
बूढे बच्चे सभी आजकल इसपे ही झूमे हैं

सीधे सादे लोग रहें अब डर के घर में
पता नहीं क्या बुरी खबर कल आ जाये पेपर में

होली के बहाने विकृत मानसिकता उभर कर आये
हाय भरे चौराहे पर अस्मिता आंसू खड़ी बहाये

अबीर गुलाल की जगह लहू से होली खेलें
मानवता सहमी हुई लगे स्वार्थ के मेलें

होली सिर्फ छुट्टी का दिन ही बनकर ना रह जाये
सोचो - सोचो देर कहीं ना वर्ना अब हो जाये


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Sunday, March 24, 2013

23 मार्च 2013 का चित्र व् भाव





नैनी ग्रोवर 
ऐ भारत माँ के लाडलो, तुम्हें कोटि कोटि प्रणाम,
धन्य-धन्य तुम्हारी वीरता, धन्य-धन्य है बलिदान..

जिसकी खातिर हो गए तुम, भरी जवानी में कुर्बान
गीत तुम्हारे गुनगुना रहा है, आज सारा हिन्दुस्तान .. !!!



बालकृष्ण डी ध्यानी 
शहीदों को सलाम

फिर आया २३ मार्च
ये आंखें नम हुयी
आँखों में चमक बन
फिर वो छाये वो
फिर याद आये वो

शहादतों की शहादत पर
फिर मेरा सलाम
याद करूंगा आज उनको
कल फिर करूंगा आराम
फिर याद आये वो

कंहा खो गये वो
झूल गये थे जो मेरे लिये
अपनो के लिये
अपने में खो गये थे वो
फिर याद आये वो

माँ तुझे सलाम
तेरे इन सपूतों को मेरा प्रणाम
फिर आयेगा २३ मार्च
फिर सुमन पुष्प अश्रु होंगे मेरे हाथ
फिर याद आये वो

फिर आया २३ मार्च
ये आंखें नम हुयी
आँखों में चमक बन
फिर वो छाये वो
फिर याद आये वो



Pushpa Tripathi 
धन्य है धरती के सुपुतों
धन्य है तुम्हारा बलिदान
भारत माता के रक्षक बनकर
धन्य हुआ सारा संसार ....

मेरा रंग दे बसंती चोला रटते
हर दिल में देश प्रेम फैलाया
अपनी धरती पर मिटने वालों
हे वीर जवानों तुम्हारे जज्बे हौसले को शत शत सलाम .. जय हिन्द


अलका गुप्ता 
.......शत-शत नमन है मेरा इन वीर शहीदों को .......

सोचो माँ के ह्रदय को... जिनके लाल शहीद हो जाते हैं |
न्यौछावर वह प्राण... आहुति ममता की भी बन जाते हैं |
संस्कार ये वीरों से देशहित पर सबका वह गर्व बन जाते हैं |
धन्य है माँ जिनकी हुंकारों से धरती माँ के बेटे वे कहलाते हैं ||



ममता जोशी 
किसी वक़्त आज सा ही मार्च का महिना रहा होगा,
जब पेड़ पलाश के सुर्ख फूलों से लद रहे होंगे,
गेहूँ की पकती बालियाँ और चेत्र का मनमोहक चाँद होगा ,
जब कोयल की प्यासी कूक से मन उद्वेलित हो रहा होगा,
और ऐसे बावरे बसंत में
तुम्हारी आँखों ने १ नए मुल्क का ख्वाब देखा ,
और तुमने उस सपने के लिए शहादत दे दी ,
तुम शहीद हो गये भगत...

लेकिन आज उस सपने का क्या हुआ ,
१०० साल बाद भी मुल्क वहीँ कोल्हू के बैल की तरह घूम रहा है ,
वतन के हर जख्म से खून रिस रहा है ,
बस शासन करने वालों के हाथ बदल गए हैं,
वो विदेशी थे अब स्वदेशी हैं......

आज फिर वही मार्च का महिना, वही पलाश के सुर्ख फूल और वही बसंत ,
और आज फिर देश शहादत मांगता है ,
लेकिन मेरी नीदों में तो बस क्षणिक सुखों का सपना रहता है,
३० तारिख का इंतज़ार करते करते मुझे २३ तारिख याद ही नहीं रहती ,
मुझे तुम्हारी शहादत याद ही नहीं रहती भगत,
क्यूंकि मै भारत माँ की नालायक औलाद हूँ
मै भगत सिंह नहीं हूँ.


भगवान सिंह जयाड़ा 
शहीद दिवस है आज ,
भारत के बीर सपूतों का ,
भारत माँ के वीर सपूतों ,
तुम्हें कोटि कोटि प्रणाम ,
मात्रि भूमि को शीश चढ़ाया,
दिया प्राणों का बलिदान ,
गुलामी में जकड़ी थी माँ ,
यह सहन कभी न किया ,
आजादी का जोश दिलों में ,
युवावों में नव संचार किया ,
बनें अंग्रेजो की मुसीबत ,
उन का चैन हराम किया ,
चूमा हंस कर फांसी का फंदा ,
मात्रि भूमि को नमन किया ,
बलिदान तुम्हारा याद आज ,
सारा भारत वासी कर रहा ,
बलिदान दिवस पर सब मिल ,
आज तुम्हें ,शीश नवा रहा ,
भारत माँ के वीर सपूतों ,
तुम्हें कोटि कोटि प्रणाम ,



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ एक सन्देश ~
मैं हूँ भगत, मैं हूँ राजगुरु, मैं हूँ सुखदेव
हम ने देखा था सपना भारत की आजादी का
हमने प्रेम वतन से किया, मोहब्बत उससे निभाई
मतवालों संग चढ़ गए शूली, जब इसकी बारी आई

आज भारत आजाद है, यह देख हमें खुशी होती है
कुर्बानी रंग लाई आखिर हमारी, देख हमें गर्व होता है
संस्कृति संस्कार लुप्त हो रहे, देख हमें दुःख होता है
इंसानियत को भूल चुके हो, आज ये हमें दर्द देता है

शुक्रिया, साल में एक बार आप हमें याद कर लेते है
कोई बात नही है, देश को रोज तुम याद किया करो
सोचना देश के लिए जरुरी है सोच उसकी किया करो
जब वक्त आये कुर्बानी का तो न फिर पीछे देखा करो

जय हिन्द ! वन्दे मातरम ! जन जन हिन्दुस्तान !



अशोक राठी 
ऐसा भी क्या हुआ कोई मेरी बोली नहीं बोलता
बंद दिमाग, बंद दरवाजे कोई खिडकी भी नहीं खोलता
जल रहा है देश घर के ही चिरागों से
लानत है किसी का खून भी नहीं खौलता


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Friday, March 22, 2013

21 मार्च 2013 का चित्र और भाव


अशोक राठी 
इंसान के लिए सन्देश ----
परिस्तिथियाँ जो भी हों
संगठित हों अपने पैरों से
थामें रहे जमीं को
पार पा ही जायेंगे चुनौतियों से

दीपक अरोड़ा 
आओ, एकता में बल है का पाठ पढाएं
बोलकर नहीं, प्रेक्टीकली समझाएं...
पडेगी गर हममे फूट, तो दुश्मन लेगा लूट
आओ सब मिलकर यह संदेश फैलाएं.

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
हम पंछी ..

लांघ सीमायें अपनी,..
हम दुनिया मिलाने चले ..
प्रेम, स्वतंत्रता ...
खुशहाल जीवन का भेद ..
शांति तलाशते इंसान को
ये भेद समझाने चले ...
भांति२ के दाने चुगे ..
भांति२ का बहता नीर ..
सबकी इक सी आह देखी ..
देखि सबकी इक सी पीर ..
आत्मसात कर ना सके।।
ये नफरत के अहीर ..
इक सबका उपरवाला ..
इक सबका पीर ..
इक सबका आसमां ..
क्या खींच पायेगा तू इसमें लकीर ?
समझ हमसे ओ अधीर


प्रजापति शेष .....
माना कि हम खग छोने हैं
पंखी अभी तक बोने है।
पंजे भी मजबूत होने है।
धरती पर फिसलन फैलाने वालो
क्या तुम्हे पता है कि हम
कल को आसमान के होने है।


किरण आर्य 
दुनिया ये बेढंगी
रंग इसके देख
अवाक है खड़े ये पंछी
संगठन या एकता
जिसे दर्शा रहे है
ये मानुष हाँ मानुष क्यों
पथ भ्रष्ट हुए जा रहे है
केवल निज में हो सीमित
मानवता को शर्मसार
ये किये जा रहे है
पंछी इनके स्वार्थ पर
आसूं बहा रहे है
जिस तरह विलुप्त
हो रहे ये पंछी
ऐसे ही मानवता
हो जायेगी विलुप्त
मानुष रह जाएगा
अकेला नितांत अकेला


अलका गुप्ता 
चिड़िया हूँ मैं नाज़ुक पंखों वाली |
परे आसमान से सागर पर उड़ती |
एक साथ मिल नई दूरियाँ नापा करती |
फुदक-फुदक कर भागा करती |
नन्हें-नन्हें कदम बढ़ाती |
एकसाथ ही हैं हम इठलाती |
नित नए-नए ख़्वाब सजाती |
मटक-मटक कर गाने गाती |
तैर सागरों पर... कभी उड़ जाती |
एकता में झुण्ड के इतराती |
मैं चिड़िया हूँ नाजुक पंखों वाली |
टुकुर-टुकुर लहरों पर मिल खाना ढूंढू |
वर्फीले समुद्र पर यहीं वसेरा अपना |
मिल कर सब चहकूँ नाचूँ झूमूँ |
चिड़िया हूँ मैं नाज़ुक पंखों वाली |
आते हैं रोज आजकल प्रतिबिम्ब यहाँ |
देख-देख खुश हो जाते |
खींचकर तश्वीरें खूब ले जाते |
पागल खाने के मित्रों से ....
कविताएँ हैं रचवाते |
समेटकर फिर ब्लॉग पर हैं सजाते |
इसी बहाने सब मिल जाते |
कुछ नया सीखते और सिखाते |
चिड़िया हूँ मैं नाज़ुक पंखों वाली |


बालकृष्ण डी ध्यानी 
पंछी

पंछी रे पंछी
तेरा यंहा ना ठिकाना
दो पल सुस्ता ले
दूर देश है तुझे जाना
पंछी रे पंछी....................

एकता ही तेरा बल है
पंख तेरे सबल है
कौन दिशा निहारे
कौन और तुझे जाना
पंछी रे पंछी....................

आकाश तेरा घर है
तू ठहरा अब किधर है
बंजारा है मेरी तरह
घूम ले अब दीवाने
पंछी रे पंछी....................

कारवाँ बढता चल
देख छुटे ना वो पल
ऐ मौसम ना जाये
यूँ ही हम बिन गुजर
पंछी रे पंछी....................

पंछी रे पंछी
तेरा यंहा ना ठिकाना
दो पल सुस्ता ले
दूर देश है तुझे जाना
पंछी रे पंछी..............


बलदाऊ गोस्वामी 
आस भरी नयन से,खण्डे हम उदधि के पास।
हे मानष सुनले पुकार,बंधी है कब से हमारी शांस।।
एकता की दुसाला ओढें,चाहे दु:ख हो हमारे साथ।
पर मानष को कहना चाहते,अपने मन की बात।।
प्रकृति नियम के अनुकूल,ले तुम अपने को संभाल।
पाछे-पछताएगा,जब प्रकृति करेगा तेरा बुरा हाल।।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
इस रंग - बिरंगी दुनियां में हम भी रहते है
लेकिन एक साथ चलने की ख्वाइश रखते है
जीवन तो हम सब अपना - अपना जीते है
लेकिन संगठन में शक्ति है ये रोज सीखते है
धरती पर चलना हो या आसमां में उड़ना हो
एकता को जीने का एक मंत्र हम समझते है


Yogesh Raj .
न कोई मंजिल, न कोई ठिकाना,
पता नहीं, कहाँ है हमको जाना,
फिर तय कर रहे सफर अंजाना,
उदासी तो छाई है, पर संतोष है,
साथ ही जायेंगे जहाँ भी है जाना,
भले ही न मंजिल न कोई ठिकाना


