Tuesday, August 25, 2015

१८ अगस्त २०१५ का चित्र और भाव



राकेश देवलाल 
~मकान~

कौन कहता है कि, हम सिर्फ मकान हैं,
बस इसमे रहने वालों के अरमान हैं,
माना कि हमें बनाया था किसी ने बड़े फुर्सत से,
खुद के और अपनी नयी पीढ़ी के लिए,
पर आज अकेले और बस बीरान से हैं,
कल की यादों में खोकर परेशां से हैं,
काश होता अगर जगह बदलना हमारे भी हाथों में,
तो समय गुजरने पर, खण्डर न हमारा नाम होता ||


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .....
~ पसंद आया है ~

बंद हुए दरवाजे खिड़कियाँ
खाली पड़े पुराने मकानों के
सामान बेच दिया घर का
अब नई जगह और
नया मकान पसंद आया है

एहसास अब बेजान हुए
दिल का दरवाज़ा बंद हुआ
लिखा नाम मिटने लगा है
अब नए लोग और
नया दिल पसंद आया है

पुराने संस्कार और व्यवहार
मन के प्रांगण से दूर हुए
अपने धर्म पर उठा अंगुली
अब नई सभ्यता और
नया रिश्ता पसंद आया है


दीपक अरोड़ा
# नया रिश्ता निभाना है #

बन गया मकान
अब इसे घर बनाना है
प्रेमभाव से रहते हुए
सपनों सा सजाना है
मिसाल बन जाएं औरों के लिए
कुछ ऐसा कर दिखाना है
अपने अपनों के साथ हमें
अब इक नया रिश्ता निभाना है


Pushpa Tripathi
~एक ही घर के कई दरवाजे~
--------------------------

गूंजती यादों ने आज
उस तरफ का रुख किया है
जहाँ आती थी खुशियाँ
बनते थे घर ....
घर का वह शुभ दरवाजा
जिस चौखट से करती थी नववधू प्रवेश !

अब वहां वह बात नहीं
चौखट के दरवाजे को कोई नहीं
नाघता परिवार एक भी सदस्य
रहता है बस वहाँ ....
बीते दिनों की कहानियों का पसरा सन्नाटा
उस कच्चे अधगिरे प्लास्टर में ....
अब कई दरवाजे बने है पत्थरो के
अपने अपने निजी कमरो से
कोई नहीं झाँकता उन कमरों में
क्योंकि अब तो वह बंद है … एक दूसरे के लिए
दिलों में रिश्तों की खटास से
एक ही घर के कई दरवाजे !!



नैनी ग्रोवर --
----दरवाज़े----

बन्द हुए दरवाज़े
घर वीरान हो गया
हर मानव की तरह
ये भी मेहमान हो गया
धीरे धीरे गिरने लगी हैं
मजबूत दीवारें
छत टिकेगी कब तक और किस सहारे
ढह जाएगा इक दिन उन सपनों की तरह
जो जा चुके इसे छोड़ कर अपनों की तरह
नज़र आती है आज भी माँ दरवाज़े पे खड़ी
कभी बाबूजी कभी मेरी राह तकती चिंता में पड़ी
अब कुछ नहीं है यहाँ
सभी कुछ सिमट गया
माँ की बनाई रंगोली का नामों निशाँ भी मिट गया
पर मन करता है इसमें फिर से बस जाउँ
परंतु पड़ी लिखी है संतान मेरी उन्हें कैसे समझाऊँ ..!!



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ......
~ तैयार ~

छोड़ दिया अपनत्व के हर भाव को
उस प्यार और अपने पैतृक गाँव को
कोई तैयार नही अब, यहाँ आने को
बचे हुए अब, तैयार हैं बाहर जाने को

खाली कमरे, सूनी दीवारे तैयार रोने को
अपना दर्द समेटे और तैयार दर्द पाने को
खिड़कियाँ दरवाजे अब तैयार टूट जाने को
तैयार हूँ अपनों से ही अब बिछड़ जाने को

जन्मभूमि तुम्हारी अब तैयार खंडहर बनने को
अपने लोगो के हाथो अब तैयार बलि चढ़ने को
ठहाको संग किलकारियां तैयार खामोश होने को
हर रिश्ता तैयार 'प्रतिबिंब' मिट्टी में मिल जाने को


Kiran Srivastava 
"रुग्ण मानसिकता"
----------------
-जर्जर मकान की तरह
मानसिकता लिए
परम्पराओं को धराशायी कर
हम कहाँ जा रहें हैं.....

आपसी रिश्तों के दरवाजे
मानवता की खिड़कियां
सदा के लिए बंद कर
हम कहाँ जा रहें हैं.....

