Wednesday, April 17, 2013

15 अप्रैल 2013 का चित्र और भाव






ममता जोशी 
काश में पर्वत होती ,
अविचलित,अखंड ,आकर्षक,
आसमान को छूते पर्वत,
और
आसमान से सितारे चुराकर
चुपके से
धीरे धीरे प्यार से बिखरा देती
प्यासी धरती पर


बालकृष्ण डी ध्यानी 
चुपचाप खड़े पहाड़ों में

पर्वतों पे बिछी है
दो पल बर्फ का डेरा है
खुला आसमान नीलमी वो
नीला रंग बेखेरा है
पर्वतों पे बिछी है
दो पल बर्फ का डेरा है .........................

मन मेरे आज वो
नीला रंग गहरा है
घर की यादों में
राह ताक रहा पहाड़ मेरा है
दूर हूँ उससे जैसे वो मेरे बर्फ का घेर है
दो पल बर्फ का डेरा है .........................

चुपचाप खड़े पहाड़ों में
पला मेरे यादों का बसेरा है
घोंसला वो टूटा मेरा
कभी बसा वंहा परिवार मेरा है
आँखों से बहती है बस गंगा धारा है
दो पल बर्फ का डेरा है .........................

निशब्द सा खड़ा पर्वत वो
कितने प्रश्नों को पेरा है
नीला नीला आसमान मेरा
बचपन बुढपा बस वंहा छुटा है
जवानी ने सैर सपाटे के लिये छोड़ा है
दो पल बर्फ का डेरा है .........................

पर्वतों पे बिछी है
दो पल बर्फ का डेरा है
खुला आसमान नीलमी वो
नीला रंग बेखेरा है
पर्वतों पे बिछी है
दो पल बर्फ का डेरा है


नैनी ग्रोवर
ये बर्फीले पर्वत प्यारे-प्यारे,
मुझे पास बुलाने को करते इशारे,
मन पंख लगा कर उड़ चला,
वाह वाह, तेरी सृष्टि के नज़ारे..

दूर तलक फैला ये नीला आकाश,
जहाँ भी देखूं, पंछीयों की परवाज़,
ये दूध सी, सफ़ेद_सफ़ेद हुई धरती,
तकते-तकते मेरे ये नैना नहीं हारे ...

आओ यहाँ इक सुन्दर घर बना लें,
सपने जो अधूरे थे, उनको सजालें,
बोयें यहाँ हम बीज इंसानियत के,
यूँ ही बस ताउम्र, संग इनके गुजारें...!!


भगवान सिंह जयाड़ा 
पर्वत और शांत समुन्दर लगता कितना प्यारा ,
कुदरत की लीला का है ,यह अदभुत नजारा ,
चाँदनी रात में बिखेर रहा है अपनी धवल काया ,
धुन्दला सा प्रतिबिम्ब ,पुरे निधि पर है छाया ,
बस एक टक से निहारती रहती ,आँखे इन को ,
देता एक अदभुत सी शान्ति ,सब के मन को ,


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ पहाड़ हो जाए ~

पर्वत हमारा मान
है हमारा अभिमान .
दिन और रात
तूफानों को झेलकर
देश की रखता आन बान
होकर अडिग खड़ा,
देखो बढ़ा रहा शान

हर चोटी पर्वत की
उंच नीच का
ये भेद मिटा रही.
हो कैसा भी कद
कंधा न सही
हाथ ही सही
थामे खड़े है
दे रहे है
प्रेम का सन्देश
एकता का सन्देश
ताकत का सन्देश
सुरक्षा का सन्देश

आओं हम सब
तन मन से
पहाड़ हो जाए


किरण आर्य 
हिम से आच्छादित
ये शिखर
जो अचल खड़े
धेर्य से परिपूर्ण
शांत गंभीर से
सूरज की
पहली किरण के
पढ़ते ही
हर कण हिम का
चमक उठता है
मोती के मानिंद
और सौन्दर्य
इन शिखरों का
मन को मोह लेता
सजग प्रहरी से
खड़े ये निरंतर
अडिग बिना झुके
हाँ ये पर्वत शिखर
हिम से आच्छादित
अचल खड़े


अलका गुप्ता 
आह ! सांध्य की यह अनुपम बेला है |
सौन्दर्य यह अद्भुत अम्बर भी नीला है
छाई गगन पर लालिमा मंगल की ...
विश्मित हुआ मन दृश्य अलवेला है ||

श्वेत पर्वत शिखर दमके ज्यों नील मणि से |
साम्राज्य हिम का निस्तब्ध निःशब्द नील से |
अद्भुत सौन्दर्य युक्त प्रकृति की अनुपम लीला है |
अम्बर छाया या धवल नील धरातल श्याम से ||

डर गया है या दंग है मन अविचल इस रंग से |
तोल ना दे मानव मायावी लोलूप वद्ध हर मोल से |
ऐसा कुछ होने ना दे हे ! कृपा निधान तू वचन दे |
रौंद ना दे क़दमों तले....प्रदूषित अग्नि ज्वाल से ||


सुनीता शर्मा 
चाँदी सी दमक लिए
अगम्य पथ
मन में शीतलता लिए
युगों से अनवरत
तेरा आकर्षण लिए
युगों से मानव
अपनी खुशियों लिए
युगों से बटोही
मोक्ष प्राप्ति के लिए
युगांतर तलाश रहा !...


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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