Friday, March 22, 2013

21 मार्च 2013 का चित्र और भाव


अशोक राठी 
इंसान के लिए सन्देश ----
परिस्तिथियाँ जो भी हों
संगठित हों अपने पैरों से
थामें रहे जमीं को
पार पा ही जायेंगे चुनौतियों से

दीपक अरोड़ा 
आओ, एकता में बल है का पाठ पढाएं
बोलकर नहीं, प्रेक्टीकली समझाएं...
पडेगी गर हममे फूट, तो दुश्मन लेगा लूट
आओ सब मिलकर यह संदेश फैलाएं.

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
हम पंछी ..

लांघ सीमायें अपनी,..
हम दुनिया मिलाने चले ..
प्रेम, स्वतंत्रता ...
खुशहाल जीवन का भेद ..
शांति तलाशते इंसान को
ये भेद समझाने चले ...
भांति२ के दाने चुगे ..
भांति२ का बहता नीर ..
सबकी इक सी आह देखी ..
देखि सबकी इक सी पीर ..
आत्मसात कर ना सके।।
ये नफरत के अहीर ..
इक सबका उपरवाला ..
इक सबका पीर ..
इक सबका आसमां ..
क्या खींच पायेगा तू इसमें लकीर ?
समझ हमसे ओ अधीर


प्रजापति शेष .....
माना कि हम खग छोने हैं
पंखी अभी तक बोने है।
पंजे भी मजबूत होने है।
धरती पर फिसलन फैलाने वालो
क्या तुम्हे पता है कि हम
कल को आसमान के होने है।


किरण आर्य 
दुनिया ये बेढंगी
रंग इसके देख
अवाक है खड़े ये पंछी
संगठन या एकता
जिसे दर्शा रहे है
ये मानुष हाँ मानुष क्यों
पथ भ्रष्ट हुए जा रहे है
केवल निज में हो सीमित
मानवता को शर्मसार
ये किये जा रहे है
पंछी इनके स्वार्थ पर
आसूं बहा रहे है
जिस तरह विलुप्त
हो रहे ये पंछी
ऐसे ही मानवता
हो जायेगी विलुप्त
मानुष रह जाएगा
अकेला नितांत अकेला


अलका गुप्ता 
चिड़िया हूँ मैं नाज़ुक पंखों वाली |
परे आसमान से सागर पर उड़ती |
एक साथ मिल नई दूरियाँ नापा करती |
फुदक-फुदक कर भागा करती |
नन्हें-नन्हें कदम बढ़ाती |
एकसाथ ही हैं हम इठलाती |
नित नए-नए ख़्वाब सजाती |
मटक-मटक कर गाने गाती |
तैर सागरों पर... कभी उड़ जाती |
एकता में झुण्ड के इतराती |
मैं चिड़िया हूँ नाजुक पंखों वाली |
टुकुर-टुकुर लहरों पर मिल खाना ढूंढू |
वर्फीले समुद्र पर यहीं वसेरा अपना |
मिल कर सब चहकूँ नाचूँ झूमूँ |
चिड़िया हूँ मैं नाज़ुक पंखों वाली |
आते हैं रोज आजकल प्रतिबिम्ब यहाँ |
देख-देख खुश हो जाते |
खींचकर तश्वीरें खूब ले जाते |
पागल खाने के मित्रों से ....
कविताएँ हैं रचवाते |
समेटकर फिर ब्लॉग पर हैं सजाते |
इसी बहाने सब मिल जाते |
कुछ नया सीखते और सिखाते |
चिड़िया हूँ मैं नाज़ुक पंखों वाली |


बालकृष्ण डी ध्यानी 
पंछी

पंछी रे पंछी
तेरा यंहा ना ठिकाना
दो पल सुस्ता ले
दूर देश है तुझे जाना
पंछी रे पंछी....................

एकता ही तेरा बल है
पंख तेरे सबल है
कौन दिशा निहारे
कौन और तुझे जाना
पंछी रे पंछी....................

