Tuesday, July 23, 2013

22 जुलाई 2013 का चित्र और भाव



दीपक अरोड़ा 
जय हो गुरू जी
आशीर्वाद दो कि सच्चाई पर चलें
बुराई का करें डट कर सामना
हर पल हम अच्छाई पर चले
मुश्किलों से न घबराएं
किसी काम से न शरमाएं
आप ही हमारा हाथ थामना
हर पल आपका ध्यान धरें,
शब हो, सहर या फिर शाम ढले
जय हो गुरू जी
आशीर्वाद दो कि सच्चाई पर चलें


Chander Mohan Singla 
राह दिखाए कौन गुरु बिन,
आओ मनाये ये पावन दिन ,
ज्ञान गुरु बिन नहीं है पाता ,
गुरु ही सच्चा पाठ पढ़ाता ||


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .....
कर्म - धर्म का हमें जो है पाठ पढाता
संस्कृति और संस्कार है जो सिखाता
शिक्षित समाज का निर्माण है जो करता
ज्ञान से अपने, इंसान को है जो तराशता
सच्चाई इमानदारी से हमें है जो मिलवाता
सही मानो यही है जो सच्चा गुरु कहलाता
गुरु शिष्य परंपरा बनी रहे, है प्रार्थना जो करता
समस्त गुरुओ को ये शिष्य है जो प्रणाम करता


Pushpa Tripathi 
- अन्धकार सब हरते है .....

जीतकर हार या
हारकर जीत
सब मुक्कदर
का खेल चला
जाना हुआ
सिकंदर को भी
जो जीतकर दुनिया चला l
पल में राख
पल में खाक
सब रिश्तों
में बैर चला
पाया न कुछ
अंत हाथ में
देह मानव छोड़ चला l
गुरु का ज्ञान
ज्ञान महान
सब जन्मों का
साथी है
दशा बदलते
राह दर्शाते
जीव सक्षम हो जाते है l
पेड़ की छाया
छाया ही सुख
कृपा गुरु
सब करते है
मनोबल फल
तत्व का ज्ञान
अन्धकार गुरु ही हरते है l


भगवान सिंह जयाड़ा 
आवो गुरु पर्व पर ,ज्ञान का दीप जलाएं ,
सच्ची श्रधा से ,गुरु जनों को शीश नवाएं ,

दूर करें मिल कर ,अज्ञान का अंधियारा ,
गुरु कृपा से हो ,जग में ज्ञान का उजियारा,

सदगुरु की महिमा जग में है ,अपरम्पार ,
गुरु चरणों का बंदन करते, हम बारम्बार,

गुरु कृपा से ही जग में, ज्ञान की गंगा बहे,
जले ज्ञान का दीपक,कहीं न अन्धकार रहे ,

आवो गुरु पर्व पर ,ज्ञान का दीप जलाएं ,
सच्ची श्रधा से ,गुरु जनों को शीश नवाएं ,


भरत शर्मा 
जीवन में जरूरत है . . . एक गुरु की ... ,,

एक मार्गदर्शक की .. एक परम ज्ञानी की ..
एक पथ प्रदर्शक की .. एक आत्मज्ञानी की ..

एक शुभ दायक की .. एक सत्य राही की ..
एक शुभचिंतक की .. एक सच्चे साथी की ..

जो मोक्ष दायक है .. सच्चा सहायक है ..
अज्ञान के अंधकार में ज्ञान का प्रकाशक है ..


अलका गुप्ता .
गुरु कृपा से
मिटे अज्ञान सारा
जीवन धारा |

ज्ञान ज्योति ..
पथ प्रदर्शक वो
आलोकित हो |

गुरु पर्व है
महिमा मंडित वो
वंदना करें |



जगदीश पांडेय
गुरु की महिमा अब क्या कहूँ शब्द नही मिलि पाए
बरस जाये कृपा जो गुरु की तो सारा जहाँ मिलि जाए

हीरा मोती सोना चाँदी करि लाख जतन तू भर
बिन गुरु कृपा खाक समान है कुछ मनन तू कर

जब रही जवानी किया मौज तू अब रहा बुढापा ढोय
जान सके तो जान ले बिनु गुरु कृपा न कछु घटि होय


बालकृष्ण डी ध्यानी 
मेरे गुरु

प्रथम गुरु चरण
में शीश नवावों
जिह्वा से अब मै
गुरु बखान कराओं

गुरु मेरे मुझे
अक्षर ज्ञान करायें
इस भव सागर से
मेरी नौका पार करा ये

भीमकाय वट वृक्ष
गुरु का अंतर कर्ण
आचार्य मेरे है
उपदेशों का ग्रंथ

वज़नी है उनकी शिक्षा
उनके हाथों मिली मुझे दीक्षा
शत शत नमन गुरु को
आशीष मिले सदा इस भिक्षु को

ज्ञान कटोरा मेरा
रहा हरदम खाली
गुरु की किर्पा से अब
लबालब है सवाली

श्रदा पुष्प सुमन
गुरु चरण में चढाओं
रहे नमन मेरे मन
उस में रहे गुरु चरण

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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