कमजोर होती नींव संस्कार की
ढहती दिवारें विश्वास की
नवीनीकरण की आपाधापी मेंबहकर
हम कहाँ जा रहें हैं.....

क्यूँ भूलती जा रही
संस्कृति
क्यूँ जर्जर हो रही
मानसिकता
क्यूँ न पूनर्जिवित कर लें पुनः
टूटते ढहते विश्वास को
बेजोड़ मजबूती सें
सिंचित कर
फिर खड़ी कर दें
प्रेम और विश्वास
से बनी इमारत को.....!!!!!


अलका गुप्ता
~~~~ईंट-ईंट कराहती~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~

भग्नावशेष से हुए अब मकान हैं |
खस रहीं दीवारें ज्यूँ अब मशान हैं ||

अहले चमन हुआ करते थे कभी जो..
नशेमन वो हैरान... अब वीरान हैं ||

ईंट-ईंट कराहती लहू लुहान सी ..
बोझिल पर्वतों से ढह रहे आन हैं ||

झाँकते झिरझिरे दर-ओ-दीवार से
सने शील गंधमय अश्रु वियावान हैं ||

धँस चुके हौसले नीड़ के सहमकर
छोड़ जाने गए कहाँ बाग्वान हैं ||

गैरत ख़ुदी की करे है प्रश्न'अलका'
लटकते तालों बची भी क्या शान है ||


भगवान सिंह जयाड़ा 
----पलायन का दंश---
-----------------------------
झेल रहा हूँ दंश पलायन का,
न जाने कब बिखर जाऊंगा,
चले गए मेरे ,मुझे छोड़ कर,
बोले अब न मुड़ के आऊंगा,

गूंजती बच्चों की किलकारियां,
वह चहल पहल मेरे अपनों की,
बस निरास मन से ताक रहा हूँ,
वो दुनियां जो हो गई सपनों की,

मैं इंतजार करता रहूंगा तुम्हारा,
जब तक मेरा अस्तित्व बचा है,
मर्यादा हूँ मैं तुहारे खानदान की,
मुझे तुम्हारे पूर्बजों ने ही रचा है,

यूँ न बिमुख होइए मुझ से अब,
बहुत हो गया,अब मुड़ भी आइए,
वह पुरानी रौनक लौटा दो मुझ को,
फिर कभी यूँ छोड़ कर न जाइये,


बालकृष्ण डी ध्यानी 
~भूली बिसरी यादें~

भूली बिसरी यादें हैं बची
क्या रह गयी थी मुझ में ही कहीं कमी
चले गये हैं सब एक एक छोड़ मुझे
जाते दिखा नहीं क्या तुम्हे मै भी हूँ दुखी
भूली बिसरी यादें हैं बची

पत्थर पत्थर मेरे पुरखों ने जोड़ा
अपने प्रेम का स्नेह का नाता मेर साथ जोड़ा
देख उनकी आत्म ये सब कुछ मेर संग है दुखी
तू कैसे रह सकता दूर हम से हो सुखी
भूली बिसरी यादें हैं बची

इस आँगन में पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी बढ़ी
मेरी चार दीवारों ने वो अपनी हर बात सुनी
सुख दुःख था जो हम सब ने मिलके यंहा झेला
तू डर के कहाँ उठा ले चला अपना झोला
भूली बिसरी यादें हैं बची

भूली बिसरी यादें हैं बची
क्या रह गयी थी मुझ में ही कहीं कमी
चले गये हैं सब एक एक छोड़ मुझे
जाते दिखा नहीं क्या तुम्हे मै भी हूँ दुखी
भूली बिसरी यादें हैं बची



प्रजापति शेष 
~विभ्रम~

यह भ्रम मात्र था उन लोगों का जिसने मुझे बनाया था,
क्या भ्रम उनको भी था जिनने भव्य मुझे बनवाया था |

क्यों त्याग चले , क्या उनका मन मुझसे भर आया था,
कहीं वे छले गए,नियति से, क्या किसी ने हडकाया था|

जान मुझे केवल ईंटो का आधार, क्या कुछ पाया था,
नहीं नहीं ये भ्रम तो मेरे मन में ही तब से समाया था|

अपना मान मेनें उनको हर मोसम में बचाया था,
जबकि शेष खंडहरों ने मुझे तब भी चेताया था|


कुसुम शर्मा 
~बदलते समय की मार ~
-------------------
जाने कितने सालों से ,
बन्द पड़े दरवाज़े मेरे !
सपने जो तुने सजाये ,
चूर चूर हो गये वो सारे !!

तूने पाई जोड़ जोड़ कर ,
बड़े जतन कर ,
मुझे बनवाया
तेरी ही सन्तानो ने
एक ही पल मे मुझे ठुकराया !!

कभी जहाँ पर किलकारियाँ
गुंजा करती थी ,
