Saturday, March 15, 2014

होली पर विशेष - मित्रो के भाव



दीपक अरोड़ा 
~रंग प्यार का~

आ तुझे रंग दूं
प्यार से
चुपके चुपके
लाड दुलार से
नजर न लग जाये
कहीं किसी की
छुपा लूं हर
बुरी ब्यार से


Pushpa Tripathi
~ होली में~

रंग गई गोरी
छिप गई गोरी
रंग गुलाल, होली में l

कान्हा पकड़े
फागुन मन होकर
सकुचाई राधा, होली में l

जोर नहीं
सखियाँ शरमाई
कर तैयारी, होली में l

श्यामल तन मन
सतरंगी बन सोहे
भीगा अबीर, होली में l


बालकृष्ण डी ध्यानी 
~होली है~

रंगों में ही रंग खिले हैं
होली में हम संग मिले हैं

लाल,पीला,नीला वो गुलाल
गालों पर ना हो उसका आज मलाल

राधा यंही कन्हा यंही है
गोकुल के गोपी ग्वाला यंही है

पिचकारी कि ना मारो बौछार
यूँ ना व्यर्थ बहा गंगा कि धार

सूखे रंगों में भी रखो ख़याल
कैमिकल रंगों का ना हो इस्तमाल

आओ मिलकर नाचो गाओ
खूब सब संग प्रेम रंग उड़ाओ

गाली भी गर निकले मुख से
बुरा ना मानो ये तो होली है

रंगों में ही रंग खिले हैं
होली में हम संग मिले हैं


ममता जोशी
~ रंगों का त्योहार ~

देखो रंगों का अम्बार ,
फागुन आ ही गया त्योहार ,
हरियाली , नव पल्लवित पत्ते,
धरती करे श्रृंगार,
झूमें ,नाचें, गाएँ सब जन ,
ख़ुशी में डूबे आँगन द्वार ,
मिलें गले हमजोली बन कर,
की ये है फाग का खुमार


सुनीता पुष्पराज पान्डेय
~मोरे कान्हा तुम आ जाना~

है मुस्कान अजब सी छायी रे
देखो आज होली आयी री आयी री आयी रे
रँग गुलाल उड़त है छटा आज खूब छायी रे छायी रे
भँग के रँग मे झूम रहे सब नर नारी आज सुध बुध बिसरायी रे/
गुझिया तोरे मन भावे कैसे तोहे खिलाऊ रे
मोरे कान्हा होली आयी रे आयी रे आयी रे



कुसुम शर्मा 
~होली रंगों की ~

सात रंगो से जुडी है होली
आओ खेले साथ हमजोली
पिचकारी कि धार है छोड़ी
भीगे चुनर भीगे चोली
आओ खेले साथ हमजोली

चारो ओर बहार है अपनों का प्यार है
फागुन का त्यौहार है मिठाई कि मिठास है
भेद भाव को भूल कर नाचे गए सब मिलजुलकर
होली है जी होली है ये रंगो की टोली है !!


Tanu Joshi 
~फागुन की मस्ती ~
फागुन आया, मस्ती लाया
मौसम हुआ गुलाल रे,
मनवा हमरा डोल रहा है,
रंग दो सबको गुलााल से,
मोहन की बाँसुरिया बाजे,
राधा हुई निहाल रे,
बाँध के घुँघरू राधा नाचे,
खूब रचाये रास रे,
मनवा डोले, जियरा हुआ गुलाल रे,
होली की मस्ती में झूमे,
ग्वालो के संग में गाँव रे..


