Friday, March 20, 2015

१५ मार्च २०१५ का चित्र और भाव




Pushpa Tripathi 
~देश जवान उठ खड़े ~…

गूंज उठी है अब दीवारें
आसमान ने रंग बदला है
चोट ह्रदय का टिस रहा
क्या कोई आंतक आया है ?

दुराचार का वेश बदलकर
उड़ता पंक्षी आया है
रोष द्वन्द का राग लेकर
फिर आतंकी आया है l

देश प्रेम का जजबा लेकर
देश जवान उठ खड़े
दुश्मन को धूल चटा देंगे
हौसले बुलंदी लाया है !




बालकृष्ण डी ध्यानी 

और कितना ?

और कितना मरोगे हमे
पकड़ कर हमें और कितना खाओगे हमें
और कितना मरोगे हमे

एक कर जब हम काम हो जायेंगे
इस धरती से जब हम लुप्त हो जायेंगे
फिर अपनी भूख कैसे मिटाओगे
नर हो तुम तब नरभक्षी बन जाओगे

जल रहा है अब ये आसमान मेरा
छोड़ दो मुझे रहने दो अब यंहा नाम मेरा
पृथ्वी का संतुलन ना तुम खोने दो
शाकाहरी बनों मुझे भी पनप ने दो

और कितना मरोगे हमे
पकड़ कर हमें और कितना खाओगे हमें
और कितना मरोगे हमे





कुसुम शर्मा 
"!! अब ओर न होने देंगे हम !!"
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बहुत हो चूका अब ओर न होने देंगे हम,
अपने देश की सीमा पर अब ओर न घुसने देंगे हम !

बंद करो ये तुम आपस में खेलना अब खून की होली,
उस माँ को याद करो जिसने खून से चुन्नर भिगोली !

किसकी राहे देख रहे हो , क्या ऐसे हैरान खड़े हो,
वक्त है अब कुछ कर गुजरने का ,
बन जाओ तुम एक सिपाही,
सरहद पर न सही,
सीखो आसपास के अंधियारों से लड़ पाना !!

हर तूफ़ान को मोड़ देंगे, हर उस आँख को फोड़ देंगे,
जो उठेगी वतन की ओर,
चाहे सीना छलनी हो जाए, पर तिरंगे को न झुकने देंगे हम !

इतना करना काफी नहीं भारत हमारा मान है,
अपना फ़र्ज़ निभाएं ताकि देश कहे हम उसकी शान है !!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~किंचित भयभीत नही~

जिन्दगी इतनी भी आसान नही
जिंदगी की जंग में
वक्त और हालात
बद से बदतर क्यों न हो
लेकिन मैं
किंचित भयभीत नही

वक्त रुपी दानव
जिस रूप में भी आए
हौसले, विशवास और कर्म के शस्त्र लिए
मैं जूझ पड़ता हूँ
अस्तित्व की लड़ाई लड़ता हूँ
अंजाम से मैं
किंचित भयभीत नही


नैनी ग्रोवर 
--साया--

ये कैसा साया है, अंधेरों में ?
कौन मासूमों को बरगलाता है ?
खिलौनों से खेलने वाले हाथों में,
ये कौन बंदूकें पकड़ाता है ?

ये कैसी नफरत है इंसान की,
जो इंसानों को ही खाये जा रही है,
कैसे मिलेंगे कल फूलों के चमन ?
जब ये सिर्फ कांटे ही बोये जा रही है,
क्या होगा इसका अंजाम, वक़्त ही बताता है..

क्यों भटक रहे और भटका रहे हो,
आने वाली पीड़ी को, क्यों मिटा रहे हो ?
पछताओगे, जब खाली हाथ रह जाओगे,
खुद ही अपनी पहचान तुम लूटा रहे हो,
अपना ही चिराग भला क्या कोई बुझाता है ?

ये कैसा साया है अंधेरो में, कौन मासूमों को बरगलाता है ?



डॉली अग्रवाल 
~सहमी सी परछाई~

मुद्दतों से
जिस्म के झूले में दिल
मुर्दा बच्चे की तरह
खामोश , डरा , सहमा सा
और ज़िन्दगी
इक बावली माँ की तरह
झूला झुलाये जाती है
पंखा हिलाये जाती है
दिलासा दिए जाती है !!!



Negi Nandu 
~आँधी~

उड़ चला हूँ अब आसंमा में
अपने बुलंद हौसले लिए

उठी है जो ये आँधियाँ
दुनिया में हूँ में पंख पसारे हुये
शोषण न होगा अब किसी का
नजरे हूँ में गढ़ाये हुये
अब मुझे कोई क्या मिटाएगा
साये को भी न कोई छू पायेगा
बुरी नझर, तू खुद जल जायेगा
साये में आ मेरे, खुद को महफूज पायेगा


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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