चारों ओर ख़ुशियों की
बरखा होती थी .

बिरानियाँ है चारों ओर
नही बचा अब कोई शोर !

छोड़ चुके संस्कारों को
भूल चुके पुराने विचारों को !

पुर्खो की भूमि बंजर पड़ी है ,
शहर मे देखो हलचल मची है ,

रह देखते देखते मै भी बुढ़या गया ,
न ही खुला कभी मेरा दरवाज़ा
न ही आई किसी को याद

मै भी कब तक जी पाउँगा
ऐसी ख़ामोशी को कब सह पाउँगा
नींव साथ छोड़ चुकी मेरा
अब इस खंडहर का बोंझ कैसे उठाऊँगा !!

कभी जो घर हुआ करता था
आज बिरान पड़ा है
बदलते समय की मार के
घावों से भरा पड़ा है !!

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Friday, August 14, 2015

~मेरा तिरंगा मेरा मान~


१५ अगस्त के लिए 'तस्वीर क्या बोले' समूह के सदस्यों ने एक रचना को तैयार किया  है .. समय अभाव के कारण कई  मित्र  लिख  नहीं पाए क्योंकि कल ही लिखने  को कहा था. हाँ बाद में कोई लिखेगा समूह में तो अवश्य शामिल किया  जायेगा  ब्लॉग में भी और सदस्यों को एडिट करने का निवेदन किया जाएगा. ये लिखने वाले सदस्य भी अपनी दीवार पर इसे प्रेषित करेंगे  


आओ लहराए तिरंगा, भारतीयता बने मेरी पहचान
धर्म हम सबका एक हो, भारतीयता नाम हो उसका
हर कर्म देश हित में हो, तिरंगे की बढ़े हर पल शान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #प्रतिबिम्ब_बड़थ्वाल ]

लाखों बलिदान होते है जब, तब कोई एक उभर आता है,
स्वत्व खोता है दही जब, तब मक्खन नितर कर आता है
छाछ की मानिंद रहकर शेष, अपनों को दे हम सम्मान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #प्रजापति_शेष ]

सत्य और शांति का पाठ पढ़ाता,शौर्य का सौरभ बिखराता
 एकता के पथ पर चलकर,,प्रगति की पहचान कराता
 संस्कृति में सबसे न्यारा और प्यारा ये भारत देश महान
 मेरा तिरंगा मेरा मान,जन - गण- मन जिसकी पहचान। [#प्रभा_मित्तल ]

शौर्य गाथाओं से सिंचित, ऐसी पुण्य मेरी धरती महान
दुश्मनो के दांत खट्टे करता, हिन्दुस्तान का हर जवान
इतिहास बना देता है, दिव्य धरा के लिए होकर बलिदान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #प्रतिबिम्ब_बड़थ्वाल ]

जन गण भाषा हिय अति भाता, ध्वज तिरंगा लहराता
वीर मस्तानी लक्ष्मी बाई से, फिरंगी मन था घबराता
शान बना है उच्च हिमालय, कहलाता भारत का अभिमान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान !! [ #पुष्पा_त्रिपाठी ]

ये आन तिरंगा, ये शान तिरंगा, ये बनी अब मेरी जान .
तीन रंग में सजा तिरंगा अब ये है बस मेरी पहचान
अशोक चक्र मध्य विराजे करो सब मिल के गुणगान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #बाळ_कृष्ण_ध्यानी ]

अलग-अलग भाषा बोली फिर भी है हिंदी हमारी जान
रंग-विरंगी तहजीव यहाँ की...अनूठा है संस्कृति ज्ञान
स्वाधीनता दिवस है ..आओ मिल गाएँ सब राष्ट्रगान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #अलका_गुप्ता]

मेरे भारत की है अनूठी संस्कृति, संस्कार और ज्ञान..
स्वतंत्रा दिवस आ गया, देखो मेरे भारत की हम शान
विदेशो में भारत की है पहचान, इसकी आन और बान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन है जिसकी पहचान [#मीनाक्षी_कपूर_मीनू ]

वीर सावरकर और चंद्रशेखर का याद है हमको बलिदान
शहीद भगतसिंह और सुभाष चन्द्र पर है हमें अभिमान
तिरंगे की खातिर लुटाया जीवन, न्यौछावर किया यौवन