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~रंग कौन सा~

फागुन में रंग फिर उभर आए है
तेरा मेरा, हर रंग मिलने आए है

लेकर तौहफा सखा घर आए है
चेहरे, प्रेम रंग से निखर आए है

कुछ रंगों से हकीकत छुपा आए है
कुछ मन - भेद के रंग धो आए है

'प्रतिबिंब' देख रहा क्या तुम लाए हो
हर रंग से मिलने हम नहा कर आए है


अलका गुप्ता 
~होली है !~

होली है !
मादकता उल्लास भी ।
रंग हैं सारे...
हास-परिहास भी ।
मिल जुल सब
ख़ुशी में, बह जाते ।
भिन्न भिन्न हैं रंग लगाते।
लाल रंग उल्लास का ...
हरा और पीला
हास परिहास का ।
नीला और गुलाबी
प्रेम सौहार्द का ।
होती है मादकता उल्लास भी ।
शोर भी ,धमाल भी ...
रंग सारे खिलते हैं ।
भेद भाव भूल के ।
होली है !
मादकता उल्लास भी ।।


भगवान सिंह जयाड़ा 
~होली मुबारक~
------------------
आया फिर रंगों का त्यौहार ,
रंग ,गुलाल लेकर सब तैयार ,
आवो मिल कर खेलें सब होली ,
दोस्तों की बनाकर हम टोली ,
रंग गुलाल में सब रंग जाएँ ,
गिले सिकवे हम सब बिसराएँ ,
आवो सब प्रीत का रंग लगाएं ,
भाई चारे की मिल अलख जगाएं ,
प्रीत का सब ऐसा रंग लगाएं ,
प्यार मोहब्बत मैं सब बंध जाएँ ,
आओ प्रीत से तन मन रंग लो ,
कभी न उतरे ऐसा रंग रंग लो ,
जाति धर्म को सब बिसरावो ,
आवो होली के रंग में रंग जावो,
आया फिर रंगों का त्यौहार ,
रंग ,गुलाल लेकर सब तैयार ,
आवो मिल कर खेलें सब होली ,
दोस्तों की बनाकर हम टोली.

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

12 मार्च 2014 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
~तेरे नन्हे नन्हे हाथ~

ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ
आ ...आज मेरी उँगलियों को थाम
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ

करना है बहुत कुछ काम बेटा
पकड़ ऊँगली चल दिखा दूँ तुझे वो राह
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ

मन का अहसास जगा दूँ तेरे
आज तुझे हाथों कि भाषा मैं पड़ा दूँ
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ

ना भटके कभी तेरे ये छूटे छूटे हाथ
तेरे लिये आजा ऐसी मंजिल मैं बना दूँ
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ

स्पर्श ममता का जागे तेरे मन
ऐसा अहसास इन हाथों संग मैं तुझ में जगा दूँ
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ

देख तेरे नन्हे नन्हे हाथ संग
इस दुनिया तुझे करना है बड़े बड़े कम
ले जा ले जा मेरा तू आशीर्वाद बेटा
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ


सुनीता पुष्पराज पान्डेय
~अंधी ममता ~

आँसू है क्या लिख दूँ पढ़ के समझोगे जग वालो
इस अँधी ममता का मौखोल तो तुम न उड़ाओगे
जब -जब पढ़ती हूँ इस देश की खातिर रण बाकुँरो का प्राण गवाना
बिलख -विलख मै जाती है
इस देश की खातिर मेरे लाल तेरी चाहत को सम्मान दिया
पर मेरी जीवन भर की थाती तू कही


सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी 
~मेरे बच्चे !!!~

अंगुलियाँ थाम के चलना होगा,
दर कदम दर तुझे बढ़ना होगा,
मेरे बच्चे, ये राह जीवन की,
हर कदम सोच के रखना होगा | अंगुलियाँ थाम के ...

अपने पैरों तले तू रखना जमीं,
दिलो-जज़्बात में न रखना कमी,
आसमानी हो जैसे अब्दे-खुदा, (ईश्वर का दास)
हर करम वैसा ही करना होगा | अंगुलियाँ थाम के ...

हर कोई तुझसा है इंसान यहाँ,
एक रंग, एक से अहज़ान यहाँ,
होना लाज़िम नहीं जो जश्न कहीं,
गर कोई दर्द पुकारे, वहीँ जाना होगा | अंगुलियाँ थाम के .