डॉ. सरोज गुप्ता 
तू पंछी अद्भुत
~~~~~~~~~
हे अद्भुत पंछी !
रचनाकार ने तुझे
गढने में बहुत महंगी मिट्टी
दूर किसी दुधिया पहाड़ से
विशेष विमान से मंगवाई होगी!
साँचा -मांजा एक
पानी में मिले पानी जैसा !
हम मनुष्यों को देख
भांति-भांति संभ्रांत
करते तुम समेत
सबको ही आक्रान्त
हमको तुम जैसा
क्यों न बनाया नाथ ?
तू तो देखन में छोटा पाकेट
प्यारा लगे जैसे उड़े अबीर !

हे अद्भुत पंछी !
तेरा छोटा सा बदन,
सफेदी से लिपा पुता ,
चौंच तेरी मतवाली ,
पीली पीली रंगडाली !
तुझे लगे न कही नजर ,
काले बालों का चंवर,
सर पर सजा डाला !
तू चले पैंयाँ-पैंयाँ ,
तेरे पंजे करे नृत्य ,
झूम-झूम जाए मनुष्य,
तू है सृष्टि का सत्य !

हे अद्भुत पंछी !
तू देखे टुकर-टुकर ,
जैसे मैं हूँ जोकर !
ख़्वाब देखूँ यह अनोखा ,
सोकर या जागकर ,
सारी दुनिया खोकर ,
बन जाऊं तेरी नौकर !
संग मिल जाए तेरा तो ,
न्यौछावर कर दूँ रोकड़ !


भगवान सिंह जयाड़ा 
हम पक्षी हैं मर्जी के मालिक ,
फिर भी एक शंघ में रहते है ,
दाना चूंगना अपना अपना ,
लेकिन एक साथ हम चलते है,
द्वेष भाव नहीं कुछ आपस में ,
हम सदा प्रेम प्यार से रहते हैं
यहाँ अपने पराये का भेद नहीं ,
हम सब देश बिदेश से आते हैं
एकता में होती है शक्ति सदा ,
यह सन्देश हम सब को देते है ,
हम पक्षी हैं .................


Pushpa Tripathi 
- नन्ही हूँ .........

किलबिल स्वर गुंजन मै गाऊं
फुदक फुदक कर सुर लहराऊं
भीगे तल पर ताल रचाकर
मेरी तुमको बातें बतलाऊं l


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Wednesday, March 20, 2013

19 मार्च 2013 का चित्र और भाव



Pushpa Tripathi 
- राह चले ...

चलना है साथ
हर कदम एक साथ
ग़मों के खारे पानी से
गुजरते हुए ..अपनों के साथ l

न लढ़खड़ाये कदम
कोई छोटी हो बात
द्वीप हो या महासागर
हम तैर चलेंगे पार l

जीवन छोटी है
हौसले बड़े
उम्मीदों के अथाह लहरों पर
हम सजक .. साहसी अड़े रहेंगे


दीपक अरोड़ा 
अकेले हैं,
तो क्या गम है...
राह है, रहवर हैं,
मंजिल पा ही लेंगे...


नैनी ग्रोवर
चल थाम के हाथ, कहीं बहुत दूर चले,
जहाँ बस, उसकी कुदरत का नूर ही नूर चले..

उजाड़ डालेगा, हमारा घर-परिवार भी,
जब जब इस इंसान का, घिनौना फतूर चले..

खुद को ही लूट रहा, दीवानेपन की हद्द देखो,
कैसे समझेगा ये, अभी मन में इसके गरूर चले..

हम तो मिट जाएंगे, इस ज़मीं से, ऐ खुदा,
देखें तेरा ये बन्दा, कब तक धरती पे हजूर चले...!!


बालकृष्ण डी ध्यानी 
हर पग चले

हर पग चले अब यूँ साथ साथ
रहना हमे अब यूँ साथ साथ
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......

रेत पर चलते यूँ हाथ पकड़ना तेरा
देता है दिल को दिलासा तू साथ साथ
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......

लहरों की हलचल बड़ती है प्रेम पल पल
बीते ना ये एक पल भी अब बिना तेरे साथ
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......

परछाईयों की मिलन की निकली है बारात
सजना हम संग यूँ ही रहेंगे एक दूजे के पास
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......

हर पग चले अब यूँ साथ साथ
रहना हमे अब यूँ साथ साथ
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......


Pushpa Tripathi 
- जीवन सफ़र ...

जीवन में साथ चलना है प्यार
झूठे तू तकरार में होता है प्यार ..

खट्टे मिट्ठे कभी कडवे सच सा है स्वाद
जिंदगी के हर रिश्तों में बंटता है प्यार


किरण आर्य 
साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल

निभाना हो सकता है उबाऊ भी
निभाने में गलतियों की गुंजाईश बड़ी
रुक जाती है जिंदगी आवाक सी खड़ी

साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल

चल हमसफ़र राह में हाथ थाम मेरा
तुझमे विलीन हो पा जाऊ वजूद मेरा

साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल

साथ चलने में ही है निर्वाह की कूवत
राह की रूकावटे सहज नहीं दुरूह बहुत
साथ चलना ताउम्र तेरा है मेरी ताक़त

साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल

साथ चलना तेरे है ना मजबूरी मेरी
प्रेम तुझसे है किया ये इल्तिजा मेरी

साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल


अरुणा सक्सेना 
दुनिया हमको बहुत सताए
तरस ज़रा ना हम पर आये
आओ अब हम दूर चलेंगे
कहीं दूर अब हम घर लेंगे
हाथ थाम अब साथ चले हम
मंजिल पाकर ही लेंगे दम


किरण आर्य 
साथ तेरा मेरा चंद कदमो का क्यों रहे
उम्र भर का नाता चिरायु आजीवन रहे

सिर्फ निर्वाह के लिए साथ क्यों हम रहे
चले हमकदम बन हमसाया से हम रहे

तू दीये और बाती सा तेरा मेरा साथ रहे
बहती नदी के मानिंद संग हम चलते रहे

सिर्फ निर्वाह के लिए साथ क्यों हम रहे
चले हमकदम बन हमसाया से हम रहे

ना कस्तूरी सी प्यास हो हमारे दरमियाँ
अहसासों में भी रवां एक दूजे के हम रहे

सिर्फ निर्वाह के लिए साथ क्यों हम रहे
चले हमकदम बन हमसाया से हम रहे


Pushpa Tripathi 
- लगन लगी

मेरा आधार है तुम्हारा साथ
पल को जन्दगी तुम्हारे साथ ...

मन के ह्रदय पलट पर तुम
रहती खुशियाँ तुम्हारे साथ ...

भोर हो या रात .. सब दिन समान
साँसों की डोर तुम्हारे साथ ...

पाकर तुम्हारे स्नेह रस में
पग पग निखरूं तुम्हारे साथ ....

आनंद से हुई मन बावली
तन मन धन वारूं तुम्हारे साथ


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
मुझे तो आज देखना है
उम्र को किसने देखा है
तेरा यूँ मेरे साथ चलने से
हर राह आसन लगती है

हाथों में तेरा हाथ हो
हर मोड़ पर तेरा साथ हो
मन मंदिर में प्रेम का वास हो
तेरी साँस संग मेरी साँस हो

एक दूजे को सुनना समझना है
हर ख़्वाब को हकीकत बनाना है
इस प्यार को अहसास बनाना है
हर अहसास को खास बनाना है


सुनीता शर्मा
प्रेम के परिंदे कितने सुंदर होते
निस्स्वार्थ की दुनिया में मग्न रहते
दोस्ती का ये हर फ़र्ज़ निभाते
जीवन जीने की प्रेरणा सबको देते !

कोमल होते है ये परिंदे
लहरों में आशियाना
सुख दुःख से अछूते
शालीनता के परिचायक

साथ चलते एक दूजे के
नर नारी का भेद मिटाते
अमन चैन का प्रतीक बनके
देखो हम सभी को खूब लुभाते

तन के काले पर मन से उजले है
अंटार्टिका के कुशल वकील हैं
वात्सल्य समुद्र इनका संसार है
जग में कायम अब भी प्यार है


अलका गुप्ता 
चलें साथिया कदम से कदम मिलाकर हम |
खारे समुन्दर या दुनिया के हर छोर पे हम |
मिले जो साथ तुम्हारा संवरे ये जीवन हमारा
मंजिले हर गम आसन बना लेंगे मिलके हम ||


डॉ. सरोज गुप्ता 
चल उठा पग
बुला रहा जग
टेढा-मेढा मग
मग पग जग
जग पग मग
पग पग ठग
ठग ठग ठग
जग जग जग !

हर पल छिन
छिन छिन छिन
लहरें उठती
लहरें भिगोती
लहरें चूमती
नहीं रुकती
हमें छुएं बिन
बिन बिन बिन !

हम दोनों मिल
बना एक झील
मिला दो दिल
दिल दिल दिल
ठोंक देंगे कील
खा न पाए चील
रख न पाए तिल
तिल तिल तिल !


भगवान सिंह जयाड़ा 
मैं हूँ नाजुक एक पेंग्विन ,
धुर्बों पर था मेरा बसेरा ,
मैं हूँ बर्फ पर चलने वाली ,
रेत पर अब चलना सीखूं
बर्फ पिघल रही धुर्बों पर ,
सायद कल रेत ही हो जाए ,
अस्तित्वा अपना बचाने ,
पहले ही कुछ दुःख उठा लें ,
कष्ट तो बहुत हो रहा हमें ,
पर कल की चिंता सताए ,
नहीं मिलेगी बर्फ चलने को ,
तब हम क्या कर पायेंगे ,
इस लिए परिस्थिति के साथ ,
तब हम दुःख कम उठाएंगे ,
इन्शान की भूल का खामियाजा ,
अब हमें हर पल पल संताए ,
मैं हूँ बर्फ पर चलने वाली ,
रेत पर अब चलना सीखूं ,



Govind Prasad Bahuguna 
जीवनपथ केहम दो राही
संग चले मन मुस्काई I I
मुक्त हुए हम सब बंधन से
जात पांत के हर क्रंदन से I I



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Monday, March 18, 2013

17 मार्च 2013 का चित्र और भाव





कल्पना बहुगुणा 
छोटा बच्चा जान के मुझसे ना टक्राराना.रे
जो टक्रायेगा उसका यही अंजाम होगा रे
तुम क्या चीज़ हो हम पत्थर को भी मात दे सक्ते है रे
चाहे तो आजमा के देख लो रे

Jayvardhan Kandpal 
डर का कोई जिकर नहीं है.
कल की कोई फिकर नहीं है.
ये निश्छल बचपन है मेरा,
दुनिया की कोई खबर नहीं है....


नैनी ग्रोवर
छोटे-छोटे पाँव रख कर, आसमान तक जाउंगी,
रोको मत मुझे कोई, अब मैं ये सह ना पाऊंगी..

देखना है दुनिया को, मुझे सितारों पे होके सवार,
नहीं डर मुझको इसका के, फिसल के गिर जाऊंगी.. !!


सुनीता शर्मा 
देखो मुझको माँ बाबा डांट रहे ,
चिल्लाकर रोकर वापिस बुला रहे ,
मेरी बढ़े नन्हे कदमो को रोक रहे ,
गिरने का भय मुझको दिखला रहे !

बड़े भटका रहे हमे इतना भोला हूँ क्या ,
पुरातत्व स्मारकों में रखा है क्या ,
अपनी मंजिल ढूँढने से डरना क्या ,
छोटा हूँ पर बडो से कम हूँ क्या !

हर कदम पर शीश नवा रहा,
कदमों का विश्वास जगा रहा ,
पीछे संसार छूटता देख रहा ,
अपनी उपलब्धियों पर हंस रहा !

जीवन पथ होता चट्टान सा कड़ा ,
दादा जी की कहानियों में पढ़ा ,
मुश्किल से हर कदम मेरा बड़ा ,
यहाँ पहुँच मेरा हौसला और बढ़ा !

हाँ -हाँ आज मैं बहुत खुश हुआ ,
नही पता कैसे यहाँ तक पहुँच गया ,
मन मौजी हूँ इस पत्थर की औकात क्या ,
जब चाहे अपनी नयी राहें खोज लिया !

बचपन से ही भविष्य नीव देखनी ,
हमे अपनी दिशा स्वयं बनानी ,
मिटे अधकार आए उजाले की रौशनी ,
हमने ही भारत की दिशा हालत सवारनी !


अरुणा सक्सेना 
रोज़ स्कूल जाना पड़ता था, दिन भर कलम चलाना पड़ता था
आज बहुत है मुझको फुर्सत ,स्कूल बंद हुए हैं अभी बस

नटखट मासूम नज़र हूँ आती , नानी शैतान की मैं कहलाती
मासूम समझ कर ना फुसलाना ,दिखा रही हूँ नया कारनामा


रोली पाठक .....
चाँद को भी छू लूँगी
बादलों पर बैठ कर
नन्हे हैं कदम मगर
आसमां छूने की ख्वाहिश है....


बालकृष्ण डी ध्यानी 
वो मंजील आज

दो एकम दो
दो दोनी चार
पा लिया मैंने सारा संसार
ना मानूंगी हार जाऊँगी उस पार
मेरे मन देना तू मेरा साथ

दो तियां छेह
दो चौक आठ
मंजिल नही दूर अब मन भरा विशवास
देना होगा मुझको अब अपने से ही मात
मेरे तन देना तू मेरा साथ

दो पंजे दस
दो छक बाराह
खेल खेल में ही यूँ ही
इच्छा शक्ती जगेगी मेरी आज
मेरे मन देना तू मेरा साथ

दो साते चौदह
दो आठे सोलह
साथ मेरे है बम बम भोला
आके तू भी संग मेरे हो जा
मेरे तन देना तू मेरा साथ

दो नवम अठारह
दो दस मे बीस
देखो कितना आसन है ना
ये पहाड़े का संसार
मेरे मन देना तू मेरा साथ

सीख ले मन तू भी आज
छोटे छोटे बच्चों के साथ
इसी तरह ही पाना है तुझे
लक्ष्य की वो मंजील तेरी आज
मेरे तन देना तू मेरा साथ



Pushpa Tripathi
- आज मै ऊपर आसमां नीचे ...

इत्ता इत्ता पानी
गोल गोल रानी
लाल रंगीली जूती मेरी
मीठे मीठे बोल ....

इत्ता इत्ता पानी
गोल गोल रानी
करूँ शरारत जी भर मै तो
घर हो या कोई छोर ......

इत्ता इत्ता पानी
गोल गोल रानी
लुढ़क धुलक चढ़ जाऊं मै
न हो कोई डर ..........

इत्ता इत्ता पानी
गोल गोल रानी
नीचे आसमां ऊपर धरती
सब है झोलम झोल .........

इत्ता इत्ता पानी
गोल गोल रानी
चलूँ रास्ते बिन पैरों से
देखो मेरा कमाल ......

Virendra Sinha Ajnabi .
देखने वालों ये न समझो कि मै इसे तोड़ रहा हूँ,
कुछ टूटता देख नहीं सकता, मै इसे जोड़ रहा हूँ,
बड़े काम में लगती है ताकत और मेहनत दोनों,
मुझे थका देख ये न समझो मै आशा छोड़ रहा हूँ...


अलका गुप्ता 
मैं बचपन ! अनजान निश्चिन्त राह का पथिक एक |
मैं ढलता ! हसरतों की सीढियाँ चढ़ता हर पल अनेक |
रूठता मचलता झिझकता हंसता चहकता अबोध सा |
जैसे मिटटी हो कुम्हार की निराकार गीला लौंदा एक |

चढ़ता चला जाउंगा प्राचीरों की ढलानों पर |
चटकती हुई लावारिश खुरदरी तहरीरों पर |
माँ की चिंतित सी भयभीत हिदायतों के बीच ..
गुजरगा बचपन यूँ चहकते बहकते खेलों पर ||


डॉ. सरोज गुप्ता 
मैं चाहे बच्चा हूँ
~~~~~~~~~~
मैं चाहे बच्चा हूँ ,
नहीं अक्ल का कच्चा हूँ !
जोश नहीं है मुझमें कम ,
सामने आ जाए चाहे यम ,
लडूंगा मैं जब तक है दम ,
मैं चाहे बच्चा हूँ ,
नहीं अक्ल का कच्चा हूँ !!