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन है जिसकी पहचान [ #कुसुम_शर्मा]

तू ही मेरा जीसज़, वाहेगुरु, अल्लाह और है भगवान्,
तुझपे वारी तुझपे सदके जाऊं, मेरा दिल और मेरी जान,
आँच ना आने देंगे तुझपे, तेरे बेटे किसान और जवान,
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान.! [ #नैनी_ग्रोवर ]

ना झुकेंगे किसी के सामने से, ना डरेंगे किसी से हम
हम है हिन्दुस्तानी, हिन्दुस्तान है हमारी सच्ची शान
कुर्बानी जहाँ देशभक्ति, वहां देंगे हम हंसते-हंसते जान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #दीपक_अरोड़ा ]

जाति-पाति और ऊँच-नीच का, भेद हमें पूर्णत: मिटाना है
चारो तरफ हो बस भाई चारा, ऐसा राष्ट्र हमें बनाना है,
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाइ, सब धर्म बनें इस देश की शान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #kiran_srivastva ]

कभी न घटे तिरंगे का मान, यह हमारी आन बान शान,
इस पे कुर्बान हमारी जान, बनी रहे सदा तिरंगे की शान,
जाति धर्म का छोड़ अभिमान, गायें हम इस का गुण गान,
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #भगवान्_सिंह_जयाड़ा ]

करते हैं बिनती हम सब से, रख लो तुम देश का मान
हिंदुस्तान में रहकर ही बस होगा, इस देश का गुणगान
आओ फहराएं तिरंगा घर घर आज, ये तिरंगा है मेरी जान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #उदय_ममगाई_राठी ]

शिक्षा और सुरक्षा प्रथम हो, नारी को मिले मान सम्मान
यहाँ भूखा पेट न सोए कोई, गरीबी का मिटे नामो निशान
विश्व गुरु भारत बने, सोने की चिड़िया बने मेरा हिंदुस्तान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #किरण_आर्य ]






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Thursday, August 13, 2015

6 अगस्त 2015 का चित्र और भाव



Kiran Srivastava 
~"सूर्य का तोहफा"~


तोहफा देता है ये सूर्य
कार्यों को करता है पूर्ण !
पौधों को पोषण देता
रोगाणु को नष्ट करता
उसके बिना सदा अंधेरा
रोग व्याधि का हो जाये डेरा
उसके बिना जीवन अपूर्ण
तोहफा देता है ये सूर्य !

सदा प्रकृति का है रखवाला
व्याधियों को हरनें वाला
विटामिन डी का है ये स्रोत
उसके बिना नहीं हो ग्रोथ
जीवन को करता परिपूर्ण
तोहफा देता है ये सूर्य !

सूर्य महत्ता को हम जानें
प्रदत तोहफा को पहचानें
जिसका है कीमत अनमोल
नहीं लगे कोई भी मोल
जन-जन को करता संपूर्ण
तोहफा देता है ये सूर्य


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ भावो का उपहार दूं  ~

शब्द भावो का मेरा संसार
संचित नही कुछ इसके सिवाय
शब्दों की माला कर समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं

सत्य हृदय का अवतरित होता
हर शब्द स्वयं होता सम्पादित
प्रेम का हर शब्द तुम्हे समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं

अंतरमन मेरे शब्दों में होता उदृत
भानू किरण शब्दों का शृंगार करती
मेरे शब्द मेरी पहचान कर समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं

आस विश्वास इनमे कर सुरक्षित
प्रेम को हर शब्द में कर विलय
शब्दों का मेरा संसार तुम्हे समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं

निश्छल प्रेम को आधार बना
समुंद्र प्रेम का शब्दों में ढलता