आकाश तेरा घर है
तू ठहरा अब किधर है
बंजारा है मेरी तरह
घूम ले अब दीवाने
पंछी रे पंछी....................

कारवाँ बढता चल
देख छुटे ना वो पल
ऐ मौसम ना जाये
यूँ ही हम बिन गुजर
पंछी रे पंछी....................

पंछी रे पंछी
तेरा यंहा ना ठिकाना
दो पल सुस्ता ले
दूर देश है तुझे जाना
पंछी रे पंछी..............


बलदाऊ गोस्वामी 
आस भरी नयन से,खण्डे हम उदधि के पास।
हे मानष सुनले पुकार,बंधी है कब से हमारी शांस।।
एकता की दुसाला ओढें,चाहे दु:ख हो हमारे साथ।
पर मानष को कहना चाहते,अपने मन की बात।।
प्रकृति नियम के अनुकूल,ले तुम अपने को संभाल।
पाछे-पछताएगा,जब प्रकृति करेगा तेरा बुरा हाल।।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
इस रंग - बिरंगी दुनियां में हम भी रहते है
लेकिन एक साथ चलने की ख्वाइश रखते है
जीवन तो हम सब अपना - अपना जीते है
लेकिन संगठन में शक्ति है ये रोज सीखते है
धरती पर चलना हो या आसमां में उड़ना हो
एकता को जीने का एक मंत्र हम समझते है


Yogesh Raj .
न कोई मंजिल, न कोई ठिकाना,
पता नहीं, कहाँ है हमको जाना,
फिर तय कर रहे सफर अंजाना,
उदासी तो छाई है, पर संतोष है,
साथ ही जायेंगे जहाँ भी है जाना,
भले ही न मंजिल न कोई ठिकाना


डॉ. सरोज गुप्ता 
तू पंछी अद्भुत
~~~~~~~~~
हे अद्भुत पंछी !
रचनाकार ने तुझे
गढने में बहुत महंगी मिट्टी
दूर किसी दुधिया पहाड़ से
विशेष विमान से मंगवाई होगी!
साँचा -मांजा एक
पानी में मिले पानी जैसा !
हम मनुष्यों को देख
भांति-भांति संभ्रांत
करते तुम समेत
सबको ही आक्रान्त
हमको तुम जैसा
क्यों न बनाया नाथ ?
तू तो देखन में छोटा पाकेट
प्यारा लगे जैसे उड़े अबीर !

हे अद्भुत पंछी !
तेरा छोटा सा बदन,
सफेदी से लिपा पुता ,
चौंच तेरी मतवाली ,
पीली पीली रंगडाली !
तुझे लगे न कही नजर ,
काले बालों का चंवर,
सर पर सजा डाला !
तू चले पैंयाँ-पैंयाँ ,
तेरे पंजे करे नृत्य ,
झूम-झूम जाए मनुष्य,
तू है सृष्टि का सत्य !

हे अद्भुत पंछी !
तू देखे टुकर-टुकर ,
जैसे मैं हूँ जोकर !
ख़्वाब देखूँ यह अनोखा ,
सोकर या जागकर ,
सारी दुनिया खोकर ,
बन जाऊं तेरी नौकर !
संग मिल जाए तेरा तो ,
न्यौछावर कर दूँ रोकड़ !


भगवान सिंह जयाड़ा 
हम पक्षी हैं मर्जी के मालिक ,
फिर भी एक शंघ में रहते है ,
दाना चूंगना अपना अपना ,
लेकिन एक साथ हम चलते है,
द्वेष भाव नहीं कुछ आपस में ,
हम सदा प्रेम प्यार से रहते हैं
यहाँ अपने पराये का भेद नहीं ,
हम सब देश बिदेश से आते हैं
एकता में होती है शक्ति सदा ,
यह सन्देश हम सब को देते है ,
हम पक्षी हैं .................


Pushpa Tripathi 
- नन्ही हूँ .........

किलबिल स्वर गुंजन मै गाऊं
फुदक फुदक कर सुर लहराऊं
भीगे तल पर ताल रचाकर
मेरी तुमको बातें बतलाऊं l


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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