मैं चाहे बच्चा हूँ ,
नहीं खाया गच्चा हूँ !
हटाने आया सबका गम ,
पिया मैंने कर्म का रम ,
हटा दूंगा फैला तम !
मैं चाहे बच्चा हूँ ,
नहीं खाया गच्चा हूँ !!

मैं चाहे बच्चा हूँ ,
बहुतों से मैं अच्छा हूँ !
फैला आतंक का कोला हल,
बनाया किसने यह खूनी बम,
कभी मानव था सुंदर तम ,
मैं चाहे बच्चा हूँ ,
बहुतों से मैं अच्छा हूँ !

मैं चाहे बच्चा हूँ ,
ईश्वर का दूत सच्चा हूँ !
दरारें मिटाकर लूंगा दम ,
करके सबका मन शम ,
विश्व-बन्धुत्व पढ़ाएंगे हम !
मैं चाहे बच्चा हूँ ,
ईश्वर का दूत सच्चा हूँ !!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~जिंदगी कहने दो !!!~
फोटो देखकर आप क्या सोचने लगे
हिम्मत या फिर हौसला देखने लगे
थोडा बडा होने दो, जिंदगी देखने दो
जो खेल है आज उसे जिंदगी कहने दो

आज का मेरा हौसला और मेरी हिम्मत
जिंदगी में एक दिन बनेगे ये मेरी ताकत
साथ चलकर ही बनेगी अपनी हर बात
तभी होगी मेरे जीवन की अच्छी शुरुआत



किरण आर्य 
मेरे हौसलों की उड़ान क्या कहिये
हाँ छोटा हूँ बहुत अभी हौसले बड़े

शरारती सा देखो मैं उल्टा हूँ खड़ा
चट्टानों सा अडिग हौसला मेरा है बड़ा

शैतानों के भी छुड़ा दूँ मैं छक्के खड़े खड़े
पानी है भरते मेरे आगे देखो बड़े बड़े

बच्चा समझ मुझे हलके में लेना नहीं
मैं हूँ भविष्य संभावनाए मुझमे है बसी

जाना मैंने चीटी चाहे होती है जीव छोटा
लेकिन हौसला उस सा ही रखता हूँ मैं खोटा

नादानियों में छिपी है कारस्तानियाँ मेरी
बच्चा समझ मुझे हलके में लेना नहीं
मैं हूँ भविष्य संभावनाए मुझमे है बसी


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Saturday, March 16, 2013

15 मार्च 2013 का चित्र और भाव






बालकृष्ण डी ध्यानी 
मन धुनी रमा

मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा

बुद्धि विचारों के द्वंद में फंसा मानस तेरा लक्ष्य है
आँखों को बंद करले दो पल ध्यान में खोजा राम की

मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा

प्रभु मेरे दौड़े आयेंगे मन तेरे मुस्कुरायेंगे
चिंता परेशानी तेरे वो तज और हर जायेंगे जय बोलो श्री राम की

मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा

देख कितना निर्मल तन है मुख मंडल ये मेरा मन है
इस मुख बसा प्रकाश मेरे प्रभु का वो तेज है

मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा

पलट देंगे तेरी कया जो पड़ी होगी तुझ पर बुरी छाया
सच्चे मन दो हाथों को जोड़कर एक बार शरण तो आज मेरे राम की

मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा

दीपक अरोड़ा 
मेरे प्रभु दिखते हैं, जब होती हैं बंद आंखें
बस राम राम रटता रहूं जब तक दी हैं प्रभु ने सांसें
उनका ही ध्यान धरूं.. उनकी ही पूजा में मग्न रहूं..
उनका ही गुणगान करूं.. सदा उनकी करता रहूं बातें..
जय श्री राम.. जय हो गुरू जी.


अलका गुप्ता 
गांधी जी के बंदर थे तीन |
दो तो धुनी रमा कर बैठे लीन |
एक को जमा राजनीति का खेल |
राम नाम का पीताम्बर डाल |
राज-घाट पर बैठा मौन |
नेताओं की भीड़ जुटी |
आमन्त्रण का चारा डाला |
आमने सामने जमा अखाड़ा |
बन्दर जी ने थी दुनिया देखी |
इतने जल्दी नहीं पिघलने वाले |
मन में थी अलग पार्टी बना लें |
जनता पर जो चढा है जादू |
आज जम कर आजादी के बाद भुना ले ||

आनंद कुनियाल 
सोचता हूँ आज अपने इन वंशजों को आजमा ही लूँ
पूर्वजों की खिल्ली उड़ाने में माहिर इन्हें जतला ही दूं
मुझे देख इनके शातिर दिमाग में
बिछी बाज़ी से तीन पत्ते खिंच लूँ
अपने को सृष्टि का सबसे काबिल
समझने वाले की सोच जरा परख लूँ

पहला पत्ता..
देखो साधू के भेष में शैतान बंदर
जाने क्या चल रहा इसके अंदर
मुझे बरगलाने राम धुन है रमेगा
मौका देख झपट हाथों का छीनेगा... मैं तो बहुत चालाक आदमी हूँ

दूसरा पत्ता..
अरे यह क्या देखता हूँ मैं भी गज़ब

कैसी ये प्रभु राम की लीला अजब
मैंने तो अमूल्य जन्म यूँ ही गंवाया
धन्य हे कपिल जो जीवन सधाया... मैं तो निपट मूरख प्राणी हूँ

तीसरा पत्ता..
इसे कौन भला क्यों ये सिखलाता है
या फिर देख हमें ये भी आजमाता है
एक पल ठहर ऐ बंदे झाँक जरा भीतर
कौन उत्पाती मानुष कौन सरल बंदर... मैं तो ठहरा अब भी अज्ञानी हूँ


नैनी ग्रोवर 
पहन के भगवा चोला, क्या-क्या खेल रचाते हैं,
भोले-भाले लोगों को, ये ढोंगी बाबा, बरगलाते हैं..

जो मन से हो साधू, उसे ज़रुरत नहीं आडम्बर की,
और जो सच्चे संत हैं, दूरदर्शन से दूर ही रहते हैं ...

विशवास करो अच्छे कर्मों पर, करुना हर प्राणी पे रखो,
उनके पीछे मत भागो, जो माइक पे शोर मचाते हैं ...

यही समझाने तो बदल के मैं यह, भेस आया हूँ,
मैं पवनपुत्र हनुमान, मुझे तो बस राम ही भाते हैं ...!!


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
सबहूँ गुणीजन संतो को मेरा प्रणाम ..
केसरिया चोला, ओढ़ करूँ, राम राम ..
स्वार्थ के लिए, बेचते जो अपने भगवान् ..
ऐसे स्वार्थियों से, मैं भला वानर निष्काम ..

भगवा मेरा चोला, भगवा मेरे अंतरयामी ..
खोजने सिये माता, गदा थी मैंने थामी ..
कलजुग भया, संतन को भोज कोई पूछे नाहीं ..
धन दौलत की चाह रखे, ढोंगी नामी गिरामी ..

इसीलिए देख इंसान, मैं जागे नयन मूंदुं ...
इस स्वार्थी जगत में, सच्चा मानुष कहाँ ढूँढूँ ...

नाक, कान, जिह्वा, बंद कर गए देखो कैसे बापू गांधी ..
शायद भांप गए थे वो, लाएगा भविष्य, स्वार्थ की आंधी ॥॥॥।


Pushpa Tripathi 
- मन ध्यान रमाया ...

मन का ध्यान
तन से मानव
मिला अहोभाग्य
मानव प्राणी

तन है नश्वर
क्यूँ भरता दंभ
मिट्टी भस्म
हो जाए प्राणी

मानव है रूप
तन बजरंगी जैसा
भगवा है वस्त्र
ज्ञानी है प्राणी


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
मेरी वेश भूषा देखकर न मेरा तिरस्कार करना
न तुम मुझे सन्यासी समझ मेरा परिहास करना

जिसे तुम भूल रहे हो वो याद दिलाने आया हूँ
मैं बस इंसान में बसे इंसान को जगाने आया हूँ

मन कर्तव्य से साधू बनो, न तुम इसका ढोंग करो
प्रेम भाव का प्रसार कर, सत विचार का ध्यान करो

बनकर संरक्षक तुम अपनी संस्कृति और संस्कार के
शिक्षा को घर घर पहुंचाओ बिना किसी भेद भाव के

है गर सामर्थ्य संग सवेंदना तो दुखियो का दर्द दूर करना
स्वार्थ का चस्मा उतार, सबका तुम मान - सम्मान करना


भगवान सिंह जयाड़ा 
मानुष ने छोड़ा धर्म कर्म ,
बनमानुष ने ओडा चोला ,
प्रभु ध्यान में रमा मन ,
प्रभु को समर्पित यह तन ,
सबक ले लो सब मुझ से ,
यह सन्देश सब को बोला ,
ज्ञान ध्यान न छोडो अपना ,
देखू मैं सदा प्रभु का सपना ,
तन मन प्रभु को समर्पित ,
अब न हो यह फिर भर्मित ,
दिल कुछ ऐसा मेरा बोला ,
मानुष ने छोड़ा धर्म कर्म ,
बनमानुष ने ओडा चोला ,


कौशल उप्रेती 
धन्य है इस देश का वरदान
जहाँ होता हर किसी का मान
साधू -संतो कि संगत से जहाँ
बनमानुष भी बन जाता इंसान



सुनीता शर्मा 
जीवन की टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी ,
सत्संग और संस्कारों से निभती ,
संतों की कुशल परख वाणी ,
मृगत्रिश्नाओ के भवर से हमे बचाती !

फरेबियों व् पाखंडी से भरा संसार ,
भगवा चोला धारण क़र रहे अत्याचार ,
हनुमान का सा रूप धर करते प्रहार ,
संत रूपी माणिक ही करेंगे सदा उद्धार !

भगवा चोले के आडम्बर से बचना होगा ,
देख परख कर निज संत चुनना होगा ,
दुआओं में असर जिनके उनसे जुड़ना होगा ,
भेड़ चलन से बचकर अपना मार्ग ढूंढना होगा !


किरण आर्य 
देख भगवा की दुर्दशा आज
इसने भी भगवा धारण है किया
साधू संतो की पावन धरा ये अपनी
क्षद्म धारियों ने इसे कलंकित किया

धर्म आडम्बरो की बिसात पर
क्ष्रद्धा एवं विश्वास को छलते है
हाय संस्कृति और संस्कारों के
नाम पर माँ को शर्मिंदा करते है

इन्हें ये पाठ पढ़ाने आया है
भगवा का सही अर्थ समझाने आया है
तन के साधू ना बनो मन से कर सत्कर्म
साधुता यहीं है सच्ची ये जतलाने आया है


डॉ. सरोज गुप्ता
मेरे रूप पर न जाओ ओ मतवालों !
मेरा दिल तो पढ़ लो ओ दिलवालों !!

