Thursday, April 25, 2013

23 अप्रैल 2013 का चित्र और भाव




Govind Prasad Bahuguna 
क्यों नाच उठा ये मन मयूर
कम्पित उच्छवासें ले रही हिलोर
प्रतीक्षा है उनके आने की
मनसिज के मुस्काने की
भाव भंगिमा में बांधू उनको
अर्पित कर दूं साँसें उनको
वरदान नहीं है मेरी इच्छा
संग चलूँ मैं, मेरी पृच्छा


Jagdish Pandey 
कदम हैं मेरे थिरक रहे
मन भी कुछ है बहक रहा
कुछ करो हे जग के स्वामी
अंत:करण अब तडप रहा
.
तेरा गुंबद जितना उँचा है
मैं भाव से उतना नीचा हूँ
अंबर की इस छाया में ही
चमन छोटा सा सींचा हूँ
.
कर जोरे माँगू यही करतार
न उजडे किसी का घरबार
नृत्य करत यही विनती है
करो अब हरा भरा संसार


नैनी ग्रोवर 
आज झूम रही धरती, झूम रहा आकाश,
संग-संग मेरे नाच रहा, प्रेम का विश्वास..
हे हरी, विनती में करूँ दोनों हाथ जोड़ के,
संसार को दीजिये श्रधा और सबुरी की सौगात ...!!


बालकृष्ण डी ध्यानी 
नाच उठा

नाच उठा तन मन
अंगविक्षेप सजा आज है
नाचमंडली ना साज है
मयूर इनके बिना भी नाचे आज है

मंदिर के घंटे की तान है
साथ खड़ा नीला आसमान है
नाच-रंग की मधुर मुस्कान है
नृत्य ही प्रभु की साधना का सच्चा स्थान है

कोयल की बोली है जंहा
जंहा गाती बुल बुल सुरताल है
इस दौड़-धूप हुल्लड़ के बीच ही
बसा मेरा प्यार हिन्दुस्थान है

घुंघुरू की वो लड़ी
गजरे संग केशों में जड़ी
शिव आरधना का मान है
नृत्य का यंहा अलग ही मकाम है

सरगम पर थिरकते पैर
सात सुरों का वो मिलाप है
संगीत और नृत्य ही
जीवन की सही पहचान है

नाच उठा तन मन
अंगविक्षेप सजा आज है
नाचमंडली ना साज है
मयूर इनके बिना भी नाचे आज है


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
भक्ति अपने मन में लिए, शक्ति लिए तन में
पैर खुद ब खुद थिरक रहे, प्रभु तेरे आँगन में
वंदना तेरी करते, प्रफुल्लित होता मन ये
तेरी शरण में आते ही, देखो नाच रहा मन ये
इंसानियत दिल में उपजे, प्रेम आभूषण बने
बने प्रकृति प्रेमी ले तेरा नाम, येसे इन्सान बने


अलका गुप्ता 
मैं महिमा मंडित देवी,अबला कहलाऊं |
मैं ना कुपित हो...यूँ ही तांडव कर पाऊं |
मैं श्रृंगार प्रकृति का तुम हो आधार मेरा ...
हित में औरों के रत मैं औरत ही रह पाऊं ||

भाव भंगिमा हर मुद्रा में..मैं पारंगत हो जाऊं |
राग रच मधुर प्रकृति से ...नृत्य मैं बन जाऊं |
पांवों में घुंघुरुओं के इन झंकार सरस हो जाए ...
मन मन्दिर में मानव हे !संस्कृति खूब सजाऊं ||


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
रह चरणों में देवता के ...
रही में प्रेम प्यासी ..
कभी महसूस करूँ बंधन ..
कभी घट घट वासी ..
कोई कहे जोगनी, कोई देवदासी ..

वही बसेरा मेरा ...
मंदिर शिवालों में ..
मदमस्त नृत्य करना चाहूँ ..
गोपियों ग्वालों में ..
पग बंधे घुँघरू मेरे ..
क़ैद रस्मों रिवाजों में ..
असंभव निकासी ..

अर्पित आजीवन ..
देव चरणों की दासी ..
ब्याहता देवों की ..
वर्जिता जीवन मेरा ..
देव स्पर्श को प्यासी



डॉ. सरोज गुप्ता
नाच एक पूजा
....................
मेरा तन रहा नाच ,
नाच मेरे मन नाच !
मेरा तन एक नाच ,
नाच मेरे मन नाच !!

मेरे मन में मन्दिर,
मेरा तन है मन्दिर !
नाच तो है एक पूजा ,
पूजा ही एक नाच !!

नाच मेरे मन नाच !
मेरा तन एक नाच !!

बाजे घंटियों की टंकार ,
मिल पायल की झंकार !
मेरे रोम रोम में साकार ,
तेरे रूप ने लिया आकार !!

नाच मेरे मन नाच !
मेरा तन एक नाच !!

मन्दिर का यह रोम -रोम ,
मेरे नाच का बना व्योम !
मेरी तपस्या का यह नृत्य ,
तेरी अनुकम्पा का है कृत्य !!

नाच मेरे मन नाच !
मेरा तन एक नाच !!



सुनीता शर्मा 
भारत की इस पावन धरा पर
मंदिरों में रोज होते कीर्तन भजन
नृत्य करती थी हर बाला होकर मग्न
मीरा , द्रोपदी और राधा की आस्था
हो रही अब हर रोज छिन्न भिन्न
कृष्ण जी की लीला से अनभिज्ञ
कर रही अब भोले नटराजन न्रत्य
अपने अस्तित्व को मिटता देख
हो गया हर बाला का आज व्याकुल मन



किरण आर्य 

शिव के प्रेम समर्पण में
पार्वती मन कोशिकी है करे

थिरकन से पैरों की भगवन
मन की हर भंगिमा है सज़े

आज ईष्ट मेरे तेरे चरणों में
ह्रदय अनुरागी मोरा राग रचे

अनुकंपा पर तोरी देव मोरे
तन मन मेरा थिरकने लगे

साधनारत तेरे द्वार पर
नृत्य में मोरा हर भाव सज़े



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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