Sunday, March 3, 2013

02 मार्च 2013 का चित्र और भाव


किरण आर्य 
रात कुछ अंधियारी सी
सुनहरे स्वप्न सलोने समेटे आई
आँगन में मेरे और फिर आगोश में
अपने अहसासों के साथ ले चली
मुझे इक ऐसे नगर
जहाँ मैं और मेरी दुनिया
फिर रात की बाँहों में ही
विचरते बीत गया हर इक प्रहर
पक्षियों के कलरव
सूरज की किरणों संग आई
मुस्काती सुबह और सिरहाने बैठ मेरे
हौले से बोली सुप्रभात उठो
इन्द्रधनुषी जो स्वप्न बुने
तुम्हारी आँखों ने
उन्हें साकार करने का समय है आया
और मैं उठ तुरंत खिड़की पर आई
तो धवल आकाश में
सतरंगी रंगों की आभा संग
मुस्काता इन्द्रधनुष कह रहा था मुझसे
चलो मेरे साथ करे मिल साकार जीवन स्वप्न


नूतन डिमरी गैरोला 
रोशनी तुम कितनी प्यारी हो
जो है, उसका अहसास करा देती हो
और बिखर गयी तुम अगर तो
सतरंगी हो जाती हो |
माना ये दुनियां तुमसे है मगर
क्या तुम जान सकती हो
उससे भी जरूरी हैं
तुम्हें जानने के लिए ...
मेरी ये दो आँखें
और मैं चाहूंगी
मेरी आँखों में भी रौशनी बनी रहें, सतरंगी, इंद्रधनुषी |


नैनी ग्रोवर 
मन करे मेरा पंख लगा, कर उड़ चलूँ कहीं दूर,
अम्बर के काले बादल, जैसे बरसने पे हों मजबूर..
इन्द्रधनुष के ओड़ लूँ चुनरी, रिमझिम की हो झांझर,
बैठ नदिया किनारे निहारूं, तेरी कुदरत का ये नूर ...!!

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
इस छोर से उस छोर ।
आसमां को मिलाता है कौन ?
काली घनेरी बदलियों को चीर ।
दूर क्षितिज तक ।
ये सतरंगी रंग बिखेरता है कौन ?

नयन विराम से हो जाते ।
जब जब इन्द्रधनुष आकाश पर पाते ।
सुना था, इंद्र धरा पर सौन्दर्य बाण चलाते।
देख ये सतरंगी डोर । सोचूं ..
मनचली प्रकृति पर लगाम लगाता है कौन ?

सतरंगी रंगों से कुछ रंग उधार लिए ।
यूँ बेरंग जीवन को रंग हमने दिए ..
जीने की अभिलाषा का पथ ..
संग हाथ अपने हाथों में लिए ..
हमें विकास की राह ..
दिखाता है कौन ?

इन्द्रधनुष से हमें रंग छोड़ना है ..
हर धर्म के लोगों को प्रेम से जोड़ना है ..
सभी धर्म सात रंग बन जाएँ ।
धरा के एक सिरे से दुसरे सिरे तक ..
नफरत भरे दिलों को, भाईचारे की और मोड़ना है ...


सुनीता शर्मा 
बादलों सा सुंदर न कोई , देख जिसे मयूर नाचे ,
देख आसमान में परिवर्तन , खुशियों से सब जन झूमें ,
धरती के गमों की बदली में इन्द्रधनुष सा सुख फले ,
प्रदूषित होती सृष्ठी पर वृक्षों से जँगल हों हरे भरें
अंधियारों के साए में जीवन फूलों का हर उपवन महके
धरती की प्यासी आत्मा को मेघो का हरदम स्नेह मिले ,
संसार से रंग भेद घटे और केवल मानवता की फसल बढे ,
रंगों में काला रंग जहाँ दुनियावी दुखों का दर्पण बने ,
इन्द्रधनुषी रंगों में देखो समझो खुशियों के कितने रत्न छुपे !


Pushpa Tripathi 
..... करतल ध्वनि .....

इन्द्र के शिल्पी हाथों से
नभ सुन्दर कादिम्बिनी स्वर्ग हुआ
श्यामपट में रूप निखारे
नैसर्गिक अप्सरा आई है .......

धरा पर भीनी खुशबु छाई
माटी का रंग भी उभरा है
सर सर बहते शीत पवन नें
घूँघट प्रकृति का खोला है .......

नील गगन के चादर में
सतरंगी इन्द्रधनुष झालर बुने
अंजन बादर के मौसम में
हरियाली मौज झुला झूले ........

खेतिहर किसान दिल बाग़ हुआ
लाखों उमंग मन पुष्प झरे
अनुमानित इच्छा से उसके
घर भोजन वर्ष प्रबंध हुआ .....

भारती जग जननी धन्य हुई
बूंदों की रिमझिम आई है
इंद्र धनुषी व्योम ओट में
अल्हड़ चक्रवाती दस्तक हुआ


बालकृष्ण डी ध्यानी
प्रकृती के रंग

देख छटा इन रंगों की
प्रकृती के इन अंगों की
इस छटा में जी ले तू
प्राण रस जरा पी ले तू
देख छटा ....देख छटा
तू देख छटा ............