एहसासो का 'प्रतिबिंब' कर समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं


अलका गुप्ता 
--अनुपमउपहार--

ये जीवन इक नियामत है |
ईश प्रदत्त अमानत है |
मानव जीवन जो पाया |
बड़े भाग्य यह तन पाया |
करें कदर इस तन-मन की
उत्तम संस्कार व्यवहार हो |
समर्पित कर्म उपकार हो |
हर प्राणी हेतु मानो हम
अनुपम इक उपहार हैं ||

समझो यूँ ही सौंप दिए
उस प्रभु ने उपहार हमें |
ये सृष्टि धरा आकाश वतन...
हर प्राणी का साथ हमें |
भानु चन्द्र तारे नक्षत्र..
वायु जल अग्नि प्रकाश हमें ||

हे ईश सौंपे जो उपहार मुझे हैं !
रक्षण अद्भुत कृतियों का करें हम |
स्वच्छ संवार रख रखाव करें हम |
उपहार स्वरूप ये प्राण समझ हम |
विद्रूप भाव व्यवहार सब तजे हम |
सद्बुद्धि पा कल्याण वरें हम ||



Pushpa Tripathi 
~करनी की सौगात~.

प्रेम की भाषा
मीठे बोल
सेवा का पल
जीवन में देने और पाने के लिए
शौगात है ~~
तुम पओगे हर जगह
इसे महसूस भी करोगे
प्रकृति में
अपने भीतर भी
दसरों के अच्छे गुणों में
अपनी कविता में
जीवंत विश्वास में
समय के उस कठिन दौर में भी
जब .... वक्त दे जाता है
कुछ नया अनुभव
एक सौगात बेहतर
और भी बेहतर अच्छा फल
करनी की सौगात !



कुसुम शर्मा 
~तुम्हें तोहफ़े मे क्या दूँ ?~
***********************

सोचा तो मैने कुछ अनमोल दूँ ,
लेकिन तुम्हें तोहफ़े मे क्या दूँ ?

साँसों की सौग़ात दूँ ,
एहसासों का हार दूँ ,
पर क्या ?

जीवन भर की क़समें ,
दुनिया की रस्में ,
पर क्या ?

अपने ही जज़्बात है
मेरे पास
चाहोगे क्या ?

मुरझाये मुरझाये से ?
ख़ुशियों के पुष्प सारे
ग़म के हार पड़े है डेरों
तुम ही बताओ ?

मुसकान की साँझ ढली है ,
रूदन सवेरा होने को ,
क्या ऐसा कुछ
तुम चाहोगे ?

रूठ गए हो जब
ख़ुशियाँ भी सारी रूठ गई
ऐसी विरह की बैला मे
कहा बचा कुछ
देने को ?

मेरी दुनिया भी तुम से ,
मेरा प्यार भी तुम से ,
मेरी रूह भी तुम
मेरी हर साँस भी तुम से ,

तुम हो अनमोल हमारे लिए ,
तो अनमोल को अनमोल
तोहफ़ा क्या दूँ ??


Pushpa Tripathi 
~है ये धरती कितनी धनवान~

हर सुबह नया … आरम्भ लिए
हर किरण रौशनी …जीवन लिए
हर उम्मीद बंधी है .... नींद लिए
हर विश्वास जगा है .... ख़ुशी लिए

स्वछंद, सुंदर, सुशोभित आभूषण से
धानी धरती सिर मुकुट हिमालय से
कल कल धारा नदी स्वर रागिनी से
गीत पवन गुनगुनाता सागर लहरों से

है ये धरती कितनी धनवान
अमृत बानी गीता का ज्ञान
सबकुछ मिला है उपहार स्वरूप
हम है भारतीय हमें अभिमान !



डॉली अग्रवाल 
~उपहार~

सोचा था तुम्हे उपहार में लिखकर एक कविता दू
पर तुम सीमित नहीं जिसको शब्दों में बाँध लूँ
तुम बहुत ही अच्छे हो सिर्फ इतना में कैसे कह दूँ
यह मेरे बस में नहीं की तुमको परिभाषित कर दू
नभ् को क्यू छूना चाहू सागर को में क्यों नापू
अथाह प्रेम है यह तुम्हारा जिसमे डूबी रहना चाहू
तुम ही बताओ तुमसे अनमोल क्या
जो में तुम्हे दे पाऊ
बस यही दुआऐं हर पल देना चाहू
तुमपे से खुद को वार दूँ
और मिटटी में मिल जाउ |||


किरण आर्य
~ मेरा उपहार~

जीवन का उपहार हो तुम
हाँ मेरा संसार हो तुम
जीवन पथ है अति दुर्गम
और उसका आधार हो तुम

मन जीव जब होवे अधीर
मन चिंतन वो करे गंभीर
आस निराश डोले है जीवन
साध उसे तुम हरो सब पीर

दो अँखियन की साध हो तुम
रूह से उपजा विश्वास हो तुम
कस्तूरी सी जो मृग में महके
