Thursday, May 21, 2015

१३ मई २०१५ का चित्र और भाव



रोहिणी शैलेन्द्र नेगी
"जड़"
बढ़ने दो मुझे, इन माटी के कणों में,
मुट्टठी बनकर मज़बूती से जकड़ने दो,
जितना सींच सको, सींच लो मुझको,
धरा की गहराइयों को पकड़ने दो,
ये जीवन जो जी रहे हो, देन है तुम्हें,
मेरी जड़ों से अपनी जड़ें करो विकसित,
ये शाख़, ये पत्ते, ये टहनी, ये तने,
सब तुम्हारे लिए, है तुम्हें समर्पित ।।

कुसुम शर्मा
"जड़े पाप की"
************
जड़े पाप की फैल रही है फलित हो रहा पाप है !
त्राहि त्राहि अब जग है पुकारे, कुपित बना संसार है !
धरती माता ढ़ोल रही है पाप पुण्य से तोल रही है !
हर कोई अब रह निहारे ,अब तो आओ सर्जन हारे !
क्यों तुमने यह रह भुला दी , क्यों विपत्तियों की वर्षा कर दी !!

अब तो हर जगह हो रहे अत्याचार है ,कही वर्षा की मार है !
कही पे धरती का प्रहार है कही पर बामो की बौछार है !
हर तरफ मचा हाहाकार है , इससे कौन बचाएगा
अगर तू नहीं आएगा !
हर कोई अब रह निहारे ,अब तो आओ सर्जन हारे !!

हम तो मंद मूढ़ अज्ञानी , तुम्ही तो हो परमेश्वर ज्ञानी !
मिट्टी की यह देह है बनाई , फिर अग्नि से ज्योत जगाई !
इस ज्योत के जागते देखो भाई, मानव में आ गई चतुराई !
कलयुग की छाया भी आई, फिर दोनों ने आग लगाई !
चोरी लूटपाट करके फिर पाप की संख्या बड़ाई !
पाप पुण्य पर हो गया भरी , अब तो दया करो बनवारी !
हर कोई अब रह निहारे ,अब तो आओ सर्जन हारे !!


नैनी ग्रोवर
__ अपनी जड़ें__

अपनी जड़ों को साथ ले उड़ जाऊँ,
या यहीँ मैं पतझड़ सी, उजड़ जाऊँ..

खून की नदियाँ बहा दी हैं, इस इन्सां ने,
क्यूँ ना अब मैं, रूठी माँ सी बिगड़ जाऊँ..

मेरे अपनों ने ही, छलनी किया है सीना,
क्या मैं भी, किसी दूजी धरती पे मुड़ जाऊँ..

मैं कुदरत हूँ दीवानों, कुछ तो इज़्ज़त करो मेरी,
मत करो मजबूर इतना, के बारहा भड़क जाऊँ ..!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~ जड़ ~

जड़ जड़ में बसा आधार
फलता फूलता बनता सुखी परिवार
जैसा भी दिखे हम बाहर
आधार हमारा संस्कृति और संस्कार

पृथ्वी का बरसता अनंत प्यार
संरक्षण प्रकृति का करे हम रोज विचार
भारतीय सभ्यता का हो प्रसार
विकास संग पर्यायवरण सुरक्षा का हो प्रचार


Pushpa Tripathi
~मैं घना विशाल~

वृक्ष मैं हूँ घना
समृद्ध हरिताभ का बना
संतुलन बनाता
धरती पर जीवन
पशू पक्षी मानव
हर तरह जीवन में
मैं संरक्षण प्रदान करता
पर अब कई वर्षों से
मेरा संतुलन टूट रहा
मानव स्वार्थ हित से
मुझे काट रहा है
जड़ से मुझे उखाड़ रहा
आया हूँ तुमसे हाल बताने
आकश तुम साथी, दशा छिन्न जताने
बताओ ! बताओ !
क्या होगा आगे
पत्थर सिमेंट ईंट की धरती पर
बनते विशाल गगनचुम्बी इमारते
मरते हम वृक्ष … बरसते गरजते तुम
सुन ओ आकाश मेरे साथी
प्रकृति पर दुष्परिणाम
प्रकृति का बुरा हाल
मैं घना विशाल ...मुझे संभाल !