मुखौटे पहने हुए हैं सब ,हैं ये इच्छाधारी ,
थोड़ा सा आकाश मुझे भी दे दो ओ छतवालों !

रोज उड़ाते हलवा पूरी फिर भी पेट तुम्हारे उघडे ,
दाल-रोटी की आग ने किया मुझे नंगा ओ पेटवालों !

आब नही,आबकार नहीं,रिश्तों को किया तारतार,
मैली कर दीनी उजली कबीरा चादर ओ इज्जतवालों !




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Thursday, March 14, 2013

12 मार्च 2013 का चित्र और भाव




उषा रतूड़ी शर्मा ....
दूर दरख्तों के उस पार, पलता है अपना प्यार
कैसे कहें ये बैरन अँखियाँ कब हुई उनसे दो चार
सजन है मेरे छैल छबीले, हाथों में जब हो उनका हाथ
डगर सुहानी बने, मिले दो जहाँ की खुशियाँ बारमबार

Pushpa Tripathi
वो हमकदम साथ मेरे .....

वो नीले आसमानों से ऊँचा है मेरा प्यार
पेड़ की छाँव सा निर्मल सुकून है मेरा प्यार
हमसफर का गहरा रंग और मन का विश्वास
जीवन की स्वच्छ सरिता में बहता मेरा प्यार

पीपल की पत्तों पर नर्म हवा के हो झोखें
शाम की लाली पे रात का हो कोई तिल
आखों में रहता कोई जादूगिरी असर
ऐसा है मन का मित हमराह साथ मेरे


बालकृष्ण डी ध्यानी 
मै और तू

मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे
ले हाथों में लेकर हाथ यूँ हाथ ऐसे
चले वंहा जंह
धरती और अस्मां मिलें जंह
प्रेम बरखा की बरसात हुई है
मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे

देख दो पेड़ों के खिलना लिखा था
आँखों से आँखों का कहना लिखा था
खुली आसमानी छतरी तले खड़े हैं आज
यंहा हमारा मिलना लिखा था

मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे
ले हाथों में लेकर हाथ यूँ हाथ ऐसे
चले वंहा जंहा
धरती और अस्मां मिलें जंह
प्रेम बरखा की बरसात हुई है
मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे

बातों बातों में ऐ बात चली है
हमारे साथ साथ वो भी साथ चली है
धरती आसमा पेड़ और ये मौसम
हमारे इन बाहों आ जाओ हो जाओ गुम

मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे
ले हाथों में लेकर हाथ यूँ हाथ ऐसे
चले वंहा जंह
धरती और अस्मां मिलें जंह
प्रेम बरखा की बरसात हुई है
मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे


नैनी ग्रोवर 
जहाँ तक पहुंचे नज़र, नीला सुहाना अम्बर है,
साथ तुम्हारे निहारूं इसको, मस्ती भरा मंज़र है..

ठंडी-ठंडी हवा चले और, सरसराहट दरख्तों की,
आ मीत मेरे चले दूर कहीं, कुदरत कितनी सुंदर है.. !!


सुनीता शर्मा 
आओ देखो फाल्गुन आया संग फुलेरा दूज लाया
राधा कृष्ण के मिलन दिवस पर हर युगल मुस्कराया
कर दो सभी अपने जीवन से दूर गमगीनियों का साया
शुभ नक्षत्रों की शुभ उर्जा से युगलों को मिलती रहे मधुर छाया !

सकरात्मक चिन्तन का अब जग में प्रवाह हो ,
हर उर में प्रेम अपनत्व की भावना का संचार हो ,
शुभ नक्षत्रों का सभी युगलों को आशीर्वाद प्राप्त हो ,
खुशियों का हर घर उपवन आबाद हो !

फाल्गुन आया देखो सारा जग हरसाया ,
राधा कृष्ण के मिलन रुत से हर फूल मुस्कुराया ,
शुभावसर पर होता धरा गगन का मिलन ,
गन्धर्वों व् गोपियों ने भी की थी फूलों की बरसात इस दिन !

प्रेम रहे सभी युगलों में ताउम्र अमर
हाथो में हाथ लिए बढ़े वे सदा कर्तव्य पथ पर
सृष्ठी के उर्जा का होता रहे हर उर में संचार
राधा कृष्ण का आशीर्वाद मिलता रहे उन्हें जीवन भर !


किरण आर्य 
प्रकृति का सौदर्य सदा दिल को लुभाता
तिस पर साथ तेरा समां भी ये मदमाता

नभ की लालिमा आँखों में तैरते लाल डोरे
अधरों का लरजना मोहित भये सजन मोरे

तुझको देख जब इस छटा को आह निहारा
नयनों की गहराई में अपना सब कुछ हारा

सौदर्य जो मन में था नयनो में है आन बसा
चित्रकार की कल्पना सा मन में प्रेम सजा

दरखतो की छाँव तले थाम हम हाथ चले
मन के आगोश तले मीठे से अहसास पले

ऐसे में साथ तेरा हाथों में ये पिया हाथ तेरा
रूह में बसा,पा लिया तुझमे अब वजूद मेरा


अलका गुप्ता 
श्वासों की मधुर गंध में खो रहे प्रान हैं |
सिमट कर बाँहों में पूर्ण हुए अरमान हैं |
हसींन इन वादियों में लुटा चले जान हैं |
हर साँस पर लिखे एक दूजे के नाम हैं ||


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
चल सजन, उस पार चलें ..
जिस हाट, प्रेम व्यापार चले ..

जिस ओर घनेरी, मीठी महुआ की छांव हो ..
वहीँ बसर बसेरा अपना, वहीँ पिया का गाँव हो ..

जिस ओर लज्जाती सुबह हो ..
जिस ओर इठलाती शाम हो ..
वहीँ प्रीत की नदिया बहे, वहीँ अपना ठहराव हो ..

चल सजन उस पार चलें ..
जहाँ चनाब की मिट्टी हो, तेरे बुत को आकार मिले ...
स्वछंद विचरण हो मेरा, ना घूरती दुनिया की निगाह मिले ..
चल सजन उस पार चलें ..
चल सजन उस पार चलें ..


Neelima Sharma 
कैसे आऊ पिया ?
मैं घर को छोड़ के

बाबुल का गुरुर
माँ की लाज को तोड़ के

छोटी बहन का भविष्य
उसके सपनो को फोड़ के

बिरादरी का मान
पुरखो की शान को मोड़ के

झुक जाएगी नजरे खानदान की
हो जायेंगे जैसे रोगी हो कोढ़ के

खूने के रिश्तो को भूल
कैसे आऊ मैं घर से दौड़ के

आखिरी मुलाक़ात हैं यह मेरी
जाओ अब तुम मुंह मोड़ के

नही आ सकती मैं तुम्हारे संग
अपने अपनों को मरोड़ के


भगवान सिंह जयाड़ा 
दूर शहर से ,कहीं एकांत अम्बर के तले ,
कुछ सकुन भरे लम्हें ,मन को चैन मिले ,
शहरी आपा धापी, में जब न लगे यह मन ,
दुःख संतापों से ,जब घिर जाए यह तन ,
जिंदगी में हो सच्चे हमसफ़र का साथ ,
दुःख शुख में बंटाए यहाँ सदा जो हाथ ,
मंद मंद बहती हवा ,कुदरत के ये नज़ारे ,
गम भरी जिंदगी को, दे दो पल के सहारे .
खुला खुला अम्बर ,और हरी भरी धरती ,
जितना भी निहारो ,तबियत नहीं भरती ,
दूर शहर से ,कहीं एकांत अम्बर के तले ,
कुछ सकुन भरे लम्हें ,मन को चैन मिले


Pushpa Tripathi 
- एक आशियाँ अपना -

गगन आसमानी
रंगीन सपने है मेरे
चलना है साथ
पिया हाथ यूँ थामे l

पलकों की छाँव में
बीते दिन रैन मेरे
सपनों के नगर में
चल आशियाँ बनाए l

मौसम रूहानी है
ठण्ड दिन का सवेरा
पत्तों पर फूल है
जैसे - दिल में खिले प्यार l

हाथों में हाथ लिए
सिमटी उम्मीदे अपनी
भविष्य की राह पर
सातों जनम की मंजिल l 'पुष्प '


दीपक अरोड़ा 
तुम्हारा साथ है और ये सुहानी फिजा,
पहुंच जाएंगे मजिल तक यूं हंसते-हंसते
तु मुझे और मैं तुझे निहारता चलूं,
स्वागत होगा ऐसे ही हमारा हर रस्ते