सात सुरों का मेला ये
सात आसमानी झोला ये
सात रंगों का डोला ये
सात जन्मों का चोला ये
देख छटा ....देख छटा
तू देख छटा ............

नित नये रंग से यह सजाती
जीने की वो राह दिखती
जीते हैं सब जीने के लिये
जीवन की वो उमंग जगाती
देख छटा ....देख छटा
तू देख छटा ............

देख छटा इन रंगों की
प्रकृती के इन अंगों की
इस छटा में जी ले तू
प्राण रस जरा पी ले तू
देख छटा ....देख छटा
तू देख छटा ............


Yogesh Raj .
कैसी सुंदर ये छटा,
श्वेत श्याम ये घटा,
नभ में हुई चित्रकारी,
धनुष रंगीन हो उठा.


अरुणा सक्सेना 
वर्षा की बूंदे जब आयें साथ इन्द्र धनुष ले आयें
सात रंग के इस समूह में सरगम के स्वर भी मिल जाएँ
सुन्दर रंगों की छटा देख लगे निराली ...
आसमान में मानो आज छाई है हरियाली


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
काले बादल
समेटे हुए थे
न जाने कितने
दुःख और दर्द

नम आँखे
बस
तरस रही थी
सुकून
दो पल का
पाने को

बरखा संग
प्रकाश का
बना इंद्रधनुष
आस का
आज फिर
आसमां पर
उभर आया है

क्षितिज पर फैला
इंद्रधनुष
नभ को कर रहा
सुशोभित
मन को कर रहा
उत्साहित


नूतन डिमरी गैरोला 
देखो आज
सपनो की सतरंगी राजकुमारी
स्वर्ग सी अप्सरा
इन्द्रधनुष पर बैठ
धरती पर उतर आई हैं |

आज बरसेगा मेघ
धरती लहलहाएगी
मयूर नाचेगा वन में
खिल उठेंगी कलियां घर के आँगन में
झरने कलकल के गीत गायेंगे
मेरी खिडकी से उतर आया है स्वर्ग
मन के प्रांगण में |


अलका गुप्ता 
इंद्र धनुष स्वर्ग सेतु सा शिखर पर वृक्षों के है छाया |
अद्भुत कृति सा धरती से नभ तक सतरंगी सजाया||

इन सात रंगों में ही रंगी है जैसे सृष्टी की सारी काया |
अगवानी से इस मौसम की मधुर मनोहर मन हर्षाया ||

काम वान से साध रहा हो जैसे ...भव की हर माया |
निरखि सखी अद्भुत छटा जिसने...मन है भरमाया ||

तीर चलाकर मानो अनंग ने ...दग्ध हो मन बहकाया|
उमड़ रहे हैं भाव सागर से क्यूँ न अब भी वह आया ||

आह ! सुन्दर कैसा समय गढ़ा प्रकृति ने मन अकुलाया |
झलक रहे हैं अश्रु ख़ुशी के इन बूंदों में सतरंगी समाया ||



डॉ. सरोज गुप्ता
कवि !
ये काले -काले बादल तुम कहाँ से लाते हो ?
इन सतरंगी आँखों में किसका दर्द छुपाते हो ?

प्यासी धरा पर जब रिमझिम-रिमझिम बरसते हो !
अपने मीठे -रसीले गानों से धरा को भिगो देते हो !!
तुम अधरों पर इन्द्रधनुष बन खिल -खिल जाते हो !
अंगारों से जलती धरा को तुम मधुवन बना देते हो !!

कवि !
ये काले -काले बादल तुम कहाँ से लाते हो ?
इन सतरंगी आँखों में किसका दर्द छुपाते हो ?

काले -काले बादल से नहीं रखना कोई भ्रान्ति !
ये कृष्ण प्रेमी भय नहीं अभय की लाते क्रान्ति !!
खेत खलियानों को नव अंकुर की होती प्रतीति !
दरख्त की बादलों से है यह अजब गजब प्रीति !!

कवि !
ये काले -काले बादल तुम कहाँ से लाते हो ?
इन सतरंगी आँखों में किसका दर्द छुपाते हो ?

काले -काले बादल आये गौरी के अंगना !
सज गयी पायल रुनझुन,खनक रहे हैं कंगना !!
अमर लता सा उड़ -उड़ जाए यहाँ-वहां आँचल !
यमुना तट देख फुहार राधा का मन हो गया चंचल !!

कवि !
ये काले -काले बादल तुम कहाँ से लाते हो ?
इन सतरंगी आँखों में किसका दर्द छुपाते हो ?

धरती प्यासी चटख -चटख जाए,सूखे खेत निहारे अम्बर !
काले बादल मचल-मचल आये,अब तो बरसो मेरे पीताम्बर !!






सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

1 comment:

  1. सभी मित्रों के भाव बहुत सुन्दर हैं सभी को हार्दिक बधाई!!!

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शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!