भगवान सिंह जयाड़ा
-------जड़ और अतीत----

जड़ हमारी अतीत हैं ,
इसे न कभी कमजोर होने दो ,
पहिचान है इन से हमारी ,
कभी न इन को हिलनें दो ,

फल फूल है हम इस पेड़ के ,
जड़ हमारी शस्कृति हैं ,
पनपती रहे डाल इसकी ,
इस को न कभी मुर्झानें दो ,

हरी डालें हमको पैगाम देती है ,
सींचो सदा जड़ को पानी से ,
शस्कृति स्वच्छ रहेगी तब ,
वह फल फूलों से भर देती है ,

स्वच्छ पर्याबरण और शस्कृति ,
सदा एक दूसरे के ही रूप है ,
इनके रहने न रहनें पर ही ,
जीवन में छाँव और धूप है ,


प्रभा मित्तल
~ वृक्ष ~
~~~~~~~

मैं वृक्ष, जिसने पाला पोसा
बड़ा किया मानव को
अपने रक्त बीज फलों से
सींच - सींच खुशहाल बनाया
धूप हवा पानी पर रह कर
खड़ा रहा दिन रात
जाड़ा गरमी वर्षा सहकर
अपनी छाँव तले बिठलाया
जो दे सका दिया इस जग को
तब भी क्या पाया मैंने--
उसने ही मेरा दोहन कर डाला ।

परहित जीना परहित मरना
यह सीख मिली थी मुझको ।
फिर भी जाने क्यों सजा मिली-
पहले मेरी शाखें काटी
फिर तन पर वार किया
धरती से अम्बर तक का दिल रोया
पर जिद्दी मन तो मानव का था
जड़ें उखाड़ भूमि से भी पृथक किया
जब त्याग दिया जीवन भी
तब भी मनुज ने काम लिया।

मेरी जननी मेरी धरती
विलग हुआ कहाँ जाऊँगा
संसार चक्र है चलता रहेगा
कोई बीज मेरा फूटा फिर से
तो नव जीवन पा जाऊँगा।
सुन, रे मानव मन ! तू चेत जरा,
अब तो समझ से काम ले,
गर नहीं रहा मैं , तब
प्रदूषण बढ़ता ही जाएगा, इस
विकास की आँधी के अंधे युग में
तू कैसे फिर जीवन पाएगा।



बालकृष्ण डी ध्यानी
जब आज ना रहेगा

सब कुछ इस में समाया है
इस की ही तू वो माया है
खेल रचा एक बीज ने
अंकुरित हुआ तब ये फल आया है

जड़ और तना का ये साया है
पत्तों से आयी तब घनी छाया है
फूलों ने ली उसमे अंगड़ाई है
मीठे फलों की बहार तब देखो आयी है

पृथ्वी की ये सब चतुराई है
हरयाली ओढ़े घटा छन छन आयी है
चार मौसम का वो यंहा गहना है
पेड़ों के संग ही हमे अब तो रहना है

इंसान तू कितना हरजाई है
सीखा जिस से उसकी जान गंवाई है
पेड़ ना रहेंगे तू भी ना रहेगा
बता तू कल किस को कहेगा


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Wednesday, May 13, 2015

५ मई २०१५ का चित्र और भाव



नैनी ग्रोवर

~तुरपन~

कैसे करूँ मैं तुरपन, इस फटी तकदीर की,
आ रही थी ये सदा, दूर से इक फ़कीर की..

ज़ख़्मी हुए हैं ख्वाब सब, रिस्ता है लहू अरमानो का,
कैसे सहूँ मैं अकड़न अब, दूनियाँ नामी जंजीर की..

हर सांस बोझ लगने लगी, रौशनी आँखों से जाने लगी,
कोई ना जाना कोई ना समझा, वजह मेरी पीर की..

ख़ामोशी से अब गुम हो जा, "नैनी" ज़िन्दगी की राहो में,
