Friday, June 14, 2013

08 जून 2013 का चित्र और भाव



दीपक अरोड़ा 
चलो अब खेल बहुत हो गया
थोड़ा सा पढ़ लिया जाये
भेजा खपा दिया खेलने में
अब किताबों से लड़ लिया जाये

जगदीश पांडेय
नही आती समझ में मुझे इसकी बातें
बनाई है किसनें ये मोटी मोटी किताबें
नजरें टिकी हैं पर समझ कुछ न आये
अक्षर काले काले देखो मुझको डराये
पढते हुवे बीत गई जानें कितनी रातें
नही आती समझ में मुझे इसकी बातें
बनाई है किसनें ये मोटी मोटी किताबें
.
जब भी मैं करनें बैठूँ पढाई
नींद से होती है मेरी लडाई
उस पर देख मुझको अकेला
जमुहाई भी है करती चढाई
कब तक होगी इनसे मुलाकातें
नही आती समझ में मुझे इसकी बातें
बनाई है किसनें ये मोटी मोटी किताबें
.
पढ लिख शायद इंजिनियर बन जाऊँ
डर है कहीं मैं रेती सिमेंट न बेंच खाऊँ
पढ लिख कर शायद डाक्टर बन जाऊ
नकली दवाओं का क्वार्टर न बन जाऊँ
गुजरे जीवन मेरा शराफत से हँसते गाते
नही आती समझ में मुझे इसकी बातें
बनाई है किसनें ये मोटी मोटी किताबें


भगवान सिंह जयाड़ा 
गुड़िया रानी अब हुई संयानी ,
करती है अब ,वह मनमानी ,

खेल खिलौने भी ,उसके पास ,
किताबों में ढूंडे जीवन आश ,

ख़्वाबों में कुछ यूँ डूबी रहती ,
मन मर्जी कुछ करती रहती ,

चलो आज यह एल्बम देखूं ,
इसी से आज मैं कुछ सीखूं ,

दादा दादी ,को कभी न देखा ,
मिला नहीं कभी ऐसा मौका ,

पाप्पा के संग रह गए प्रदेश ,
ले जाते नहीं मुझे अपने देश ,

मैं खूब पढूंगी ,खूब लिखूंगी ,
पढ़ लिख कर जब कुछ बनूंगी ,

तब मैं खुद ही घूम सकती हूँ ,
हर अपनों से मिल सकती हूँ ,

गुड़िया रानी अब हुई संयानी ,
करती है अब ,वह मनमानी ,


नैनी ग्रोवर
कामयाबी की सीड़ियाँ चड़ना है,
माँ मुझको भी पढ़ना है..

भैया की तरह, मुझे भी हक है,
क्यूँ मेरी योग्यता पर शक है,
मुझे भी बुद्धि दी है मालिक ने,
मुझे इन कुरीतियों से लड़ना है ..

माँ मुझको भी पढना है ....
ऐ मुझको जन्म देने वाले जन्मदाता,
क्यूँ बेटों की तरह मेरा पड़ना नहीं सुहाता,
मेरे नाज़ुक मन को ये भेद नहीं है भाता,
बन के वीरांगना, आगे बड़ना है ...

माँ मुझे भी पढना है ...!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
-- मेरा सपना ---
सीख रही हूँ मैं पढ़ना लिखना
बड़े होकर मुझे कुछ है बनना
स्नेह आशीर्वाद आप देते रहना
पूरा करूंगी मैं आपका हर सपना

लिंग भेद को दूर रखना सदा
जन्म से पहले न कोई करे विदा
हर एक कन्या जाये पाठशाला
बुरी नज़र वालो का हो मुंह काला


ममता जोशी 
बिटिया रानी तुझे भी पढ़ना है,
मर्दों की इस दुनिया में तुझे भी आगे बढ़ना है,
साक्षरता ही करवाती है कर्तव्यों का ज्ञान ,
नहीं रहना है तुझे अब अपने अधिकारों से अनजान,
१ दिन बनेगी तू भी डॉक्टर, इंजीनिअर या वैज्ञानिक महान ,
पढ़ लिख कर मिलेगा तुझको सर्वोपरि सम्मान ,
अपने हौसलों का दीपक तू कभी न बुझने देना ,
हर मुश्किल को पीछे छोड़ बस आगे बढ़ते रहना !


Pushpa Tripathi
कुछ ज्ञान मुझे भी पाना है
कुछ शब्द मुझे भी पढना है
चल पडूँगी ... नेक राह भर सहेली
हर मंजिल मुझे तय करना है .....

कन्या हूँ .... छवि अभी कोमल मेरा
जीवन में मुकाम अपना बनाना है
संपूर्ण शिक्षा साध्य सरल अधिकार मिले गर
ऊँचे पद पर टिके रहना मेरा भी तो हक़ है ......

