Wednesday, May 13, 2015

५ मई २०१५ का चित्र और भाव



नैनी ग्रोवर

~तुरपन~

कैसे करूँ मैं तुरपन, इस फटी तकदीर की,
आ रही थी ये सदा, दूर से इक फ़कीर की..

ज़ख़्मी हुए हैं ख्वाब सब, रिस्ता है लहू अरमानो का,
कैसे सहूँ मैं अकड़न अब, दूनियाँ नामी जंजीर की..

हर सांस बोझ लगने लगी, रौशनी आँखों से जाने लगी,
कोई ना जाना कोई ना समझा, वजह मेरी पीर की..

ख़ामोशी से अब गुम हो जा, "नैनी" ज़िन्दगी की राहो में,
कोई नहीं पड़ेगा तुझे, तू ग़ज़ल नहीं किसी मीर की..!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~सुई - धागा~

सुई और धागे की
जब तकरार हुई
बेहतर कौन जानने
फिर छोटी एक बहस हुई

सुई ने कहा
तुमको राह दिखाती हूँ
कहाँ तुम्हे रहना है
वो बतला कर मैं जाती हूँ

धागे ने कहा
राह दिखाते लेकिन दर्द देती हो
मैं रहता वही
और तुम साथ छोड़ जाती हो

सुई ने कहा
देकर दर्द भी मैं दर्द मिटाती हूँ
तेरे बिन मैं अधूरी
लेकिन उनकी खातिर छोड़ आती हूँ

धागे ने कहा
तेरा मेरा बिछुड़ना मिलना चलता रहेगा
लोगो की आशाओ को
बिन कुछ कहे हमारा दिल जोड़ता रहेगा


बालकृष्ण डी ध्यानी
~सुई और धागा~

सुई और धागा
बांटें काम वो आधा आधा
एक दूजे पर वो निर्भर है
एक ना दे साथ तो
सब कुछ रह जायेगा आधा

सुई और धागा
बांटें काम वो आधा आधा

एक पंक्ति में चलना
एक आगे एक पीछे सदा
कुछ ना कुछ नया सीना
जोड़कर एक को वो
एक का साथ वंहा से छूटना

सुई और धागा
बांटें काम वो आधा आधा

कुछ सीखा जाती है वो
कुछ नया बना जाती है वो
रिश्ता उनका ये अनोखा
देख कैसे निभा जाती है वो
सुई और धागा


Pushpa Tripathi
~झीनी चदरिया ~

सुई की तरह
चुभते दर्द
दर्द ---
को बांधता समय का धागा
धागे ---
जैसे पतले रिश्ते
रिश्तें ----
जो टूटते है
जुड़ते भी
पर टिक नहीं पाते
प्रेम के रेशमी पलों में भी
सुई धागे जैसा
दर्द और रिश्ता
निभाए जाते है
चकती लगाने के लिए
उसी रंग के अनुरूप ही
जो जल्दी दिख न पाये
पर उसके अलग
जुड़ने का अहसास
बना रहता है
जीवन की झीनी चदरिया में !


Pushpa Tripathi
~चुभती नहीं सुई~

जख्म पे टाँके लगाकर
सुई कितना हमदर्द हुआ
सिले घाव पर सिर रखकर
धागा भी उसके साथ हुआ !

बेशक गंभीर मसला था
दिल चूर चूर टूटा था
लहूलुहान रिश्तों की हार में
दर्द -- बयाने दर्ज हुआ !!



कुसुम शर्मा
सुई और धागा 
**************
धागा कहे सुई से
मेरे बिना तेरा क्या काम
है तू छोटी सी
चुभना तेरा काम !

सुई कहे धागे से
मत कर तू अभिमान
मै नही तो तू नही
दोनो है एक दूसरे की जान
बिना सुई के धागा भी कहाँ चल पायेगा
जब एक,एक मोती पिरोऊँ तुझमें
तभी तो माला बनती है
नही तो मोती, मोती ही रह जाती है !

धागा कहे सुई से
बात गया मे जान
न तू मेरे बिना
न तेरे बिना मेरा कोई काम !!


भगवान सिंह जयाड़ा 
-----सुई का पैगाम----

काम बड़ा है लेकिन छोटा सा नाम ,
एक दूसरे को जोड़ना है मेरा काम,
बिन धागे के मै सदा अधूरी रहती ,
दुःख दर्द सदा धागे के संग सहती ,
सदा एक दूसरे को आपस में जोड़ना ,
कभी ना किसी को जीवन में तोड़ना ,
सब के लिए है मेरा यह सुन्दर पैगाम ,
धागे की मीत हूँ मै ,सुई है मेरा नाम ,


प्रभा मित्तल
~~~मेरा सुई - धागा~~~

कब से आँख-मिचौली खेल रहा
मेरे साथ ये सुई-धागा,
बूढ़ी होती इन आँखों को अब
सुई का छेद नज़र नहीं आता।

बटन टाँकने बैठी थी मैं
उधड़ी सीवन में अटक गई हूँ,
मन कहीं नाके के पार हो गया
हर बार गंतव्य से भटक गया।

अब टाँक रही हूँ उस चादर को
जो धुँधली यादों को उजला कर
छुपके नम कोरों से भीग गयी थी
कच्चे पड़ते धागों से जैसे उदास
ज़ख्मों की सूखी परतें छीज रही थीं।

तभी पाश में बाँध बिटिया ने
हँसकर सुई में धागा पिरो दिया,
छू - मन्तर हो अब हारा अतीत
मन मेरा भी स्नेहसिक्त हुआ।

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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