कोई नहीं पड़ेगा तुझे, तू ग़ज़ल नहीं किसी मीर की..!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~सुई - धागा~

सुई और धागे की
जब तकरार हुई
बेहतर कौन जानने
फिर छोटी एक बहस हुई

सुई ने कहा
तुमको राह दिखाती हूँ
कहाँ तुम्हे रहना है
वो बतला कर मैं जाती हूँ

धागे ने कहा
राह दिखाते लेकिन दर्द देती हो
मैं रहता वही
और तुम साथ छोड़ जाती हो

सुई ने कहा
देकर दर्द भी मैं दर्द मिटाती हूँ
तेरे बिन मैं अधूरी
लेकिन उनकी खातिर छोड़ आती हूँ

धागे ने कहा
तेरा मेरा बिछुड़ना मिलना चलता रहेगा
लोगो की आशाओ को
बिन कुछ कहे हमारा दिल जोड़ता रहेगा


बालकृष्ण डी ध्यानी
~सुई और धागा~

सुई और धागा
बांटें काम वो आधा आधा
एक दूजे पर वो निर्भर है
एक ना दे साथ तो
सब कुछ रह जायेगा आधा

सुई और धागा
बांटें काम वो आधा आधा

एक पंक्ति में चलना
एक आगे एक पीछे सदा
कुछ ना कुछ नया सीना
जोड़कर एक को वो
एक का साथ वंहा से छूटना

सुई और धागा
बांटें काम वो आधा आधा

कुछ सीखा जाती है वो
कुछ नया बना जाती है वो
रिश्ता उनका ये अनोखा
देख कैसे निभा जाती है वो
सुई और धागा


Pushpa Tripathi
~झीनी चदरिया ~

सुई की तरह
चुभते दर्द
दर्द ---
को बांधता समय का धागा
धागे ---
जैसे पतले रिश्ते
रिश्तें ----
जो टूटते है
जुड़ते भी
पर टिक नहीं पाते
प्रेम के रेशमी पलों में भी
सुई धागे जैसा
दर्द और रिश्ता
निभाए जाते है
चकती लगाने के लिए
उसी रंग के अनुरूप ही
जो जल्दी दिख न पाये
पर उसके अलग
जुड़ने का अहसास
बना रहता है
जीवन की झीनी चदरिया में !


Pushpa Tripathi
~चुभती नहीं सुई~

जख्म पे टाँके लगाकर
सुई कितना हमदर्द हुआ
सिले घाव पर सिर रखकर
धागा भी उसके साथ हुआ !

बेशक गंभीर मसला था
दिल चूर चूर टूटा था
लहूलुहान रिश्तों की हार में
दर्द -- बयाने दर्ज हुआ !!



कुसुम शर्मा
सुई और धागा 
**************
धागा कहे सुई से
मेरे बिना तेरा क्या काम
है तू छोटी सी
चुभना तेरा काम !

सुई कहे धागे से
मत कर तू अभिमान
मै नही तो तू नही
दोनो है एक दूसरे की जान
बिना सुई के धागा भी कहाँ चल पायेगा
जब एक,एक मोती पिरोऊँ तुझमें
तभी तो माला बनती है
नही तो मोती, मोती ही रह जाती है !

धागा कहे सुई से
बात गया मे जान
न तू मेरे बिना
न तेरे बिना मेरा कोई काम !!


भगवान सिंह जयाड़ा 
-----सुई का पैगाम----

काम बड़ा है लेकिन छोटा सा नाम ,
एक दूसरे को जोड़ना है मेरा काम,
बिन धागे के मै सदा अधूरी रहती ,
दुःख दर्द सदा धागे के संग सहती ,
सदा एक दूसरे को आपस में जोड़ना ,
कभी ना किसी को जीवन में तोड़ना ,
सब के लिए है मेरा यह सुन्दर पैगाम ,
धागे की मीत हूँ मै ,सुई है मेरा नाम ,


प्रभा मित्तल
~~~मेरा सुई - धागा~~~

