Sunday, October 4, 2015

18 सितम्बर 2015 का चित्र एवं भाव




Kiran Srivastava 
"संतुलन"

असंतुलन
के बीज
से उपजी
कटीली झाड़ियाँ.....
लहुलुहान होते
जीवन.....
विघटित होते
परिवार.....
जीवन की
कठिन डगर.....
जरुरत है
संतुलन की.....
संतुलन
सुगम करता
राहों को
लक्ष्य और
मंजिल को.....
आलोकित करता
जीवन को.....
सीख दे जाते हैं
कभी-कभी
वन्य जीव भी....
जो वाचालता
में हम
भूल जातें हैं.....!!!!!




नैनी ग्रोवर 
--जीवन की दौड़--

कितनी ही भयानक हो चाहे ये जीवन की दौड़,
सीख ही जाता है चलना हर प्राणी, भय को छोड़..

लालसा कुछ नया पाने की, लुभाती है इस तरह,
मुसीबतों की तरफ देता है, ये मासूम स्वयं को मोड़..

इंसानो ने छीन लिए जब घर इन बेगुनाहों के,
जाएंगे अब कहाँ ये, इन धुआँ भरे शहरों को छोड़..

भागम-भाग जन्म से मृत्यु तक, चलती रहेगी,
बचा सको तो अब भी बचा लो, ये प्राणी हैं बेजोड़..!!



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ इंसान और बन्दर ~

इंसान
परजाति बन्दर की
इंसान बंदर था या है
समझ नही आ रहा
अभी तक
इतना समझ पाया
बस इंसान बनने के बाद
इंसान अदरक का स्वाद
पहचानने लगा है और
इंसान कहता है
बंदर क्या जाने
अदरक का स्वाद


कुसुम शर्मा 
देख रहा इन्सान की फ़ितरत
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देख रहा था सोच रहा था
पल ही पल मे तोल रहा था
क्यों बन्दर बना इन्सान रे

बन्दर होता अच्छा होता
कम से कम ये सच्चा होता
या आख़िर सिर्फ़ बच्चा होता

चाल तो इसकी मेरे जैसी
ढाल को इसके क्या कहने
चहरे के पीछे है चहरा
इसका भी ये क्या कहने

मुख से राम नाम है जपता
बग़ल छुरी लिए है फिरता
किस समय वार ये करता
इसका भी ये क्या कहने

कहता है बन्दर ये मुझको
पर बन्दर से कम ये नही
हम तो जैसे है दिखते है
पर ये तो दिखता ही नही

इनकी फ़ितरत मे धोखा है
हमारी फ़ितरत ये तो नही
बन्दर है अच्छे है
इन्सान से तो सच्चे है



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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