हो अकीदत यही उसूल तेरा,
लोग तुझसे कहे कि तू है मेरा,
याद रखना न दगा करना कभी,
सामना रब का तुझे करना होगा |
अंगुलियाँ थाम के चलना होगा,
दर कदम दर तुझे बढ़ना होगा |.

{अकीदत–किसी धर्म की वह श्रेष्ट बात जिसे मान लेने पर वह उस धर्म को अपना लेता है, धार्मिक विश्वास.
अहज़ान – दुःख
लाज़िम – जरूरी}


नैनी ग्रोवर 
~ तेरी उंगलियां ~

हाँ मैं जानती हूँ, तेरी उँगलियों की भाषा,
मासूम आँखों में, सारा जग देखने की अभिलाषा

मगर डरती हूँ,
इस सरपट भागती जिंदगी में,
तेरा बचपन खो ना जाए,
तेरे प्यार भरे इस छोटे से मन में,
कोई नफ़रत बो ना जाए,
और फिर तेरी सुन्दर सी मुस्कान है देती दिलासा

इक सपना है देखा जागी आँखों से,
तुझको है पूरा करना,
देख बुराई, बुरा ना होना,
ना बुराई की राह पे चलना,
नेक इरादे रखना, यही तुझसे है मुझे आशा


Tanu Joshi 
~एक जननी, एक पुत्री~

जन्म तुझे दे के जननी, दुख: जन्मने का बिसरा दे, उसका तो तू ही संसार,

तेरे नन्हें हाथों के स्पर्श से मन के घावों को सहला ले,
क्या हुआ जो पुत्री जन्में, संसार को तू रचने वाली,
माँ तुझे जाने, बहन, बेटी, पत्नी भी,

ओ बेटों की दुनिया वालो मुझे जानो, मुझे पहचानो
बेटे की चाह में मुझे ना मारो,

जननी ही तेरी जब चाह की बलि चढ़ जाये
तेरी चाहत सिर्फ चाहत ना रह जाए.


किरण आर्य 
~कर्म~

थाम उँगलियाँ कर्मो की हर इंसा है चलता यहाँ
सत्कर्म और कुकर्म से बंध जीवन है पलता यहाँ
राह और नियति दोनों बेख़बर वक़्त के पैमानों से
बीज जो बोया मन धरती पर वहीँ है फलता यहाँ

समझा ना इस मर्म को मन वो हाथ है मलता यहाँ
जीवन राह लगे दुर्गम उसे जीना भी है खलता यहाँ
कुकर्मो की राह चले जो मन कम कहाँ वो शैतानो से
जीने की रवायत से मुर्दादिल सा मन है टलता यहाँ


कुसुम शर्मा 
~ऐसा क्यों होता है~
जिसने मुझे कभी धुप लगने न दी
अपने आँचल में छुपा कर किसी कि नज़र लगने न दी
हर बार रोने पर तू ही मुझे हंसाती थी
नींद न आने पर लोरियां देकर सुलाती थी
रो पड़ता है याद करके वो दिन
जब हाथो से आपने खाना खिलाती थी

तेरी आँगुली पकड़कर मैंने चलना सीखा
जब जब लड़खड़ाए मेरे कदम
तब तब तेरी बाहो का सहारा मिला

पर ऐसा क्यों हुआ
कि जिसने इतना प्यार दिया
एक ही पल में पराया किया
किसी ओरके हाथ में मेरा हाथ दे कर
मुझे अपने से दूर क्यों किया

पहले समझ न आया मुझे
जब बेटी कि माँ बनी तो पता चला
माँ के लिए बेटी कितनी प्यारी होती है
वो तो माँ के आँख का तारा होती है
अपने दिल के टुकड़े को कोई अपने से दूर करता है
वो तो हमेशा उसके पास होता है

अपनी बेटी में मैं अपने सपने सझौती हूँ
उसके साथ हर पल रहती हूँ
फिर मन ये सोच कर घबराता है
कि इसको भी एक दिन दूसरे के घर जाना होगा
ऐसा क्यों होता है कि अपने ही दिल का टुकड़ा
अपने से दूर होता है
ऐसा क्यों होता है !!