कब से आँख-मिचौली खेल रहा
मेरे साथ ये सुई-धागा,
बूढ़ी होती इन आँखों को अब
सुई का छेद नज़र नहीं आता।

बटन टाँकने बैठी थी मैं
उधड़ी सीवन में अटक गई हूँ,
मन कहीं नाके के पार हो गया
हर बार गंतव्य से भटक गया।

अब टाँक रही हूँ उस चादर को
जो धुँधली यादों को उजला कर
छुपके नम कोरों से भीग गयी थी
कच्चे पड़ते धागों से जैसे उदास
ज़ख्मों की सूखी परतें छीज रही थीं।

तभी पाश में बाँध बिटिया ने
हँसकर सुई में धागा पिरो दिया,
छू - मन्तर हो अब हारा अतीत
मन मेरा भी स्नेहसिक्त हुआ।

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Tuesday, May 5, 2015

२८ अप्रैल २०१५ ;तस्वीर क्या बोले' प्रतियोगिता




२८ अप्रैल २०१५ ;तस्वीर क्या बोले' प्रतियोगिता 
- मित्रो इस चित्र में दो चित्र है, दोनों चित्र पर आपको अपने भाव लिखने है 
- दोनों में से एक चित्र के भाव विपरीत होने आवश्यक है.- अगर एक में खुशी तो दूसरे में गम, एक में साथ तो दूसरे में विरह. 
- हर भाव कम से कम ४ पंक्तियों में और अधिकतम ८ पंक्तियों में होना आवश्यक है, भाव में चित्र का क्रमांक अवश्य लिखे.


Pushpa Tripathi  * विजेता *
न कर सेहत से मनमानी :-

(१ )
पिज़्ज़ा बर्गर चाट समोसे
मस्ती हुई धमाल
पार्टी की ये शानोशौकत
सेहत पे जंजाल।
अलसाई शरीर को देखो
विषय बना परिहास
वजनी मोटे को जो देखे
कहे नहीं कोई दुब घास।
सुनकर जब दिल भारी हुआ रे
"हाथी हुआ शरीर "
इर्द गिर्द मंडराए कसरत
योग व्यायाम हो जरूर।

(२)
बिना सोच के किया जो कसरत
हालत हुई खराब
मांस पेशियां अक्कड गई तब
कोई नहीं जवाब।
डॉक्टर जी आये कारण बताए
वर्जिश नियम पाल
ट्रेनर से ही सीखो पहले
शरीर की देखभाल।



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

~ बीमार हुआ दिल ~ 
1.
बड़ा घमंड था खुद पर
हर प्रेम कला में माहिर
दिल चुपके से कहता था
तुम हो मियां बड़े शातिर

दिलो का मैं बेताज बादशाह
हर खूबसूरती दिलो की रानी
परचम इश्क का लहराता रहा
कहते थे मुझे सब राजा जानी

2.
हर एक की नज़र में राजा जानी
करता रहा सबके संग मन मानी
वक्त का मौसम कुछ बदल गया
मोहब्बत हुई कर बैठा मैं नादानी

एक हसीं दिल को मैं दिल दे बैठा
इंकार सुन कर दिल मेरा बैठ गया
प्रेम का भूत पल भर में उतर गया
दिल के डॉक्टर से नाता जुड़ गया



नैनी ग्रोवर

___ये दिल___
1)

दुनियाँ भर के बोझ अब सहा नहीं जाता,
किसने कितनी बार है तोडा,
ये भी कहा नहीं जाता..
देखता है चुपचाप, रिश्तों से ज़ख़्मी बहता लहू,
फिर भी दिल से इनके संग,
बेरुखी से बहा नहीं जाता..!

2)

ये दिल इतराता हुआ, हर पल मुकुराता हुआ,
चाहे हो जाए कुछ भी, सबका साथ निभाता हुआ,
माना के दुनियाँ की बातों से लरज़ जाता है,
मगर फिर बनके चारागर, मेरा हौंसला बढ़ाता हुआ..!