हर धड़कन की सांस हो तुम

आन भी तुम मान भी तुम
जीने का सामान भी तुम
तुझ बिन सदा मैं रही अधूरी
पूर्ण करे जो वो बस तुम हाँ तुम



भगवान सिंह जयाड़ा 
------दोस्ती का उपहार----

प्यार की पोटली कहो या उपहार,
आओ करें इसे दिल से स्वीकार,
इस में श्रद्धा प्यार के भाव भरें है,
कुछ खुशियों के अरमान भरे है,
इस में छुपे है कुछ खुशयों के राज,
और महसूश करो अपने पर नाज,
अमीरी गरीबी की हैसियत ना तोलो,
बस एकांत हो तब ही इसे खोलो,
दोस्ती का है यह अमूल्य उपहार,
इस लिए करो इसे सहर्ष स्वीकार,



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Tuesday, August 4, 2015

१९ जुलाई २०१५ का चित्र और भाव [ हास्य ]


भाव चित्र पर लेकिन हास्य रस  के साथ . 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~भूत प्रेम का ~

प्रेम का भूत जो चढ़ा, लाख जतन किये ये उतारे न उतरे
भूला अब नाम प्रभु का, नाम प्रियतमा का बस दिल पुकारे

कल तक चंदा मेरा मामा था, आज वो चंदा सी दिखती है
कल तक सब मेरे अपने थे, अब सपनो में भी वो दिखती है

रोग इश्क लगा बैठा हूँ, शृंगार रस की हर उपमा उसे देता हूँ
रात दिन उसका ख्याल करू, ऐसा मैं अब हर दिन जीता हूँ

‘प्रतिबिम्ब’ इशक के भवसागर में, मैं डुबकी रोज लगाता हूँ
हो जाऊं तृप्त उसके दर्शन से, ऐसा जतन मैं रोज करता हूँ

ले जा समुद्र किनारे, मैं प्रकृति से उसकी तुलना करता हूँ
होश आते ही संभल जाता हूँ, क्योंकि बीबी से अपनी डरता हूँ


नैनी ग्रोवर 
~सपना है या अपना~

इक चाँद माँगा था हमने, ये मुए चार कहाँ से आये ?
धरती तो धानी थी मेरी, अब नीली नज़र क्यों आये ?

अब भी ना समझे तुम दोस्त मेरे ये सब क्यों हो रहा है
आशिकी का भूत है ये तो ज़ालिम हम पर हावी हो रहा है

चार चार चाँद और ये काले कोवे भी अब निकल आये
तेरे प्यारे प्यारे चेहरे पर जयूँ पिम्पल हो उभर आये

ये कैसा सपना है तौबा, धरती नज़र आ रही नीली
लगता है भांग आज कुछ जरुरत से ज़्यादा ही पीली ..

बाँवरे साजन ने आज फुर्सत में कुछ यूँ जलवा दिखाया
दिखे हरा लाल पीला नीला, मुझे कुछ समझ ना आया

आड़ी तिरछी गर्दन करके हमने हर रंग है यहाँ निहारा
तौबा तौबा करते करते आज का दिन तुम संग गुज़ारा..

भूल कर अब अगर कभी तू लाया मुझे इस गार्डन में
याद रहे सौ सौ पोछे लगवाउंगी तुझसे अपने आँगन में..

ये सब्ज़ बाग़ रहने दे मुए हक़ीक़त से तू अब सौदा कर
चार चाँद क्या चार कोवे क्या चाहे बिल्लियाँ तक पैदा कर ..!!


कुसुम शर्मा 
~प्यार का बुखार~

अरे दोस्तों अब क्या तुम्हे बताये
कैसे चढ़ा हम पर प्यार का बुखार
प्यार जैसे रोटी सब्ज़ी हो गई यार
बिन खाए रह नही पाता ऐसा अचार

जब चढ़ा था हमपर प्यार का बुखार
तो छाने लगा था उसका ही खुमार
धीरे धीरे समय भी था गुज़रने लगा
ख़ुमार उसका जुखाम मे बदलने लगा

हर बात पर उनको कहना पड़ता यार
हमको तो बस केवल तुमसे ही प्यार
अब क्या बताये हम तुमको मेरे यार
आलू गोभी पराँठा सा हो गया प्यार

वो कहती है और हम सुनते जाते
उनकी हाँ मे हाँ अब हम भरते जाते
अच्छा होता बोलते यंत्र से करते प्यार
न होती हाँ ना, न होती कोई तकरार

एक दिन उनसे हो गई हमारी तकरार
बोली कितना करते हो तुम हमसे प्यार
हम भी कुछ प्यार के ताव में आ गए
कहा बोलो कैसे करू मैं इसका इज़हार

बोली तुम आसमान से तारे ला सकते हो