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16 फरवरी 2014 का चित्र और भाव




बालकृष्ण डी ध्यानी 
~प्रश्न ?~

प्रश्न खड़ा है ?
अपने उत्तर इंतजार में
हर मन के साथ खड़ा है वो
अब बीच बजार में

हर एक एक पल में
जन्मा एक नया प्रश्न ?
खड़े हैं हाथ यंहा क्या
करने वो उसे हल

प्रश्न ही प्रश्न
से अब प्रश्न पूछता है
उत्तर बस अब उस
प्रश्न का मुंह ताकता

बस फंसे है सब के सब
कैसा है ये उसका सबब
बंधे जाते हैं अपने आप में
मन जिसका हो बेसब्र

प्रश्न खड़ा है ?
अपने उत्तर इंतजार में
हर मन के साथ खड़ा है वो
अब बीच बजार में


अलका गुप्ता 
 मंजिलें -

बड़े धोखे हैं यहाँ..अपना..बता कौन है |
बहता दरिया प्यार का..डूबता कौन है ||

ढूढ़ती रही निगाहों में..तस्वीर सच्ची ..
धागा विशवास का यहाँ जोड़ता कौन है ||

प्रश्न चिन्ह से खड़े हैं देखो चारों ओर ही |
रहे मन में यकीन भी उत्तर देता कौन है ||

खड़े हैं मरुस्थलों में.. हम लाचार से आज |
दिखते हाथ बहुत से मगर थामता कौन है ||

इस कदर भीड़ है .... दौड़ती ..इधर-उधर ..
देखते रहे हम यूँ ही ..मंजिलें पाता कौन है ||


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
~प्रश्न ऐसे भी ~

प्रश्न थे बहुत पर उत्तर न मिले
ऐसा क्या था भइया मे जो मुझ मे नही
क्या मेरी इच्छा जानी मेरे अपनो ने मेरे जीवन के फैसले खुद कर डाले
जब भी खिलखिलाना चाहा जी भर लोगो को रास न आया
अनदेखी सी लक्ष्मण रेखा चारो ओर है दिखती
क्यो नही रास आता मेरे पंख पसार गगन मे उड़ पाना
गर मिले मेरे प्रश्नो के उत्तर दो जबाब देने तुम जरु आना


किरण आर्य 
~प्रश्नों के घनेरे~

प्रश्नों के घेरे
उहोपोह के अँधेरे
सब तरह है चीत्कार
मचा है हाहाकार
दीखते है हाथ कई
कौन गलत कौन सही
प्रश्नों के लगे है अंबार
दुःख का ना कोई पारावार
राह सूझने के नहीं असार
भटक रहे सब नर और नार
अंधी दौड़ में शामिल सब हाथ
भीड़ में भी अकेले कोई ना साथ
समझ नियति सब करे समर्पण
प्रयासों से दूर आस रहित मन


सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी 
~बहुत मुश्किल है ~

बहुत मुश्किल है
धरातल पर खड़ा होना,
और जीवित सा लगना,
जब बेबसी और बंजरपन,
जकड़े हुए हों आपके पैरों को...

बहुत मुश्किल है
उन प्रश्नों के साथ खड़े रह पाना,
जिनकी न कोई दिशा हो, न ही कोई दशा,
हर किसी एक के आगे एक लिपटा हुआ है,
किसी पाश की तरह
और जाना कहाँ है कोई उत्तर भी नहीं..

बहुत मुश्किल है
इस सेहरा से पार जाना,
पर मुमकिन है भटक जाना,
और प्रश्नों के एक समूह को हमेशा
फिर अपने सामने खड़ा पाना....
बहुत मुमकिन है...
बहुत मुमकिन है...