डॉ. सरोज गुप्ता ..
चल चलें नुरानी ठाँव
~~~~~~~~~~~~~~
चलों चलें हम दोनों नुरानी ठाँव !
धरती पर न रखना गुलाबी पाँव !!

जहां हो प्यार की ठंडी -ठंडी छाँव !
धर्म- जाति की न हो काँव- काँव !!

यह कैसा है अनजाना अनूठा बंधन !
छोड़ा गोकुल का दूध-दही का नन्दन !!

भूले नहीं भूलता माँ यशोदा का आँगन !
धरती आकाश कर रहे हमारा वन्दन !!

चलों चलें हम दोनों नुरानी ठाँव !
धरती पर न रखना गुलाबी पाँव !!

प्रकृति की गोद मे है हमारा आशियाना !
समुन्द्र में डुबो नापो तुम उसका गहराना !!

पेड़ सिखाते इंसानी रुआब को कैसे झुकाना !
मिट्ठी-मिट्ठी बराबर,मिट्ठी सर माथे लगाना !!

चलों चलें हम दोनों नुरानी ठाँव !
धरती पर न रखना गुलाबी पाँव !!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

नर नारी एक तो ये बीच में दूरी कैसी
शायद निभ रही जिंदगी इन पेड़ो जैसी
साथ होकर भी अस्तित्व है अपना अपना
कब होगा पूरा, एक होने का सपना अपना

जानते है समाज एक दूजे के बिना कुछ नहीं
जानते है मोहब्बत एक दूजे के बिना कुछ नही
फिर भी एक दूजे पर अंगुली उठना ठहराते सही
लड़ते किसी के कहने से, अपनी सोच रखते नही


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Monday, March 11, 2013

महिला दिवस के चित्र पर भाव 8 मार्च 2013





अशोक राठी 
तुम्हें नग्न करने को उठे हाथ
तुम्हें ही काटने होंगें
कृष्ण नहीं आएगा इस बार मैं जानता हूँ
तुम दुर्गा हो, शक्ति हो , काली बन करो तांडव
होने दो प्रलय
आसुंओं से युद्ध नहीं जीते जाते
उठो अपने अस्तित्व की खातिर
उठो द्रोपदी
कृष्ण नहीं आयेगा इस बार
मैं जानता हूँ .........


Pushpa Tripathi 
आज महिला दिवस .....

माता की ममता
पिता सी क्षमता
बहन का साथ
भाई का विश्वास
मै स्त्री हूँ ..........

भूख में भोजन
प्यास में आस
बच्चों की मिठास
घर की शोभा
मै स्त्री हूँ ...........

मर्यादा की आन
परिवार में शान
जीवन की पतवार
दिल की आवाज़
मै स्त्री हूँ ...........

रजत सा मन
सेवा का तन
पृथ्वी पर प्रमाण
विषम में प्रतिकूल
मै स्त्री हूँ .......

आठ मार्च का दिवस
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस
मनाएँ महिला सम्मान दिवस
न मनो सिर्फ देवी .. ये तो साक्षात है
मै स्त्री हूँ

नैनी ग्रोवर 
क्यूँ मना रहे हो ये महिला दिवस ???

नहीं चाहिए मुझे कतार में पहला नंबर,
बहुत हिम्मत है मेरे अन्दर,
मेरे पैरों में बहुत बल है,
मेरा मन भी बड़ा सबल है,
क्यूँ करते हो मुझे, समानता से अलग ...

क्यूँ मना रहे हो ये महिला दिवस ???

अपनी पहचान तो मैं, स्वयं बना लूंगी,
जब हर जगह, बिना डर के जा सकूंगी,
मुझे भी दिया है दिल और दिमाग सृष्टि ने,
बस देखो मत नारी को, कुदृष्टि से,
नहीं हूँ किसी भी शय में, तुमसे विलग..

क्यूँ मना रहे हो ये महिला दिवस ...

एक दिन में, मेरा मान बड़ा कर देते हो,
फिर भेड़ बकरी की तरह खड़ा कर देते हो,
मुझे नहीं, देवी का कोई स्थान चाहिए ,
बस तुम्हारे बराबर का ही सम्मान चाहिए ..
कर सकते हो तो करो, अपनी आत्मा को सजग ...

क्यूँ मना रहे हो ये महिला दिवस ???


बालकृष्ण डी ध्यानी 
एक दिन बस मेरे नाम पर

एक दिन बस मेरे नाम पर
उत्त्पत्ती होई उस स्थान पर
३६५ दिवस का ऐ साल पर
रखा था दिल से खयाल पर
एक दिन बस मेरे नाम पर ...................

माँ,बेटी,बहन,पत्नी साथ पर
झूली हर उस तान,मुस्कान पर
दिल में बसी उस ममता पर
अश्कों से जुडी उस गंगा पर
एक दिन बस मेरे नाम पर ...................

काँटों पड़ा मेरा हर पग पर
हँसता देखा तेरा वो चेहरा पर
भूल बैठी मै उस पल दर्द पर
उभरा था जो मेरी उस वेदना पर
एक दिन बस मेरे नाम पर ...................

फटी हुई वो मै लकड़ी पर
गीली लकड़ी थी मै उस साख पर
फुल खिले फल भी मिले पर
क्यों काटी जा रही हूँ किस ताल पर
एक दिन बस मेरे नाम पर ...................

आडंबर दिखावा झूठ फरेब पर
दिल स्त्री का हर समय नाम पर
आयेगा वो पल इस आस पर
जलती रही वो ज्योती रात पर
एक दिन बस मेरे नाम पर ...................

एक दिन बस मेरे नाम पर
उत्त्पत्ती होई उस स्थान पर
३६५ दिवस का ऐ साल पर
रखा था दिल से खयाल पर
एक दिन बस मेरे नाम पर ...................


ममता जोशी 
माना बलिष्ठ है पुरूष,
स्त्री की उससे समानता नहीं है,
पर स्त्री पुरूष की दासी नहीं है ,
स्त्री को सुरक्षा भरा घेरा चाहिए,
पुरूष सुरक्षा देने से करता है इनकार,
उलटे करता है उसकी अस्मिता में प्रहार ,
क्यूँ??
महिला दिवस तब तक है बेकार,
जब तक महिलाओ पर होगा अत्याचार ...


भगवान सिंह जयाड़ा 
कितने दुःख दर्द हैं मेरी जिंदगी में ,
फिर भी मैं सदा मुस्कराती रही ,
कोई न समझ सका दुःख दर्द मेरा ,
मैं यूँ ही मर मर कर जीती रही ,
गरीबी की आग में जलूगी कब तक ,
समाज के जुल्म सहूँगी कब तक ,
क्या इस दुनिया में सदा यूँ रहूंगी ,
भूख प्यास सदा यूँ ही सहती रहूंगी ,
क्या बजूद है दुनिया में मेरा यहाँ ,
मैं नहीं तो दुनिया में तुम सब कहाँ ,
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवश है ,
सब मिल कर आज खावो कसम ,
महिलावों के उत्थान का दो बचन ,
समाज में सदा ऊंचा हो इनका दर्जा ,
मान सम्मान की इन की करो रक्षा ,
माँ, बहन यही हैं ,सब रिश्ते यही हैं ,
फिर क्यों आज औरत रो रही है ,
समाज के आडम्बरों को ढो रही है ,
कितने दुःख दर्द हैं मेरी जिंदगी में ,
फिर भी मैं सदा मुस्कराती रही ,
कोई न समझ सका दुःख दर्द मेरा ,
मैं यूँ ही मर मर कर जीती रही ,


किरण आर्य 
आज महिला दिवस है चहुँ और ये ही झंकार
आज की सुबह भी मेरे लिए ना लाई पुष्प हार

वहीँ चाय की चुस्की के साथ दिन का कारोबार
ऑफिस की भाग दौड़ और दौड़ते वक़्त का बुखार

सुरसा सा फाड़े खड़ा है अखबारों में भ्रष्टाचार
और महंगाई पल पल रुलाती है उसकी मार

हर रोज़ चौराहे पे होती अस्मत कहीं बेजार
कहीं होते धरने कहीं आक्रोश करता सड़क का दीदार

पुलिस और नेताओं की बयानबाजी की उफ़ क्या धार
लीपी पुती संवेदनाये और मगरमछी आंसुओ की बाढ़

नारी नहीं सुरक्षित सहमी भावनाए उसकी घर या बाज़ार
चाहे मन उसका मुठ्ठी भर सुकूं और उन्मुक्त सी बयार

आज जो दशा उसकी उसके लिए है वो स्वयं भी जिम्मेदार
कहा अबला उसे तो नेमत समझ किया उसने अंगीकार

मान नियति इसे अपनी बहाए नीर आंसू उसके लाचार
होना होगा जागृत उसे स्व के लिए यहीं वक़्त की पुकार

दोषारोपण नहीं है हल संगठन ले सुद्रढ़ आकार
पाकर सम्मान जब स्वप्न मन के होंगे साकार
उस दिन ही हम होंगे सही मायनों में महिला दिवस मनाने के हकदार .


आनंद कुनियाल 
आँचल में लपेटे ममता
पीठ पर लादे भविष्य
अपनी ही से बेखबर
जाने क्या खोजती नज़र
कभी ताकत कभी बेअसर
कभी थकती हूँ कभी तकती हूँ
तलाशती अपने वजूद को
कब से चली हूँ जाने किधर
हर बार हर दिन हर साल
यही उम्मीदें यही ख़याल
सबने बारी बारी दोहराईं
जो चाहो मेरी तरह आप
औ' ये सृष्टि मुस्काये तो
इतनी सी बिनती है भाई
जो सच में हो मेरे लिए
रखते एक मानुस की फ़िक्र
कुछ और न चाहूँ बस
दे दो मेरी निर्धन हंसी को
एक लम्बी खिलखिलाती उम्र


किरण आर्य 
हाँ मैं नारी हूँ
चाह नहीं दीवालों में पुजना मेरी
चाह पैरो की जूती बनना भी नहीं
हाँ ममता के संग कर्तव्य निर्वाह
यहीं चाह है अटल साधना मेरी
कांधे पे बोझ परिवार व् नेह का
हंसकर करू वहन मैं हर पल
शिकवा ना शिकायत है लव पर
बस इक चाह बसी कस्तूरी सी
इक उन्मुक्त आकाश इक बेख़ौफ़ हंसी
प्रतिद्वंदी नहीं पूरक बन साथ रहूँ
इक चाह बस इतनी सी मन में बसी


सुनीता शर्मा 
समाज को महिला दिवस की दरकार नहीं
एक दिवस से उसको कोई सरोकार नहीं
सुनियोजित करो अब पुरुष दिवस
महिलाओं को यूँ बरगलाने की जरूरत नही

हर जगह हर दिवस सम्मान कब दोंगे
किसी एक दिवस को ही क्यूँ पूजोगे
कोख से लेकर मृत्यु तक बहिस्कार
ऐसा अनर्थ कब तुम सब छोड़ोगे

एक दिवसीय सम्मान नही माँग रही
युगों से समाज से प्रश्न पूछ रही
अधिकारों की बड़ी बड़ी बातें छोडो
अपने हालातों से जो खुद ही जूझ रही

महिलाएं भी अपने कर्तव्य समझें
हक पाने के लिए कदम बढ़ाएं
अपने वर्ग के दर्द को समझें
अपने प्रति हो रहे दुर्व्यवहार को समझें

नारी अराध्य भी तो पतिता भी
उद्धारक , सवेदनशील व् क्रूर भी
लडको को सिर पर बैठाना
अत्याचारों की गुहार क्यूँ फिर भी

नारी तुम शील ,शालीनता व् धैर्य की धवल किरण बनो
पुरुष तुम नशा , घृणा व् हिंसा को त्याग सुदर्शन चरित्र बनो

पुरुष व् महिलाएं ..सम्मान एक दूजे का करो
सुंदर सुदृढ़ समाज की परिकल्पना साकार करो


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
कभी सजाया माथे।
कभी पैरो की धूल बना गिरा दिया गया ।
कभी रौंदी गयी ..
कभी बिकी अपनों के हाथ
मुझे वेश्यालय बैठा दिया गया ।
शक्ति स्वरुप माना कभी ...
कभी सरेआम उसकी आबरू को
रौंदा गया .....
कभी बनी प्रीत का हार ..
कभी झूठी शान को ...
दामन मेरा
सूली सजा दिया गया ..
कभी पूजयते सम तुलसी ...
कभी दहेज़ वेदी, मैं झुलसी ..

नारी तू
अबला जीवन ..
ना अंगीकार कर ..
जगा लुप्त ज्योतिपुंज ...
सृष्टी में हाहाकार कर ..
तू ही सृजनी, तू ही अर्धनारीश्वर ..
तू सबला जीवन स्वीकार कर।
स्नेहवर्षा करने वाली ..
कभी खुद से भी प्यार कर ।


डॉ. सरोज गुप्ता .....
मैं महिला फौलादी
~~~~~~~~~~

पुरुष -सत्ता की
कुचली ,मसली
औरत एक निवाला
मन आया तो खाया
वरना ठोकर खाने को
जंगलों में फिंकवाया !
फिर भी तू मतवाली
इसमें क्या राज है आली ?

मेरी बतीसी में
ढूंढना मत बेबसी !
मेरी टीस में
'वायलेंस ऑफ़ सायलेंस' का
दवा भरा इंजेक्शन लगा है !
स्त्री -देह को हिंसा के लिए अनुकूलन
बनाने की जोरम अजमाई है !

घर चलाने के काम को देकर
दोयम दर्जा ,
करना चाहते हो अपना
वर्चस्व कायम ,
मैं नहीं हूँ अहिल्या ,
मैं नहीं हूँ जड़/शून्य ,
मेरे मुड का भी है मूल्य ,
तेरे गुनाओं का करूंगी
अब शल्य -चिकित्सा !
मानूंगी नहीं अब
चाहे मांगे प्रेम की भिक्षा !
सोने को जब आग में
तपाया ,गलाया ,पीटा गया
तब बनी थी एक औरत
गृहस्थी का गहना !
जिसे दम्भी पुरुष के
बौने मस्तिष्क ने
नहीं चाहा स्वीकारना !
ओ निष्ठुर समाज
निकाल फेंको सोच कबाड़ी
पत्नी नहीं ठहरे पानी की बाबड़ी
यह गंगा ,यमुना ,सरस्वती की संगम
पवित्र ही जाते सब जड़-जंगम
औरत को दे दो
तलाक की मंजूरी
नहीं कराओ और जी-हजूरी !
मैं हूँ जीती जागती महिला !
जो मही को चाहे तो
अकेले ही दे हिला !
आर्थिक -निर्भरता के फैराऊँगी
मैं परचम !
अपने होने और जीने का
स्पेस रखूंगी हरदम !

पूछोगे नहीं -
मेरी पीठ पर तना
मिटटी से सना
किसने झूठे से मुझे छला !
न पूछो तो भला
यह है मेरा अंश
नहीं केवल तुम्हारा वंश
तुम्हारी हिंसा की कंडिशनिंग
का आदी मेरे शरीर को
जब भी नये -नये आरोपों ,
तानो ,चुप्पी ,घुन्नेपन ने
काटा/छीला
मेरे आंसुओं की नमी से
नयी कोपलें हुयीं वहीँ अंकुरित
लो सिगरेट के कश
उडाओ गुलछरें
मैं भारत की औलाद
आर्य देख जल्लादों ने
बना दिया
मेरा जिस्म फौलाद
अब अहिल्या बने रहने की
खत्म हुयी मियाद !

बड़ी देर भई बने जड़
अब अकेले ही तू सड़
नहीं देनी अब अग्नि परीक्षा
मुझे नहीं किसी राम का इन्तजार
जो करेगा मेरा उद्धार
पहले पर-पुरुष इंद्र से
छली गयी
फिर अपने पति
ऋषि गौतम महान से
श्रापित हुई !
बिना कसूर मैं ही
लांछित हुई
अब मैं ही उठा
सबको अपने कंधो पर
अहिल्या नहीं
ग्लानी क्षोभ नहीं
मन -मलिन नहीं
कोई चीत्कार -सीत्कार नहीं
महिला बनूंगी
मही से स्वर्गलोक तक
अकेले मैं ही लडूंगी !


अलका गुप्ता 
क्या मिला जब देवी माना था तुमने |
जज्वात भी पत्थर से हीसमझे तुमने |
रहेगी बस हर वक्त सामान एक बन के |
ढोया है जनाजा अपनी आरजुओं का उसने |
करोगे हिसाब क्या खोया क्या पाया उसने |
मानवाता की आधी आवादी हूँ .....
देकर जन्म मैं ही तो पाली हूँ .....उसको |
दिवस केवल एक ही....नहीं पाना है हमको |
बस सुरक्षा हक़ न्याय हमारा दे दो हमको |
सच्चाई मानों...समझ लो दिल से हमको |
कर लो नीची अपनी इन धूरती निगाहों को |
भर लो उसमें आंच एक ..नारी सम्मान को |
सच्चे अर्थों में तब होगा महिला दिवस ..वो |
मिले महिला को सम्मान न्याय हक समान वो |
होगा कुछ ना बस एक दिवस घोषित हो जाने को ||


Neelima Sharma 
लडकियों
तुमको सिर्फ परी कथाये ही
क्यों सुनाई जाती हैं
बचपन से
तुमको सिर्फ गुडिया/ चौके चूल्हे
का सामान ही मिलता हैं
खिलौनों में
क्यों तुमको राजकुमारी सरीखा कहा जाता हैं
कहानियो में
क्यों सफ़ेद घोड़े पर सवार
राजकुमार आता हैं लेने
सपनो में
जबकि हकीक़त जानती हो तुम
जिन्दगी परी कथा सी नही होती
कोई सफ़ेद घोड़े वाला राजकुमार नही आता
कोई रानी बनाकर नही रखता अपने महल में
जिन्दगी सिर्फ गुडिया जैसे नही होती
समझौता खुद से सबसे पहले करना होता हैं
फिर लोगो के मुताबिक़ ढलना होता हैं
एक अजनबी से रिश्ता जोड़ कर
उनके घर से , परिवार से
रीती-रिवाजों से उनके अपने समाजों से
खुद को जोड़ना होता हैं
इसलिए बचपन से तुमको बहलाया जाता हैं
हाथ में बन्दूक की जगह बेलन पकडाया जाता हैं
भगत सिंह की जगह सिंड्रेला का सपना देखाया जाता हैं ...