कुसुम शर्मा 
दिल है कि मानता नही 
..........,...१.............
कभी हँसाता है ये दिल
कभी रूलाता है ये दिल
ये दिल है कि मानता ही नही
अभी उनकी यादों मे खोता है ये दिल
अभी उनको भुलाने की कोशिश करता है ये दिल
ये दिल है कि मानता नही
इस दिल मे बसे है अरमाँ कई
इस दिल के टुकड़े हुए भी कई
फिर भी है ये दिल मानता नही
बताओ इस दिल को मनाये कैसे
इस दिल को अपना बनाये तो कैसे
ये है कि मानता नही !!

२.
इस दिल को बहुत मनाया भी हमने
हर राह पे साथ निभाया भी दिल ने
दिल ने कहा तुझे जो है करना
कर ले तू खुल के बस चार दिन है जीना
हर ख़ुशी से तु न रहे अंजान
हर रिश्ते को दिलो से ले बाँध
वो कहता गया मै सुनती गई
हर पल को मै जीती गई



बालकृष्ण डी ध्यानी 

दिल 

दिल लगा है अपने में
कई सपने बुनने में
सुबह शाम
अब ना इसे मिले आराम

हष्ट पुष्ट दिखने में
निरोगी रहने में
दिन रात
गये बस तेरे इसी ख्याल में


दिल

दिल जान ले समझ ले तू
अब ये हकीकत
सुबह शाम
रह गये बस तेरे सपने बुनने में

ना निभा पाया तू
खुद से अपना वाद
दिन रात
अब चक्कर लगने लगे दवाखाने के


प्रभा मित्तल  * विजेता *
~~~~~दिल की बातें~~~~~ 
~~~~~~~~~~~~एक~~~~~~~~~~~~

तुम्हें याद है उस दिन होड़ा-होड़ी में
दिल तुम भी हारे थे हारी थी मैं भी
इसी हार ने जीत ली मन की बाजी-

जहाँ संग-संग हँसने के इरादे थे
जीवन भर साथ चलने के वादे थे
शाम सुरमई ,सुबह का उजाला था
छोटा सा गुलिस्तां हमारा था।

पंखुड़ी से भी नरम, पुष्प जैसा मुस्कुराता
ओस सा पावन, नेह पाकर तुम्हारा,
बँध गई थी मैं अटूट प्रेम के बन्धन में-
इस विस्तीर्ण से आकाश में हृदय की
धड़कनों का अर्थ मुझको मिल गया था।

~~~~~~~~~~~~~~~~~दो~~~~~~~~~~~~~

चल रहा था सभी कुछ यथावत् -
मगर कैसी अचानक ये छाई घटा
अंधेरा घना घिर के आया यहाँ
मैं समर्पित थी रह गई ठगी सी
चार कदम चलकर जमाने के नए,
भीड़ में खो गए तुम जाने कहाँ
प्यार में दर्द मैंने सहा देर तक
द्वार पर खड़ी मैं बाट जोहती रही।

ये अकेलापन भी क्या चीज है
प्रेम में दर्द भी यौं सुहाता नहीं
विरह और मिलन में शंकित हूँ बस,
न जाने विरह कौन सा था, कहूँ,कि
पास तुम नहीं थे मगर साथ हरदम रहे
या उस वक़्त का दर्द बाँट लूँ मैं अब
साथ तुम नहीं थे पास रह कर भी जब।

समझोगे तुम आज क्या मेरी व्यथा
आ गए हो तो बैठो ,न सोचो जरा
छोड़ो, घड़ी दो घड़ी कुछ बातें करें
पुराना भुला कर अब आगे बढ़ें
नहीं गा रही अब विरह गीत मैं
नई ताल पर नया गीत लिख
नया छंद और नई रीत से
दिलों के दर्द बाँट लें फिर
नए साज पर नई आस ले
आगे की राह हम मिल कर चलें।

[ पुष्पा त्रिपाठी जी एवं प्रभा मित्तल जी को विजेता  बनने पर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ]

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