हम बोले कैसे लाऊं, न सेल न लूट मची है
नही ला सकते मतलब हमसे नही तुम्हे प्यार
क्यों दिखावा करते, करते क्यों झूठा इज़हार

करते प्यार तो मेरे लिए रांझा मजनू बन जाते
तारे क्या सूरज चाँद भी तुम तोड़ कर ले आते
हम बोले राँझा मजनू जान गँवा बैठे करके प्यार
हम तो जिन्दा रहकर करना चाहते तुमसे प्यार

चंद्रमुखी अब ज्वालामुखी बन फटने लगी यार
बोली क्या सोच कर तुमने किया हमसे प्यार
हमने कहा प्रिये होना था हो गया तुमसे प्यार
करो न बहस रानी, मत बनाओ प्यार का अचार


Kiran Srivastava 
~सपना~

ये कौन सी है दुनियाँ
कैसे हैं ये नजारे
ये चाँद और ये सूरज
ये दिन में दिखते तारे
उड़ते हुये परिन्दे
अपनी ही ओर भागे
एक हूर सी परी थी
मैं हाथ उसका थामें
खुश हो रहा बहुत था
सब देखकर नजारे
इतने में एक धमाका
तंद्रा को तोड़ जाये
आये नही समझ में
ये बम कहाँ से आये
जब ख्वाब मेरा टूटा
एहसास तब हुआ
दरवाजे पे खड़ी
पत्नी मेरी चिल्लाये
जब आँख मैंने खोली
नजरे घड़ी पे डाली
मैं दुम दबा के भागा
वो पीछे-पीछे भागी
आँखे तरेर बोली
हरकत तुम्हारी ऐसे
मूंगेरी लाल हो जैसे...!!


भगवान सिंह जयाड़ा
---ख्वाबों की दुनियां---

ख्वाबों की तेरी दुनियां को रंग बदलते देखा,
दो-दो चाँद को भी आज हमने निकलते देखा,

क्या हो गया जो धरती हो गई सारी नीली,
धरती ने क्या समुन्दर की स्याही सारी पीली

तेर इश्क में हुए अंधे, बादल बने हंस का जोड़ा ,
मंडराते हुए काले कौवों ने फिर भ्रम मेरा तोडा

उल्टा पुल्टा यहाँ दिखता, बैंगनी हुए क्यों बादल
पेड़-पौधे का रँग देख गुलाबी, हम हो गए घायल

साथ खड़े होकर तुमने कैसा सब्ज बाग़ दिखाया
मोहब्बत के आशियाने को भुतहा बंगला बनाया

प्यार ने आज हमें फिर सावन का अँधा बनाया
लगता है मेरे ही ख्वाबो ने मुझे यूं उल्लू बनाया

चल ख्वाबो से निकल कर हकीकत से मिल जाए
अपनी दुनियां की हम, सुपर हिट जोड़ी बन जाए


मीनाक्षी कपूर मीनू  
~बुनते ख्वाबों की उधड़ी सूरत~
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आज हमारे ख्यालों में
यूँ बन ठन के वो आये .....
क़ि रोटी बनाते बनाते
हम प्यार से मुस्कुराये ..
ख्वाब था सुहावना बड़ा
परियों सा जगमगाये .. .
वो भी थे सूट बूट में
सजे संवरे ...सकपकाये
बादलों से खेल रहे थे
काग प्यारे .. प्यारे ...
यूँ लगा ज्यूँ निहार हमें
वो भी पकड़ने लगे थे तारे
हाथ थाम हम चलें यूँ
ज्यूँ पंख हमारे निकल आये
अब करेंगे चाँद की सवारी
ये सोच के हम पग बढ़ाये
पग बढ़ाते ही ..यकायक
ये नाक सिंकोड़ते आये
बोले .......ओ भागवान
रोटी जल गयी ....
धुंए के बादल लहलहाए
उफ़ ...खुली बन्द पलकें
अब नज़र कुछ न आये
मनस्वी ... काले धुएँ से
दीवार पे थे काग बनाये
अब ......सूट बूट वाले
नज़र मुझे धोती में आये
बोले ...जा हुलिया बदल
कहीं बच्चे न डर जाएँ
( भागवान = पत्नी )


बालकृष्ण डी ध्यानी 
~सपना कब टूटा~

इस चित्र को देख कर भाव मेरे जगे है ऐसे
कोरे कागज पे लिखा पर ना दिखा सका वैसे

कहाँ से लेकर आये चित्र पर आप ये नर नारी
हम तो ठहरे भाई बचपन से ही बाल ब्रह्मचारी

शत प्रतिशत सुखी जीवन की लगती ये बीमारी
ये चन्द्र ग्रहण क्यों कर चढ़ा जोबन पर हमारी

क्यों ये रंग बिरंगी रंगों से घिरा है आसमान
क्यो ये रह रह कर कर रहा है मुझे परेशान

पकड़ हाथ नारी का वो नर क्यों खड़ा है वहां
इस रंगीन धरा ने शायद आज कुछ किया यहाँ