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6 मार्च 2013 का चित्र और भाव



नैनी ग्रोवर 
मैं हूँ गजराज, जंगल का ताज,
मस्ती मैं झूमूँ, मुझसे डरे वनराज,

देखो कितना प्यारा हूँ मैं,
सबकी आँख का तारा हूँ मैं,
मगर लालच इन्सान के अन्दर है,
जिसकी सदा गिरती है मुझे गाज ..

मैं हूँ गजराज ...

मुझ बेकसूर की लेता है जान,
फिर करता अपने खूब बखान,
तोड़ के मेरे प्यारे-प्यारे दांत,
दे रहा हमारे खात्मे को आवाज़..

मैं हूँ गजराज ...


आनंद कुनियाल 
ह्रदय की गहराईयों से सारी उम्र का तुझे प्यार मिले
जहाँ पराये अपनों से भी ज्यादा दुलारें वह संसार मिले
जितना हमारे हिस्से में आया उससे बेहतर संसार मिले
बाबुल की दुआएं लेती जा जा तुझको सुखी संसार मिले..


किरण आर्य 
साथ ये तेरा मेरा
शीश नवाए खड़े तुम
और मेरा सर पर हाथ
मानुष नहीं है हम तुम
जो निज में सजोये आस
इक दूजे संग है खड़े हम
साझा सुख दुःख अपना
दुःख अपना है विलग कहाँ
मानुष का लालच लील रहा
वजूद अपना है खतरे में पड़ा
विलुप्त ना हो जाए हम सखा
समझो मानुष मर्म जीवन का
जियो और जीने दो सबक बड़ा
आये विपति गहन अंधियारी
मन तू मत घबरा रह अटल खड़ा
नहीं अकेला देख सखा मैं तेरे साथ
तेरे दुःख हरने को आतुर तेरे सर पे हाथ


बालकृष्ण डी ध्यानी 
आज मै चूक जात

आज मै चूक जात
तू मुझे नजर ना आता
कंहा कंहा तुझको मै खोजता

भ्राता मेरे तात गले लगा लो
फ़िक्र ना कर ऐसे आज
रब है अब अपने साथ

जंगल मै मचा उत्पात
मानव का भरोष ना अब साथ
लालच का गढ़ हुआ वो आज

स्मृती में हम लगता है अब नजर आयेंगे
एक एक जब लुप्त हो जायेंगे
लालसा की होड़ा में हम भी कब तक बचा पायेंगे

भ्राता मेरे चिंता तज ,हम गणेश के है अवतार
कैसे हम खो जायेंगे मूर्ती रूप बनकर
हर वर्ष आकर धूम मचायेंगे

आज मै चूक जात
तू मुझे नजर ना आता
कंहा कंहा तुझको मै खोजता


डॉ. सरोज गुप्ता .
साथी साथ निभाना
~~~~~~~
हाथी था हथिनी संग
जंगल में अकेला
आज देख मौक़ा
बाँट रहा हथिनी से
अपने जज्बात !

साथी रे रे रे !
साथी रे !
है गजगामिनी
निभाना साथ मेरा ,
तू मेरी भामिनी !
पानी भरे
तेरे सामने
दुनिया की
सारी कामिनी !
देख कर तेरे
लटके झटके
चमकना भूल जाए
आकाश की दामिनी !!

साथी रे रे रे !
साथी रे !
तू भूल जा
महावत को
तुझे खिलाउंगा
आज दावत !
सब कहते हैं-
हाथी के दांत
खाने के और
दिखाने के
और होते हैं !
कुत्ते भोंके हजार
हाथी चले अकेला बाजार !

साथी रे रे रे !
साथी रे !
मैं कान्त तेरा रे !
साथ निभाऊंगा ,
जब-जब सर्कस में
लेगी तू हिस्सा !
रह न जाएँ बन कर
हम कहानी का किस्सा !
युद्धों में भी
अब नहीं रही
हमारी उंची शान !
जब उस्ताद
बैठ कर मुझपर
गाया करते थे
रणभेरी के गान !
धनियों ने
बांधे हैं घरों में
सफेद हाथी
वे नहीं है
हमारी जाति के
वे हैं अंधों के हाथी
हाथी घोड़े पालकी
जय भ्रष्टाचारी लाल की !

साथी रे रे रे !
साथी रे !
तूने रखी रे,
शिव-पार्वती की
लाज !
देकर अपनी
कुर्बानी !
बने पशुओं में
अभिमानी !
तुझे पूजे
संग गजानन के
सारे हिन्दुस्तानी !!


सुनीता शर्मा 
हाथी का जोड़ा हूँ
जंगल का अभिमान हूँ
जीवन का ह्रदय दर्पण हूँ
करता एक दूजे का सम्मान

देखो सूंड से सूंड जोडकर
भक्ति शक्ति प्रेम संग जोड़कर
ह्रदय के पाटो को जोडकर
भारत का अभिमान बढ़ाता

दिलों में पड़ी दीवार
चारो ओर फैला हाहाकार
इंसानियत कर रही चीत्कार
हमसे सीखो प्रेम का आदर्श


अलका गुप्ता 
है धरती युगों से उसका निवास स्थान |
काया विशाल श्यामल चाम खास|
खाने के सिवा दांत दो और हैं......
अति सुन्दर थोड़े कर्व बाहर |
पूंछ छोटी सी खम्भे जैसे पाँव चार |
सूँड लम्बी कान सूप से अति विशाल |
लगे सलोना रूप सुन्दर हिला कपाल |
रहते हैं झुण्ड में होता माता का साम्राज्य |
ममता की मूरत सन्तान निज से अति प्यार |
रखा है इंसान ने भी दे श्रधा पूजा प्यार अपार |
आता है ये इंसान के भी बहु काम काज |
सुनी हैं कहानियां हमने भी उसकी बार-बार |
धैर्य बुद्धि बल वीरता की अपरम्पार |
पसंद हैं गन्ना केला पत्ते अन्य शाकाहार |
मंथर गति ....चाल झूम-झाम |
कवि प्रसिद्ध गज-गामिनी वामा चाल |
है निशाने पर तू लोलूप निगाह निर्बुद्धि प्रकार |
धन के लिए हड्डी मांस दांत का कर व्यापार |
मार कर तम्हे निरपराध सजा रहा अपने ख्वाव |
रोक दो गणपति हे ! उनका विनाश !!!
अनुपम बुद्धिमान डायनासोर वंशज....
मासूम ये सूँडवान |
गज ये हाथी भी हैं.......प्राणी|
धरती पर ....हमारे ही समान ||


Pushpa Tripathi 
समय बड़ा बलवान ....

सुबह से शाम
शाम से रात
ऐसे ही जीवन में
आते है पढ़ाव l

समय पर न होता
किसी का वश
राज हो रंक
सब एक समान l

अपने आगे भविष्य खड़ा
आज है हम जहाँ
कल होगा
कोई और खड़ा l

बढ़ते जायेंगे
हर युग युगांतर
पीढ़ी दर पीढ़ी
नव युवाओं को अवसर l

हाथी जैसे है
देह विशाल
थक जाएगा एक दिन
चलते चलते l

देकर आशीष
भावी पीढ़ी को
शुभकामनाओं से
कार्य भार संभाल l

यह रीत पुरानी है
जग हित निराली है
आगे के बाद
पिछले को मौका देना ज़रूरी है



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Tuesday, March 5, 2013

04 फरवरी 2013 का चित्र और भाव




Dinesh Nayal 
फिर याद आ गया बचपन
का जमाना,
कंचो का वो खेल पुराना
हारना-जीतना वो कंचे लूटाना
वो कंचो को गठरी में बाँधे रखना,
वो मम्मी की डाँट
और पापा की फटकार...
कंचे खेलने में खाना भूल जाना
वो घर से दूर दोस्तों संग जाना
और दूसरों से कंचोँ की शर्त लगाना
पिल्ल-चोट की मार
वो दस-बीस का खेल,
याद आ रहा है मुझे वो
गुजरा जमाना!!


Yogesh Raj .
वो दुनियां बड़ी हसीन थी,
छोटीछोटी बातें रंगीन थीं,
सारा आकाश हमारा था,
हमारी ही सारी ज़मीन थी.

नैनी ग्रोवर 
ना परवाह, किसी उंच-नीच की, ना किसी से कोई अनबन,
कितना प्यारा, कितना हँसी था, हाय वो मेरा खेलता बचपन...

बस दुलार ही दुलार था हर दिल में, जहाँ देखूँ मैं जिधर जाऊं,
हर घर अपना घर लगता था, खेल लगता था मुझको सावन ...

कभी चुनु की माँ खिलाये पूरी, कभी मुनु की माँ हलवा खिलाती,
छुट्टी के दिन कंचे खेलते, लड़ते झगड़ते बीतता था सारा दिन ...

सोचती हूँ, कहाँ गए वो, आपस के मीठे-मीठे सुहाने से रिश्ते,
हर कोई बस भाग रहा है, भाता नहीं अब किसी को भी आँगन ...!!


किरण आर्य 
वो अठखेलियाँ करता बचपन मेरा
आज मुस्काता फिर खड़ा सामने मेरे
वो बचपन के खेल खिलंदर
वो संगी साथी वो छुपम छिपाई
कंचो संग खेलते धूल में सने..........

ना धूप की चिंता ना बारिश राह अड़े
कंचो का खजाना पास हो जिसके
वो शहंशाह सा गर्व खुद पर करे
बाकी सब गुलामो से हाथ बांधे
खुशामद करते उसकी थे खड़े............

आह वो बचपन जाने कहाँ खो गया
आज भी उसको सहलाने को
रूह देखो तड़प कर उड़ चले
स्वप्न नगर में आज फिर चलो
बचपन से मिलने हम चले .


बालकृष्ण डी ध्यानी 
वो कंचे मेरे

कंचों का खजाना, कंचों का मै दीवान
अब भी दिल में कंही बाँध रखी है मैंने
चुपके से अपने पास वो संभाल रखी है
वो कंचे मेरे ...................

पोटली वो कंचों की यांदे वो अपनों की
कीसी डिब्बे में बंद करके खुद से छुपा रखी है
यादों के समंदर के वो मेरे गोल गोल मोती
वो कंचे मेरे ...................

कंचों का मै बच्चा वो कंचों का मेरा बचपन
बंधे बंधे मेरे सपने बंधे बंधे वो मेरे अपने
टूट चुका है वो साथ पर वो अब भी मेरे पास
वो कंचे मेरे ...................

गोलाई आकारा का वो खेल था ऐसा मेरे मन
मस्ती अल्हड़ पंन का वो यूँ हुआ था ऐसा मेल
कंहा छुटी वो मेल कीस कोने खडी वो रेल
वो कंचे मेरे ...................

कंचों का खजाना, कंचों का मै दीवान
अब भी दिल में कंही बाँध रखी है मैंने
चुपके से अपने पास वो संभाल रखी है
वो कंचे मेरे ...................


अलका गुप्ता 
याद आते हैं वह प्यारे-प्यारे कांच के कंचे |
गली में खेलते थे बच्चे जब कांच के कंचे |
मचलता था मन मेरा भी खेलने को कांच के कंचे |
गोल-गोल कुछ तिलस्मी से दीखते थे वो कंचे |
मगर डर था बाबा का सडक पर जा नहीं सकती थी |
और जब आई ससुराल तो हुआ बहुत ही अचम्भा ....
उनके बचपन के जीते हुए वही सुन्दर कांच के कंचे |
ढेरों ........कंचे ........मेरे पति की थी अनमोल धरोहर |
जो आज भी वह संजो कर रखे हुए हैं ..........
बच्चों को देते हैं अगर तो ...पुनः खेलने के बाद सहेज कर रख देते हैं |
अब मगर वह कंचे मुझे बहुत बचकाने लगते हैं ...
इनके ये अंदाज भी बहुत बचकाने लगते हैं ...
हम इन्हें चिढाते हैं हँसते हुए ...
ये कंचे खानदानी लगते हैं ...पहले बाप...फिर बच्चे
इसके बाद है यकीन ...उनके भी बच्चे ...खेलेंगे ये कांच के कंचे |
वाकई तिलस्मी बहुत हैं..... ये कांच के कंचे !!!


किरण आर्य 

कंचे हाँ गोल गोल से रंग बिरंगे
पारदर्शी से मन समान ही
लुभाते मन को आज भी
जब आते है समक्ष
तो बचपन को लौटा लाते है
साथ अपने याद है आज भी
वो पिल बना कर कंचो पर
निशाना साधना और
सटीक बैठते निशाने संग
उल्लसित होता वो बाल मन
बिलकुल पारदर्शी उन कंचो सा ही
आज भी आता है याद वो बचपन
और वो कंचे मन से ही पारदर्शी से


डॉ. सरोज गुप्ता 
कंचा बनाम गोल्फ
~~~~~~~~~~

कंचा - खेला सस्तों का !
मौज-मस्ती ह्म-बस्तों का !!