छोटी हूँ .....अभी कई भूल सही
बढ़े बनने का फर्ज अदा करना है
किताबों में खो कर जीवन सुधरेगा
इसी में तो सारी दुनियां दिखती है

Pushpa Tripathi 
नन्हे है हाथ
किताबे बड़ी
शिक्षा के अधिकार से
उम्मीदे कई l

थामती हथेली
उँगलियों का साथ
किताबों से बड़ी
ज्ञान की बात l

छोटे है पैर
बहुत लम्बे रास्ते
चलना है अभी
बहुत दूर फासले l

छोटी है कुर्सी
जिम्मेदारी बहुत
शिक्षा से पा लूंगी
निजात कई


डॉ. सरोज गुप्ता 
बच्चो पर अत्याचार
~~~~~~~~~~~~~~~
बच्चो पर किया जा रहा है अत्याचार !
सुर्खियाँ बना है आज का यह समाचार !!

गर्म हो गया है मीडिया का बच्चा प्रचार ,
माँ -बाप भी चल पड़े हैं बेचने बच्चे बाजार !
मासूमियत बिक रही खुले में बढा व्यापार ,
लहरें उठने से पहले ही बाँध दिए गए कगार !

बच्चो पर किया जा रहा है अत्याचार !
सुर्खियाँ बना है आज का यह समाचार !!

उंगुलियां जो अभी तक पकड न पायी कलम ,
पकड़ चिमटा,चम्मच और कडाही तोड़ेंगी भ्रम !
माचिस की तिल्ली भी रखी जाती थी दूर भाग ,
अब थमा उन हाथों में जलवाई जायेगी आग !

बच्चो पर किया जा रहा है अत्याचार !
सुर्खियाँ बना है आज का यह समाचार !!

मास्टर शेफ का पाने को खिताब लगी होड़ ,
पैसे और शोहरत ने बच्चो के जीवन में लाया मोड़ !
हार और जीत के खेल ने बच्चे-दिल दिए तोड़ ,
गुड्डे -गुडिया से खेलने के दिनों थे जो उसके ,
हाय !किताब में ढूँढ़ रही गुडिया व्यंजन के तरीके !

बच्चो पर किया जा रहा है अत्याचार !
सुर्खियाँ बना है आज का यह समाचार !!


बालकृष्ण डी ध्यानी 
छुई मुई

यूँ ही बैठी हूँ मै
यूँ लगी अपने ही से
रबा क्या होगा क्या जाने
खोयी आज कीस चिंता में मै
यूँ ही बैठी हूँ मै

छुई मुई सी हूँ मै
अल्हड़ सी ये मेरी उम्र
क्या देखों क्या समझों
इस किताब को देख कर
यूँ ही बैठी हूँ मै

उबासी आ रही है
कब जाने आ जायेगी नीद
सपने ही मेरे अच्छे हैं
जिस को चाहीये बस नींद
यूँ ही बैठी हूँ मै

जब होगा तब होगा
इस बचपने पर ना तू
इस बस्ते ना बोझ बन
मुझे रहने दे अपने मन
यूँ ही बैठी हूँ मै

यूँ ही बैठी हूँ मै
यूँ लगी अपने ही से
रबा क्या होगा क्या जाने
खोयी आज कीस चिंता में मै
यूँ ही बैठी हूँ मै


किरण आर्य 
छोटी सी गुड़िया
मोटी सी किताब
अँखियाँ गडाए
बुने है ख्वाब
सारा जग जीतने
का हौसला है लिए
पाएगी कल ये
सफलता का खिताब
किसी से भी
कम नहीं ये
हो लाड साहब
या फिर कोई नवाब
है प्रतिपल आस रत
इसके मन का चिराग
सफलता भी सर
झुकाएगी समक्ष
इसके एक दिन जनाब


अलका गुप्ता 
मुझे भी कुछ पढ़ना है |
पढ़ कर कुछ करना है |
जीवन पथ पर चलना है |
लड़ाई हक़ की लड़ना है |
बेटी भी है जरूरत समाज की |
हक़ है उसका भी समाज पर |
मैं क्यूँ ना पढूं ...
मैं यूँ ही बेमौत....
गर्भ में चुपचाप क्यूँ मरुँ |
मुझे भी जीना है |
ख्वाबों को बोना है |
कर्मों के खेतों में...|
फसलों में बीनुंगी ...
अपनी पहचान ...
सम्मान की आंच में ...
सुखाऊँगी नारी का...
जागरूक आत्म सम्मान |
मुझे भी पढना है |
बहुत कुछ करना है |

कुसुम शर्मा 
मम्मी कहती हैं मुझसे मै भी एक दिन राज करुगी
पढ़ लिख कर एक दिन देश का ऊँचा नाम करुगी
कभी सोचती हूँ मै नेता बन जाऊंगी,
देश की हालत में कुछ तो सुधार लाऊंगी
जहाँ पर होते है भेद भाव, उन्हें प्रेम से दूर करुगी
मेरे जितनी कितनी बेटियां शिक्षा से वंचित रहती है
मै उनके लिए शिक्षा का विस्तार करुगी
उनके मम्मी पापा को समझाकर उनको भी तैयार करुगी
रानी लक्ष्मीबाई के पद चिन्ह पर चलकर दुश्मन का विनाश करुगी
अपने देश का ऊँचा नाम करुगी !!

Garima Kanskar 
माँ मुझे स्कूल जाने दो
माँ मुझे भी पढ़ने दो
मुझे भी सपने गढ़ने दो
जग में आगे बढ़ने दो

मेरे भी कुछ सपने है
उन सपनों को साकार दो
शिक्षा में है शक्ति बहुत
इस शक्ति को ताकत बनने दो

है होसला मुझमे
आसमान को छूने का
इस होसले को पंख देदो
अपने सपनों के
आसमान में उड़ने दो

मुझे दूसरो के लिये
मिशाल बनने दो
माँ मुझे स्कूल जाने दो
माँ मुझे पढने दो


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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