लुभवाना नजारा, छटा सोने की हिरण सी लगी
हनुमान भक्त हूँ,. अब तू ही बचा मुझे बजरंगी

थोड़ा और निहारो तो समझो आज व्रत मेर टूटा
रंगीन जमी और मैं, न जाने ये सपना कब टूटा



प्रभा मित्तल 
~~किस्सा रोमांस का~~

इक दिन की मैं बात बताऊँ,
देख नजारे मन ही मन मुसकाऊँ
बैंगनी गगन में उड़ते पंछी देख
नीली घास पर खड़ी-खड़ी इतराऊँ
पेड़ों के झुरमु़ट से दो-दो चंदा
लटक-लटक कर झाँक रहे थे
मन के मीत मिल रहे हम ऐसे
कि हाथों में हाथ डालती शरमाऊँ

जुगनू की नीली चमक देख कर
भँवरे की गुंजन सुन-सुन कर
तन - मन मेरा डोल रहा था
कानों में मिश्री सी घोल रहा था

तभी अचानक छींटे पड़ गए
हाथ-पाँव ठण्ड से अकड़ गए
कुछ न समझ बस भुनभुनाऊँ
आँखें अंगार कान सुन्न हो गए

अरी भागवान्,होश में आ
किन सपनों में खोई हो
आज तो बाई नहीं आएगी
जल्दी-जल्दी काम समेटो,
वरना,दफ़्तर को देर हो जाएगी।

चौंक कर ..झटपट उठ बैठी मैं
बदन पर गिर गई छिपकली सी,
टूटी तंद्रा,ओह! ये तो सपना था
पर जैसा भी था अच्छा मीठा था
हँसी आ गई,शोख हुई मन ही मन,
मेरे मन का सपना तो रंगीनी था,चलो
नींद का कुछ हिस्सा तो रूमानी था।



डॉली अग्रवाल 
~प्यार से तौबा~

मुंगेरी लाल के सपने सा प्यार
उफ्फ्फ्फ़
जो ना कराये कम है
दिन में चाँद नजर आये
सूरज की तपिश भी
चांदनी का एहसास कराये |
बिन बात के मुस्कुराये
और लोग पागल कह जाए |
चाय के उबाल सा प्यार
आँच तेज़ होते ही बाहर निकल आये |
बाज आये इस प्यार से
जो आँखों से बह जाए |


कुसुम शर्मा 
~चाँद की सैर~

हमारा दिन गुज़रता नही कमबख़्त उनके सिवा !
उन्हे आता नही हमे कुछ सुनाने के सिवा !
हमारी जोड़ी जैसे एक अंधा एक कोड़ी !
एक चले बायें तो एक दाये होली !
एक दिन बोले हम चलो चाँद की सैर कर आये !
वह बोली चाँद का क्या बीजा लगवा लाये !
चाँद पर वीजे का काम नही !
सच है ये झूठ तो नही !
सूट बूट मे हम हो गये तैयार !
साथ मे ली छोटी सी कार !
देखा आसमान मे तारे जगमगा रहे थे !
न जाने बहुत से पक्षि वहाँ मँडरा रहे थे !
जैसे ही आगे बड़े देखा बैंगनी रंग !
रंग को देख कर रह गये हम दंग !
सोचा अब होने वाली है हमारी जंग !
कोई तो बताये कहाँ गया आसमान का रंग !
बोली आसमान मे लाये हो या कही ओर !
आसमान ही लाया था न रही ओर
लगता है रंग को उठा कर ले गये चोर !
थोड़े सा आगे बड़े देखे दो दो चंदा मामा !
वह बोली तुम इसमें जाओ मुझको दूसरे मे है जाना !
हम बोले भग्वान जाओ जिसमे भी तुमको है जाना !
देखो जल्दी लोट कर आना,
कल बच्चों को स्कूल भी तो है जाना !!


किरण आर्य 
~प्यार का बुखार~
हाय प्रेम की चढ़ी ऐसी खुमारी
इश्क मोहब्बत है बुरी बीमारी
खाज-खुजली सी सबको सताए
जीव जंतु बेचारा तडपत है हाय

जालिम लोशन सा बन जावे कोई
बेकल भई अँखियाँ जागे या सोई
प्रेम लगन की अग्नि है अब दहकी
रामलाल की मन कुटिया महकी

करना प्रेम है ये जिद मन ठानी
मूरख कहे कोई चाहे इसे मनमानी
प्रेम बिना ये जीवन है सारा बेकार
प्रेम स्वप्न करना है अब साकार

सपन सलोने करे मन में विचार
साथ में हो एक खूबसूरत सी नार
येसा करूँ या वैसा करू मैं प्यार
अपनी दुनिया का मैं बन राजकुमार

इसी सोच बीच राह देखि एक नार
किया रामलाल ने किया झट इकरार
जूते चप्पलों के जब मिले उसे उपहार
प्रेम का सर से उतरा वो तेज बुखार



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