कंचे -क्लब हर गली ,नुक्कड़ ,
चौराहे पर बिना दाम थे सुलभ !
चकाचौंध की दुनिया ने न माने,
कंचे खेल के थे कितने मायने !

कंचा- खेला सस्तों का !
मौज-मस्ती ह्म-बस्तों का !!

गोल्फ खेलने जाते क्लब,
लाखों खर्च करते हैं जब !
अमीर लोगों के हैं चोचले ,
मक्खियाँ मार जाते पब !!

कंचा - खेला सस्तों का !
मौज-मस्ती ह्म-बस्तों का !!

उंगुलियों का है कंचा खेल !
आँखों से रखता है यह मेल !!
कंचे खेल हो गए हैं सयाने !
समझे जैसे बिलियर्ड के नाने !!

कंचा - खेला सस्तों का !
मौज-मस्ती ह्म बस्तों का !!

गोल्फ गेंद जाती दूर होल में ,
गोल्फर अकड़ता अपने खोल में !
कंचे जाते जब अपनी पिल में ,
कंचर बनता पहलवान अपने मिल में !

कंचा - खेला सस्तों का !
मौज-मस्ती ह्म-बस्तों का !!

कंचा है गंजा और टकला ,
कंचा कांचा बना अग्निपथ में !
देख वक्र मुस्कान,सूजी आँखों में ,
डरा कंचा खिलाड़ी कांचा वेश से !

कंचा - खेला सस्तों का !
मौज-मस्ती ह्म बस्तों का !!


सुनीता शर्मा 
बचपन बीता कंचों संग
खेले खूब मित्रों के संग
छोटे बड़े का भेद भूल
ढेर लगाते जीत सब रंग

ये मारा अब मेरी बारी
करले तू बचने की तैयारी
अरे इनपर क्यूँ झपट रहा
मैंने न छीनी तेरी पारी

क्या अजब दिन थे
वाह गज़ब ढंग थे
दिन सारा खोने में
होड़ लगते देख सब दंग थे

निराले गोल मटोल लूटने बैठे
भूख प्यास सब भूले बैठे
घेर बनाकर गौर से ताकते
कहीं मुझसे ज्यादा न ऐंठ बैठे

एक से एक भरते झोली में
दुकानों पर गुहार लगाते मस्ती में
सबसे बड़ा हो या छोटा
होड़ लगाते बटोरने में

आज बच्चों को देखोगे
कंप्यूटर से कंचे कैसे खेलेंगे
प्रतिस्पर्धा ,परस्परता छोड़ो
ये भाईचारा कैसे सीखेंगे !


ममता जोशी 
बचपन में खेले थे खेल कितने निराले ,
आईस - पाईस , गिल्ली डंडा और कंचे प्यारे ,
चलो आज फिर से बचपन का कोई खेल खेलें .
बिना वजह हंसने की फिर कोई वजह दूंढें|


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
हर लम्हा ...
हर पल ..
याद आते।
मन के किसी कोने में बैठे ..
सुबकते बचपन को ..
सहला जाते ..
यादों में
बचपन के वो मित्र ।

रचे बसे थे ह्रदय ..
बन सुगन्धित ईत्र ..
महकाते अपनी२ बगिया ..
जाने कहाँ खो से गए ..
दुनियादारी के कुम्भ में ..
ह्रदय रचा बसा वही पुराने चित्र ..
लुभावने भोले मासूम ..
थोड़े से नटखट ..
मेरे बचपन के वो मित्र ..

कुछ खो चुके।
कुछ अचानक मिल जाते ..
ऋतुओं पर निर्भर कहाँ मित्रता ..
बरसों के मिलन पर ..
हर दिल ..
जैसे त्यौहार मनाते ।

वो छोटी सी केतली ..
वो छोटा सा दर्पण ..
वो घर घर का खेलना ..
वो सबका अपनापन ..
वो छुपना, वो छुपाना ।
वो रूठना, वो मनाना |
आज से भला था ..
वो बीता ज़माना ..


अरुणा सक्सेना 
मासूम ,शरारती ,नटखट से होते थे ये दिन
सूना सा लगता था संसार कभी इनके बिन
बाल सखाओं का जमघट बाहर लगता था
इन रंगीन गोली में जहां सारा दिखता था
लगा जिसका निशाना उस्ताद बन जाता था
कंचों का ढेर बड़ा उसका हो जाता था
ललचाते थे सभी बाल उन्हें देख-देख कर
उस्ताद रखता था उन्हें बड़ा ही संभाल कर
याद आ गए बचपन के वो अनमोल क्षण आज
इन कंचो के खेल पर कभी अपन भी करते थे राज



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

हाँ याद है
वों कंचो से
अपना प्रेम
दोस्तों संग
कंचे खेलना और
कंचे बटोरना
उनके साथ उनकी
अदला बदली करना
खेल का शौक
जितना था
उससे ज्यादा
उन कंचो से
अपना याराना था
उन्हें एकत्र करना
उन्हें नज़र भर देखना
जीवन उन्ही
रंग बिरंगे कंचो के
चारो ओर घूमता था
वक्त बेवक्त
पोटली खोल कर
उन्हें गिनना
शायद कल कुछ
और इसमें जुड़ जाये
इसी आस के साथ
फिर संभाल कर रखना

वो
यादे आज भी
सभाले हुए है
आज वो बचपन
अदृश्य हो गया है
वों
मिट्टी, कंचे, दोस्त
खो गए है



केदार जोशी एक भारतीय 
याद आ गया अपना बच्चपन आज ,
खलते थे कभी हम भी कंच्चे ,
न लगती थी भूख प्यास ,
बस कंच्चे ही कंच्चे की भूख थी पास ,

आज बच्चो को देखा तोह वोह दिन याद आ गए ,
अपने समय के थे कंच्चे के उस्ताद ,
आज भी कंच्चे है जमा किये मेरे पास ,
पर आज न रहा ये खेल हमारे पास ,
बढती दुनिया में खो गया हमारा कल ,


उषा रतूड़ी शर्मा 
जीवन की आपाधापी से दूर
कंचों की मस्ती में चूर
देख रही हूँ बालपन को
सपनों की उड़न तस्तरी पर
सवार देख रहे है जो लक्ष्य को दूर
एक कंचा पाने की चाह में
दूबे है अपनी आँखों के चश्मे नूर


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Sunday, March 3, 2013

02 मार्च 2013 का चित्र और भाव


किरण आर्य 
रात कुछ अंधियारी सी
सुनहरे स्वप्न सलोने समेटे आई
आँगन में मेरे और फिर आगोश में
अपने अहसासों के साथ ले चली
मुझे इक ऐसे नगर
जहाँ मैं और मेरी दुनिया
फिर रात की बाँहों में ही
विचरते बीत गया हर इक प्रहर
पक्षियों के कलरव
सूरज की किरणों संग आई
मुस्काती सुबह और सिरहाने बैठ मेरे
हौले से बोली सुप्रभात उठो
इन्द्रधनुषी जो स्वप्न बुने
तुम्हारी आँखों ने
उन्हें साकार करने का समय है आया
और मैं उठ तुरंत खिड़की पर आई
तो धवल आकाश में
सतरंगी रंगों की आभा संग
मुस्काता इन्द्रधनुष कह रहा था मुझसे
चलो मेरे साथ करे मिल साकार जीवन स्वप्न


नूतन डिमरी गैरोला 
रोशनी तुम कितनी प्यारी हो
जो है, उसका अहसास करा देती हो
और बिखर गयी तुम अगर तो
सतरंगी हो जाती हो |
माना ये दुनियां तुमसे है मगर
क्या तुम जान सकती हो
उससे भी जरूरी हैं
तुम्हें जानने के लिए ...
मेरी ये दो आँखें
और मैं चाहूंगी
मेरी आँखों में भी रौशनी बनी रहें, सतरंगी, इंद्रधनुषी |


नैनी ग्रोवर 
मन करे मेरा पंख लगा, कर उड़ चलूँ कहीं दूर,
अम्बर के काले बादल, जैसे बरसने पे हों मजबूर..
इन्द्रधनुष के ओड़ लूँ चुनरी, रिमझिम की हो झांझर,
बैठ नदिया किनारे निहारूं, तेरी कुदरत का ये नूर ...!!

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
इस छोर से उस छोर ।
आसमां को मिलाता है कौन ?
काली घनेरी बदलियों को चीर ।
दूर क्षितिज तक ।
ये सतरंगी रंग बिखेरता है कौन ?

नयन विराम से हो जाते ।
जब जब इन्द्रधनुष आकाश पर पाते ।
सुना था, इंद्र धरा पर सौन्दर्य बाण चलाते।
देख ये सतरंगी डोर । सोचूं ..
मनचली प्रकृति पर लगाम लगाता है कौन ?

सतरंगी रंगों से कुछ रंग उधार लिए ।
यूँ बेरंग जीवन को रंग हमने दिए ..
जीने की अभिलाषा का पथ ..
संग हाथ अपने हाथों में लिए ..
हमें विकास की राह ..
दिखाता है कौन ?

इन्द्रधनुष से हमें रंग छोड़ना है ..
हर धर्म के लोगों को प्रेम से जोड़ना है ..
सभी धर्म सात रंग बन जाएँ ।
धरा के एक सिरे से दुसरे सिरे तक ..
नफरत भरे दिलों को, भाईचारे की और मोड़ना है ...


सुनीता शर्मा 
बादलों सा सुंदर न कोई , देख जिसे मयूर नाचे ,
देख आसमान में परिवर्तन , खुशियों से सब जन झूमें ,
धरती के गमों की बदली में इन्द्रधनुष सा सुख फले ,
प्रदूषित होती सृष्ठी पर वृक्षों से जँगल हों हरे भरें
अंधियारों के साए में जीवन फूलों का हर उपवन महके
धरती की प्यासी आत्मा को मेघो का हरदम स्नेह मिले ,
संसार से रंग भेद घटे और केवल मानवता की फसल बढे ,
रंगों में काला रंग जहाँ दुनियावी दुखों का दर्पण बने ,
इन्द्रधनुषी रंगों में देखो समझो खुशियों के कितने रत्न छुपे !


Pushpa Tripathi 
..... करतल ध्वनि .....

इन्द्र के शिल्पी हाथों से
नभ सुन्दर कादिम्बिनी स्वर्ग हुआ
श्यामपट में रूप निखारे
नैसर्गिक अप्सरा आई है .......

धरा पर भीनी खुशबु छाई
माटी का रंग भी उभरा है
सर सर बहते शीत पवन नें
घूँघट प्रकृति का खोला है .......

नील गगन के चादर में
सतरंगी इन्द्रधनुष झालर बुने
अंजन बादर के मौसम में
हरियाली मौज झुला झूले ........

खेतिहर किसान दिल बाग़ हुआ
लाखों उमंग मन पुष्प झरे
अनुमानित इच्छा से उसके
घर भोजन वर्ष प्रबंध हुआ .....

भारती जग जननी धन्य हुई
बूंदों की रिमझिम आई है
इंद्र धनुषी व्योम ओट में
अल्हड़ चक्रवाती दस्तक हुआ


बालकृष्ण डी ध्यानी
प्रकृती के रंग

देख छटा इन रंगों की
प्रकृती के इन अंगों की
इस छटा में जी ले तू
प्राण रस जरा पी ले तू
देख छटा ....देख छटा
तू देख छटा ............

सात सुरों का मेला ये
सात आसमानी झोला ये
सात रंगों का डोला ये
सात जन्मों का चोला ये
देख छटा ....देख छटा
तू देख छटा ............

नित नये रंग से यह सजाती
जीने की वो राह दिखती
जीते हैं सब जीने के लिये
जीवन की वो उमंग जगाती
देख छटा ....देख छटा
तू देख छटा ............

देख छटा इन रंगों की
प्रकृती के इन अंगों की
इस छटा में जी ले तू
प्राण रस जरा पी ले तू
देख छटा ....देख छटा
तू देख छटा ............


Yogesh Raj .
कैसी सुंदर ये छटा,
श्वेत श्याम ये घटा,
नभ में हुई चित्रकारी,
धनुष रंगीन हो उठा.


