Sunday, July 14, 2013

11 जुलाई 2013 का चित्र और भाव


भगवान सिंह जयाड़ा 
आस्था में कहां भूल हुई, हमसे हे भगवान।
इस तरह जो यहाँ आज तवाह हुवा इन्शान॥
आस्था पर आज कैसे टूटी है यह आपदा।
किस भूल का नतीजा ,दे गयी यह आपदा॥
दर पर तेरे आये थे,लेने खुशियों की चाहत।
क्या पता था ,भावनाए होंगी आज आहत॥
कोप कुदरत का टूटा यहां यूँ पहाड़ बन कर।
आज बिवश है सब ,अपनों को यूँ भूलने पर॥
आस्था में कुछ न कुछ ,अब कमी आ जायेगी।
डर और खौफ से इस तरह यह, डगमगायेगी ॥
वह बिश्वाश फिर से हे प्रभु ,सब में लौटा देना ।
भूल का अहशाश हो,और श्रधा फिर लौटा देना
आस्था में कहां भूल हुई, हमसे हे भगवान।
इस तरह जो यहाँ आज तवाह हुवा इन्शान ॥


जगदीश पांडेय 
देखो तबाही का ये मंजर न समझो इसे अब
अन्यथा
आस्था विपदा का ये मिलन अब सोचनीय
रहे सर्वथा

कुछ तो भूल हुई ही होगी जो विधाता हमसे
रूठ गया
आस्था विपदा के मिलन में अपनों से नाता
टूट गया

मानस पटल पर अंकित है यहाँ देवों के सब
धाम
नाम मात्र से बन जाते हैं जहाँ सब बिगडे
काम

लेकिन -
दुनियाँ रचनें वाले के संग मानव तूनें ढोंग
रचाया है
इसलिये जगत में दीश उसनें अपना प्रलय
रुप दिखाया है

वक्त है अभी सम्हल जाओ न छेडो कानून
कुदरत का
आस्था यूँ रह जायेगी बनोगे कारण उसकी
नफरत का


बालकृष्ण डी ध्यानी 
मै बह गया

आस्था
बह गयी

धारणा
बस रह गयी

श्रद्धा ने
झकझोर दिया

मत मेरा
अब कमजोर हुआ

ईमान अब
डामाडोल हुआ

प्रत्यय ही
ये सब मेरे साथ हुआ

दोषसिद्धि की
खाईयों में मै डूबा

धारणा ने मन
ऊँचाईयों को सुना

मैंने खुद तानाबाना बुना
आस्था विपदा के बीच चुना

अब वो भी धराशायी हुई
प्रतीति से रुसवाई हुई

विश्वास ने
मेरा भरोसा तोड़ा

निष्ठा ने
आस्था का मार्ग छोड़ा

सहारा बस
बहते बहाव का था

विपदा ने
वो भी किनार ना छोड़ा

दुःख ने घेर
इस तरहा मुझ को

संकट ने
उस मार्ग का डेरा ना छुड़ा

आपद्‍ की
हाई हाई मची

यूँ भयंकर
मेरा बुरा हाल हुआ

गांठ ही नही रही
गट्ठा कंहा छुट गया

आस्था और विपदा में
मै बह गया



अलका गुप्ता 
दुहता प्रकृति को ..क्यूँ हैवान है |
रहेगी प्रसन्न .. वह ..तो वरदान है |
आस्था ...बन गई विपदा.. तब |
होने लगे संसाधनों के विकास जब |
देवभूमि ..धाम चारों हुए पास अब |
वान्यप्रस्थ था पड़ाव अंतिम
जीवन का शान्ति स्थल तब |
आसमान छूतीं थीं वह पगडंडियाँ ...
पल-पल बिगड़ता मिजाज मौसम का जब |
चुनौतियों का ..वह सफर ..कठिन था तब |
आस्था का केंद्र था.. मन वहाँ ...तब |
विलीन होना चाहती थी आत्मा वह !
परम् शान्ति में उसकी तब |
चाह नहीं थी मन में लौटने की..
भौतिक इस संसार में...तब |
मुँह की तरह सुरसा सी...
बढ़ गयीं हैं लालसाएँ अब |
बढ़ते जा रहे हैं सुख साधन सब |
आस्थाएँ हो रहीं निरंतर कम ...
लाभ पर्यटन का सुख अत्यधिक अब |
जप-तप की जगह मौज-मस्ती अब |
हो चुका है बोलबाला ...
विलासिता का हर जगह अब |
बढ़ गई भीड़ भी बेपनाह अब |
भूल गया मानव पवित्र स्थल सब |
याद रहता है अधिक मनोरंजन ही अब |
आस्थाएँ धार्मिक ...छूट गईं ...पीछे सब |
तीर्थ-धाम बने हैं ...हिल-स्टेशन ही अब |
अति-प्रदूषण...ले उमड़ा ये जन सैलाब है |
ढाँचे से प्रकृति के बढ़ रही छेड़छाड़ है |
दरवार आस्था के बेरौनक से पड़े हैं अब |
बिक रहा दौलत की बेशुमार ...
लोलूप लालसा के मोल...
आकर्षण पहाड़ों का सौन्दर्य अब |
खींचता भीड़ को अनियंत्रित जब ..
रौद्र हो रौंदती उसी तरह प्रकृति जब |
दोष फिर..नियन्ता का नियन्त्रण नहीं |
प्रकृति का यही तो हिसाब है ... अब |
दण्ड उसी का आपदाओं में बहाल है |
चेत जाए इंसान ...तू भी तो महान है !
सहज पूज ! प्रकृति को वह भगवान् है |
रहेगी प्रसन्न ...वह ...तो वरदान है ||


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
मेरा पहाड़

आस्था मन का विश्वास,
कर्म धर्म का ये अनूठा नाता
आस्था है बनती ढाल
सुरक्षा का जब इससे नाता जुड़ता

विपदा आज हम पर आई
आस्था का जब किया तिरस्कार
शक्ति और विश्वास को लगी चोट
विपदाओ का हुआ फिर संचार

उत्तराखंड की इस त्रासदी में
शायद सीख लेगा मेरा पहाड़
प्रकृति और आस्था से 'प्रतिबिम्ब'
ना करना कभी तुम खिलवाड़


Pushpa Tripathi 
..... मांगे तुमसे कृपा का दान .....

धरती पेड़ पत्थर
नदी शिवालय औ पर्वत शिखर
सब हुए है डावाडोल
कैसी विपदा आन पड़ी
त्रासदी विपदा आन पड़ी
सतयुग की मंदाकिनी
भागीरथी की अटल तपस्या
गंगा में सब विलीन हुई l
मानव जीवन देखा रहा
त्राहि त्राहिमाम् कर रहा
भारत भूमि के आँचल में
उत्तराखंड नगर डूब रहा l
भोले शिवजी, आओ शिवजी
जन भक्ति शक्ति आस्था बह रही
आँखों से झर झर बह निकले है
खारे पानी की जलती आग
कितने ही प्राण दबे पड़े है
भीतर मंदिर के आँगन में
ये रौद्र रूप प्रलय भयंकर
अमर देश के कलजुग में l
बांधना होगा जटाजूट को
सरल प्रकृति के भूमि से
देना होगा आशीष का दान
आशुतोष का महादान
मृत्यु मृतुंजय के जपतप से ही
देना होगा तुम्हे शुभ प्रदान
मानव जीवन के जीवंत स्वभाव में
नंदी भृंगी भूत पिचास
सब मांगे तुमसे कृपा का दान
मांगे तुमसे कृपा का दान l





सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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