Thursday, January 2, 2014

12 दिसम्बर 2013 का चित्र और भाव



जगदीश पांडेय 
~आधुनिकता और संस्कृति ~

आधुनिकता का आया आज कैसा ये दौर है
युवा पीढी को अब न दिखता कुछ और है

वो शालीनता सभ्यता वो सृंस्कृति हमारा
पश्चिम सभ्यता के चलते न हुवा गुजारा

बचानें हेतु संस्कृति हमें करना अब गौर है
आधुनिकता का आया आज कैसा ये दौर है

कोई फर्क नही सामनें बुजुर्ग कोई खडा है
चंद पल की खुशी के लिये युवा वर्ग अडा है

बढ रही बेशर्मी अब चारो ओर घनघोर है.
आधुनिकता का आया आज कैसा ये दौर है

कहीं परदे के पीछे तो कहीं रिश्तों के नीचे
भूल कर के मर्यादा सब एक दूजे को खींचे

नहीं इनके उपर जमानें का कोई जोर है
आधुनिकता का " दीश " कैसा ये दौर है


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ लौट चले ~

उम्र का ये पड़ाव
देखी खुशिया और झेले है घाव
बीता पल याद आता है
फिर लौट चले दिल यही चाहता है

मिल कर भी अनजान बने
चाह छोड़ राह अपनी हम चले
खुशी देखी अपनों की
खुशी अपनी छोड़ हम लौट चले

हमारे अपनों के पास
मौज मस्ती के लिए वक्त बहुत है
'प्रतिबिंब' रफ़्तार हुई जिन्दगी
बस अपनो के लिए वक्त बहुत कम है


अलका गुप्ता 
~झूठी लाज ~

तन -मन भिगो रही आज
यादों की हरश्रंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।


भगवान सिंह जयाड़ा 
~जिंदगी का आखिरी पड़ाव~

जिंदगी के इस पड़ाव में ,
यह क्या मुकाम आ गया ,
बदल गई आज राहें हमारी ,
आज हम सफ़र बदल गया ,

परछाइयों में दिखती है वह ,
बीते कल की वह रंगरेलियां ,
बस मुंह फेर लेते है यूँ उनसे ,
देख जवानी की परछाइयाँ ,

मंजिल भी बदल गई अब ,
जिस पर हम अकेले चल पड़े ,
नहीं कोई यहाँ अब हम सफ़र ,
बस यूँ ही हम तन्हा रह गए ,

दुनिया का है क्या यही दस्तूर ,
जो हम यूँ ,अजनबी हो गए,
जीने और मरने की वह कसम ,
आज क्यों सब बेकार हो गए ,

जिंदगी के इस पड़ाव में ,
यह क्या मुकाम आ गया ,
बदल गई आज राहें हमारी ,
आज हम सफ़र बदल गया ,


बालकृष्ण डी ध्यानी 
बस परछाई हूँ मै

मन झूमें तन झूमें
इस उम्र के इस मोड़ पर
दिल मेरा अब क्यों भूला
छूटा वो सावन किनार

सुखा पेड़ हूँ
थोड़ी सी बची जो छाया
हरयाली छूटी अभी अभी
मेरी ये बूढ़ी काया है

माना ये जिंदगी है
थोड़ी दुःखी,थोड़ी ख़ुशी है
सुखा पेड़ हूँ गिर जाऊँगा
बस पीछे परछाई पड़ी है


सुनीता शर्मा 
~मिला है क्या~

कभी परिवर्तन यहाँ
अधर्म जारी
सडके खूनी
हर श्वास हर दिन
इंसानियत घुट रही
संस्कार खो रहे
आधुनिक दीमक
चाट रही आज
अपनी संस्कृति को
चलचित्र के दीवाने हैं
भोग विलासिता के
अंध जाल में फंसे
बुजुर्गों का लिहाज भूले
कैसा ये दौर है ....
बुजुर्ग शर्मिन्दा
युवा बेशर्म बन
आचार विचार
सब बेपरदा कर
नाच रहे हैं
बन मस्त मलंग
सडकों को
अपनी धरोहर मान
नित्य नियमों का
हनन करने में
रहते मगन
और बेचारे बुजुर्ग
अपने स्तिथि समझ
सर झुकाए
परिवर्तन से हार कर
बिना कुछ बोले
बिना कुछ टोके
चल देते हैं
अपनी अपनी राह
जमाने के साथ
बदलो या शान्त रहो
इसी मे शायद..
अब समझदारी है !


नैनी ग्रोवर 
~परछाईयां~
बीते दिनों की परछाइयाँ,
उत्सव मनाने लगी है क्यूँ ,
बीती हुई गुलशने जिंदगी पे,
फिर से इतराने लगी हैं क्यूँ ...

आज तो तन्हा, राहों में,
अचानक मिल गए वो,
गुज़रे हुए वो चंद लम्हें,
फूलों से खिल गये क्यूँ ,
हर कली इस चमन की,
फिर से महकाने लगी है क्यूँ ...

बिसरे हुए वो वादे,
याद से आके रह गए,
दो आंसूं ढलक आये,
जब हम मुड़ के चल दिए,
आवाज़ तेरी हमारे पीछे ,
आ आके पुकारने लगी है क्यूँ ...नैनी


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
~कैसे बताऊँ~
मन मेरा झूम रहा , कैसे तुझे बताउं मै
आओ झूमे गाये ,मस्त मनंग हम बन जाये
तेरी बाँहो के हिडोले, मे मै झुलू झूला
साजन आओ बिते दिन याद करे
क्या खोया है क्या हमने पाया है
तुमने अपने हिस्से की सारी खुशियाँ हम पर वारी है
पर आज देखो कितनी सुन्दर अपनी फुल्वारी है
हमारी बगीया के फूलो ने अपनी खुशबू बिखेरी है


कुसुम शर्मा 
~याद ~
कई दिनो के बाद कुछ तस्वीरे फिर यूँ सामने मेरे आई
भूल गये थे जिन यादों को, देख उन्हे फिर आँखे भर आई
छूट गये थे कही वक़्त की दौड़ मे जो लम्हे हमसे पीछे
बातों ही बातों मे फिर उनकी यादे लौट कर चली आई
अब तो ये यादे ताज़ा हो भी गई तो क्या
वो कही पीछे छूट गए और ये ज़िन्दगी हमें नई राह पे ले आई !!



किरण आर्य
~ तेरी मेरी कहानी ~

उम्र के एक पड़ाव पर आकर
क्यों हुए दूर हम
हालातों से अपने क्यों
हुए मजबूर हम
कुछ वक़्त की रही कारस्तानी
कुछ दिल की रही नादानी
किये थे वादे करार तुझसे
ये साथ रहेगा सदा
सात जन्मों का है प्यार तुझसे
फिर क्यूकर हुई राह
अलग अनजानी
साथ रहे गए टूटे से कुछ ख्वाब
और राह की वीरानी
दिल चाहे आज भी दोहराना
वहीँ कहानी
जब तुम थे मेरे दिल के राजा
और मैं थी एहसासों की तेरे रानी
दिल ये चाहे लौट आये पतझड़ में
फूलो की फिर रवानी
वक़्त फिर से एक बार दोहराए
प्रेम की वहीँ कहानी



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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