अरुणा सक्सेना 
वर्षा की बूंदे जब आयें साथ इन्द्र धनुष ले आयें
सात रंग के इस समूह में सरगम के स्वर भी मिल जाएँ
सुन्दर रंगों की छटा देख लगे निराली ...
आसमान में मानो आज छाई है हरियाली


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
काले बादल
समेटे हुए थे
न जाने कितने
दुःख और दर्द

नम आँखे
बस
तरस रही थी
सुकून
दो पल का
पाने को

बरखा संग
प्रकाश का
बना इंद्रधनुष
आस का
आज फिर
आसमां पर
उभर आया है

क्षितिज पर फैला
इंद्रधनुष
नभ को कर रहा
सुशोभित
मन को कर रहा
उत्साहित


नूतन डिमरी गैरोला 
देखो आज
सपनो की सतरंगी राजकुमारी
स्वर्ग सी अप्सरा
इन्द्रधनुष पर बैठ
धरती पर उतर आई हैं |

आज बरसेगा मेघ
धरती लहलहाएगी
मयूर नाचेगा वन में
खिल उठेंगी कलियां घर के आँगन में
झरने कलकल के गीत गायेंगे
मेरी खिडकी से उतर आया है स्वर्ग
मन के प्रांगण में |


अलका गुप्ता 
इंद्र धनुष स्वर्ग सेतु सा शिखर पर वृक्षों के है छाया |
अद्भुत कृति सा धरती से नभ तक सतरंगी सजाया||

इन सात रंगों में ही रंगी है जैसे सृष्टी की सारी काया |
अगवानी से इस मौसम की मधुर मनोहर मन हर्षाया ||

काम वान से साध रहा हो जैसे ...भव की हर माया |
निरखि सखी अद्भुत छटा जिसने...मन है भरमाया ||

तीर चलाकर मानो अनंग ने ...दग्ध हो मन बहकाया|
उमड़ रहे हैं भाव सागर से क्यूँ न अब भी वह आया ||

आह ! सुन्दर कैसा समय गढ़ा प्रकृति ने मन अकुलाया |
झलक रहे हैं अश्रु ख़ुशी के इन बूंदों में सतरंगी समाया ||



डॉ. सरोज गुप्ता
कवि !
ये काले -काले बादल तुम कहाँ से लाते हो ?
इन सतरंगी आँखों में किसका दर्द छुपाते हो ?

प्यासी धरा पर जब रिमझिम-रिमझिम बरसते हो !
अपने मीठे -रसीले गानों से धरा को भिगो देते हो !!
तुम अधरों पर इन्द्रधनुष बन खिल -खिल जाते हो !
अंगारों से जलती धरा को तुम मधुवन बना देते हो !!

कवि !
ये काले -काले बादल तुम कहाँ से लाते हो ?
इन सतरंगी आँखों में किसका दर्द छुपाते हो ?

काले -काले बादल से नहीं रखना कोई भ्रान्ति !
ये कृष्ण प्रेमी भय नहीं अभय की लाते क्रान्ति !!
खेत खलियानों को नव अंकुर की होती प्रतीति !
दरख्त की बादलों से है यह अजब गजब प्रीति !!

कवि !
ये काले -काले बादल तुम कहाँ से लाते हो ?
इन सतरंगी आँखों में किसका दर्द छुपाते हो ?

काले -काले बादल आये गौरी के अंगना !
सज गयी पायल रुनझुन,खनक रहे हैं कंगना !!
अमर लता सा उड़ -उड़ जाए यहाँ-वहां आँचल !
यमुना तट देख फुहार राधा का मन हो गया चंचल !!

कवि !
ये काले -काले बादल तुम कहाँ से लाते हो ?
इन सतरंगी आँखों में किसका दर्द छुपाते हो ?

धरती प्यासी चटख -चटख जाए,सूखे खेत निहारे अम्बर !
काले बादल मचल-मचल आये,अब तो बरसो मेरे पीताम्बर !!






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Friday, March 1, 2013

28 फरवरी 2013 का चित्र और भाव



Pushpa Tripathi 
- हे ईश -

सत सत बलिहारी जाऊं मै
हे ईश .. तुम्हारे चरणों में
पाकर ज्ञान का वरदान प्रभु
जीवन धन तर जाऊं मै .....

प्रथम प्रणाम मेरा तुम्हे
शुचि तन मन से स्वीकार करो
नियमित जीवन के शुभकार्य पर
अधिकार तुम्हारा फलीभूत करो

नैनी ग्रोवर
प्रथम प्रणाम ऐ माँ तुझको है,
इसका हक और किसी को नहीं है ..

नौ महीने अपना खून दे के पाले,
फिर खिलाये अपने हिस्से के निवाले,
तुझसा कहीं और कोई, कभी नहीं है
इसका हक ना ...

बच्चों को सूखे बिस्तर पे सुलाती है
और खुद गीले बिस्तर पे सो जाती है,
तू है तो इस जग में, कोई कमी नहीं है
इसका हक ना .. !!

अलका गुप्ता 
---------------------ॐ-----------------------

प्रथम प्रणाम हे !प्रभु आपको कर लो स्वीकार तुम |
सम्भालो हे !ईश निराधार हम,जीवन आधार तुम ||

हे ! प्रभो तुम त्रिकाल - दर्शी ,तुम ही विघ्न हर्ता ।
सर्वत्र जगत में व्याप्त तुम्हीं हो ,हे ! लायकर्ता।।
तेरा ही धरें ध्यान हम , ...........हे ! कृपानिधान ।
पाप से होवें विमुख हम, दीजिए दया नम्रता दान ।।



अलका गुप्ता 
सुन लो प्रार्थना मेरी हे भगवान् !
देना सबको उत्तम स्वास्थ्य !
निर्विघ्न करना सबके काज !
सत्कर्मो में ही हो सबका विशवास !
फैलें तेरे ही आगे हम सबके हाथ !
सबका सब विधि हो कल्यान !
होवे दुखिया ना कोई सृष्टि में प्राणधारी !
हे ईश सब सुखी हों कोई न हो दुखी !
सब हों निरोग धन धान्य के भंडारी !|
भेद भाव भूल के पावें प्रसाद हर देहधारी !
आत्म चिंतन का गहन मंथन हो !
हो काँधे पर मेहनत का भरोसा !
तोड़ ना देना आत्म-बल किसी का !
जब परीक्षा का समय कठिन हो !!


बालकृष्ण डी ध्यानी 
प्रथम प्रणाम

प्रथम प्रणाम मेरा
मेरे गुरुवर आपके चरणों के सदा साथ रहे
हम रहे ना रहे यंहा पर
वो स्मरण हमेशा हरदम हमारे साथ रहे

याद रहे मेरा वो झुकाव
इस शीश पर सदा आपका हाथ रहे
वंदन के शब्द मुख से मेरे गुरुवर
निरंतर गंगा धार की तरह बहे

अभिवादन मेरा सदा आपको
प्रथम प्रणाम इस हिर्दय में सदा आपका रहे
मूल हूँ आपका मौलिक विचार सदा आपसे रहे
प्रथम प्रणाम मेरा श्रेष्ठ और आधारभूत रहे

अछूता नही हूँ आपसे आपके संस्करों से
कर्म के मार्ग की मै रहा बनो आपके आशीषों से
भटक भी अगर जाऊं मै कभी सदमार्ग से
ज्ञान ज्योत ऐसे जलना ना जाऊं मै उस मार्ग पे

प्रथम प्रणाम मेरा
मेरे गुरुवर अंतिम पलों तक आपके साथ रहे
हम रहे ना रहे यंहा पर
वो स्मरण हमेशा हरदम हमारे साथ रहे


किरण आर्य 
...............प्रथम प्रणाम .........
सर्वप्रथम तो भोर की प्रथम किरणों संग
पृथ्वी को प्रथम प्रणाम
जो हर कष्ट सहती सहलाती हर भाव

फिर सुमरे मन प्रभु को मेरे
जिनका साथ करे निर्मल मन को
जो भर दें मन में ओज और जान

फिर गुरुवर को हमारा प्रणाम
गुरु जो करते राह प्रशस्त हमारी
और भर देते जीवन में ओज एवं प्राण

फिर प्रणाम हमारा माँ को हमारी
जो हंसके दुलारे हमें
निस्वार्थ सेवा ममता से पूर्ण मान

फिर प्रणाम हमारा उस पिता को
जिनकी अंगुली थाम सीखा चलना
दिया जिन्होंने कर्म करने का ज्ञान

और इक प्रणाम अपने सखा बन्धुओ को
जिनका असीम स्नेह करे प्रेरित
जो है हमारे व्यक्तित्व से बंधे हमारी शान

इसी तरह सत्कर्म करते बीते जीवन
संग अपनों के रखे सभी का मान
हौसले संग हो शुरू सुबह और बीते हरेक शाम


प्रजापति शेष 
इस धरती का में सभ्य प्राणी,
जीवन जीता औरो के हित,
अक्षुण्ण रखंू इसको अभिराम,
मुझे धारण करती धरती को प्रथम प्रणाम...

मैरा जीवन सफल सुरक्षित हो,
इस हेतु जो करती सदा प्रयास,
मेरी चिंता में रहती आंठॅों याम,
मेरी पुजनीय मॉं को प्रथम प्रणाम....

जिसकी तुलना किसी से ना हो,
जिसके जैसा और ना हो,
उनके आगे लघु हो सारे आयाम,
उन पुज्य पिता को मेरा प्रथम प्रणम

Pushpa Tripathi 
- अरुण्योदय -

करती प्रमाण सर्व प्रथम तुम्हे
भास्कर चैतन्य मन जागा है
अंधियारों से हमें निकालकर
काली रजनी को टाला है .......

अवलंब तुम्हारे ही ऊपर
जीव ..मानव .. सृष्टि का अस्तित्व टिका
केसरिया सुर्ख लाल किरणों के चांचल्य से
चौखट वसुंधरा का लांघा है

भगवान सिंह जयाड़ा 
प्रथम प्रणाम तुम्हें हे सूर्य देव भगवान् ,
शौर्य और ऊर्जा का दे हम को बरदान ,
सुबह उठ कर प्रथम ,करें तुम्हारा ध्यान,
दया से तम्हारी बना रहे ,सदा मान सम्मान ,
अपनी आभा से यूँ ही सदा ,जग को चमकाना ,
गुलसन रुपी दुनिया को सदा यूँ ही महकाना ,


अरुणा सक्सेना 
प्रथम प्रणाम आपको ,सुनना कृपा निधान
माता पिता के बाद मेरे ,आप ही भगवान्
बुद्धि ,विद्या और ज्ञान का ,दे देना वरदान
शालीनता से रहे सुसज्जित , ना करें कभी अभिमान ...


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
प्रथम प्रणाम मेरा जग जननी तुझको
अपार देती तू स्नेह हर पल हम सबको
माँ शब्द की उत्पत्ति भी हुई है तुझसे
प्रेम ममता व् त्याग की पहचान तुझसे

आँख खुले करता तुझको प्रथम प्रणाम
तुझ संग होता माँ - पिता को प्रणाम
सृष्टी के रचियता को मैं करता प्रणाम
आशीर्वाद लेने पूर्वजो को करता प्रणाम

अज्ञान का हटे अँधेरा ज्ञान का हो संचार
प्रकृति से प्रेम का रखे सब यहाँ विचार
आदर व् स्नेह की बहती रहे यहाँ बयांर
पहचाने, अपनाएं अपनी संस्कृति व् संस्कार


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 

प्रथम प्रणाम ......

पंचतत्व निर्मित ..
बिखरी रूह को हमारे देते जो आयाम ।
उस ऊपरवाले को खुदा, भगवान, जीजस ..
जो भी दो तुम नाम।
उन्ही की चरणों में ..
मेरा प्रथम प्रणाम ।

एक मेरी मुस्कान, लगती बेशकीमती जिन्हें ..
देने वो नन्ही मुस्कान हमें, दर्द लगी खुशियाँ जिन्हें ।
अपने विधाता को, मेरे जन्मदाता को ।
उनकी तस्वीर को, पाया उन्हें, अपनी तकदीर को ।
मेरा प्रथम प्रणाम

इंसान से इंसानियत ..
चुटकी सी मुस्कान देने, लबों को किसी की ..
आजीवन करते हैं जो काम ..
चल सके हम भी इस राह पर ..
उन्ही की राहों को ..
मेरा प्रथम प्रणाम ।

जीना है तो जिंदादिल जियें ।
देश पर शीश जिन्होंने सजदे किये ..
खड़े सीमा पर जो जवान ।
उन प्रहरियों को ..
जागरूक शहरियों को ..
मेरा प्रथम प्रणाम ।



Govind Prasad Bahuguna 
प्रथम प्रणाम कर ईश्वर को जिसने सबका सृजन किया
फिर प्रणाम कर धरती को जिसने सबको धारण किया
जिसकी माटी से उपजे सबके मात - पिता
जिसने सबको पोषण का आधार दिया
फिर प्रणाम कर मात पिता को जिसने तुमको जन्म दिया



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