Tanu Joshi 
~मैं एक उत्तर~

चित्र देख के उभरे मेरे मन मस्तिष्क में उभरे प्रश्न
संभाले होश तो सुना खुबसूरत है सब
अन्तर्मन विचार- मैं या दुनिया
उत्तर- दोनो
अगर दोनो तो ये विचार क्यों...
क्या, क्यों, कैसे, कहाँ को समझते- सीखते
दुनिया की रीत जानी, रोज नये प्रश्न डराते, आँखे दिखाते, कठोर राह बनाते
सिहर के घबरती मेरी आँखे, सहारे को उठे मेरे दो निरीह हाथ,
किसी ने समझा, किसी ने छीना, बिखरा हुआ समेट के फिर पकड़ी रफ्तार...
खुद सक्षम उत्तर देने में भी, प्रश्न करने में भी
मेरा अस्तित्व ही एक उत्तर- मैं एक उत्तर


जगदीश पांडेय 
~नया झमेला ~

अजब दिखाया खेल गजब दिखाया मेला
कदम दर कदम हमें नजर आया झमेला

कहीं किस्मत का जादू कहीं वक्त बेकाबू
खोजा एक जवाब मिला सवालों का रेला
कदम दर कदम हमें नजर आया झमेला

देख तंगी में हालत पोंछे जिनके आँसू
वही हाँथ उठा, कर रहे मुझसे ठेलम ठेला
कदम दर कदम हमें नजर आया झमेला

"दीश" न हो परेशान सवालों के घेरों में
तेरे कर्म से महक उठेगी शाम की हर बेला
कदम दर कदम हमें नजर आया झमेला


सुनीता शर्मा 
~चुनाव ~

चुनावी प्रतिस्पर्धा की दौड़ में ,
हर आँगन से एक उम्मीदवार है ,
जीवन की सच्ची राह चुनने में ,
आज अनिश्चिताओं का दौर है !

पार्टियों की नित नयी चतुराई में ,
हमेशा जनता ने मात खाई है ,
देश का सच्चा नायक चुनने में ,
आज फिर असमंजस का दौर है !

जाति साम्प्रदाय की बेड़ियों में ,
आज भी जन जीवन जकड़ा है ,
अपना अपना स्वार्थ भुनाने में ,
आज भी षड्यंत्रों का दौर है !

फिर चुनावी हलचलों के शोर में ,
आम आदमी बना आज खास है ,
बढ़ते प्रलोभनो की मृगतृष्णा में ,
चारों तरफ प्रश्नो का दौर है !


Pushpa Tripathi 
~क्या प्रश्न तुम करोगे~

उपजते सवाल
ख्यालों में घर किये
हर कहीं दिखती टीस
क्या अपनों ने जश्न किये ?

'पुष्प ' आदत है उनकी
प्रश्न के बीज बोते है
तनकर प्र्शन खड़े रह जाते है
दूसरों के आगे
खुद की बीन बजाते है
बाज नही आते है
यही सवाल .....
जो जवाब
नहीं दे पाते है
ऐसे है लोग दुनिया के
चुपचाप प्रश्न रह जाते है …!!!!


नैनी ग्रोवर
~जिंदगी का सवाल ~

जिधर देखूँ बस सवाल ही सवाल ,
इन सवालों ने, मचाया कितना बवाल ..

कभी दिन में जूझती, दो रोटी की जिंदगी,
कभी रातों में उठते कल के ख्याल ...

नींद में मुस्कुराते, खिलखिलाते हुए बच्चे,
जागे तो गली में, कीचड़ से हैं बेहाल ....

कल से अम्मा की दवाई हो गई ख़त्म है,
खाँस खाँस के बेचारी का, है बुरा हाल ...

लगी भूख कभी तो, पानी पी लिया,
वाह वाह री जिंदगी तेरा ये कमाल ....///


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