Friday, December 5, 2014

13 अप्रैल 2014 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
मै

देखा जो
तस्वीर को गौर से
उभरा ये शब्द
इस मन के वजूद से

ना हारूँगा
ना जीतूंगा मै
कंक्रीट के जंगल में भी
ना दम तोड़ूंगा मै

हरयाली हूँ मै
हरा रंग अपना कैसे छोड़ूंगा
मृत शरीर में भी
मै अपने प्राण फूकूंगा

जीवन मेरा तेरे
साथ चलते यूँ चला
पथ तूने जो बनया है
उस पथ बड़ते रहा मै

देखा जो
तस्वीर को गौर से
उभरा ये शब्द
इस मन के वजूद से


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~सन्देश~
यूँ न छोड़ना मुझे
कि जिन्दा न रह सकूँ
अगर दे सको दे देना
अपना विश्वास और प्यार
समय को रहे ध्यान
मत करना तुम इंतजार
जी लूँगा कुछ और दिन
दे आऊंगा फिर से तुम्हे बहार


जगदीश पांडेय 
************ हसरते ***********

तमाम उमंगे तमाम हसरते लेकर जी रहा
हूँ मैं
जीनें की खातिर अपनें ही गमों को पी रहा
हू मैं

भले ही नही मैं हरा भरा और ना ही कुछ
है पास मेरे
कमजोर हुवे जडों को आसुवों से सींच रहा
हूँ मैं

साथ नही किसी का आज संग जिसके मैं
चल सकूँ
उम्मीद बहुत कम है कि बंजर में भी पल
मैं सकूँ

करतार मेरे मालिक क्यूँ भूल गया लिखना
मेरी तकदीर
कुछ तो ऐसा कर दीश अपनें कर्मों से मचल
मैं सकूँ


अलका गुप्ता 

~~वीरानियों में अकेला खड़ा मैं !~~

वीरानियों में अकेला खड़ा मैं !
हरियाली सा झाँकता हूँ |
तरसता हूँ मिट्टी की गंध को मैं !
तरसता हरित से संस्कार को मैं |
कोयल भी ...कूकती नहीं अब ...
गीत पंछी सुनना चाहता मैं !
सीमेंटी इन जंगलों बीच
सम्वेदनाएँ बांचता मैं !.
घटाओं में सावन की.. या ...
पुरवाइयों में झूमना चाहता मैं !
बदगुमानी में सींचता मुझे...
यह इंसान क्यूँ है ...
हे ! ईश ......बूंदों को..
स्नेह की ...तरसता मैं !
आज इन विकट हालातों में भी
एक मुस्कान बाँटता ..इन्हें...
तब भी ..हाँ ..खुश हूँ मैं !
भटक गया क्यूँ ...
इंसान ये पाषाण सा |
इनमे जड़ सम्वेदनाएँ बांचता मैं
गमला कहते हैं .. जिसे ये ...
जीवन इक ..तंगहाली मानता मैं !
वीरानियों में अकेला खड़ा मैं !
हरियाली सा झाँकता हूँ |


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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